अच्छे दिन यानी करण-अर्जुन कब आएंगे?

मनु पंवार

फिल्म 'करण-अर्जुन' की एक तस्वीर           सौजन्य : गूगल
पता नहीं हमारी पब्लिक अच्छे दिनों के लिए इतनी अधीर क्यों हुई जा रही है। दो साल से गाये जा रही है कि अच्छे दिन कब आएंगे? बॉलीवुड की फिल्मों से सबक लेना चाहिए। एक सुपरहिट फ़िल्म 'करण-अर्जुन' में एक दुखियारी, पीड़ित मां राखी लगभग पूरे वक़्त यही रट लगाती रह गई कि मेरे करण-अर्जुन आएंगे। लेकिन वे दोनों बंदे आए फिल्म के आखिर में। आए क्या जी, छा गए। पब्लिक की जबर्दस्त तालियां भी बटोर ले गए। उनके आते ही दुखियारी मां के सारे दुख-दर्द झटके में काफूर हो गए। 

भई, फिल्म तो डायरेक्टर की होती है। सोचिए, अगर वो करण-अर्जुन को पहले ही लौटा लाता तो फिल्म क्लाइमेक्स तक पहुंचती कैसे? फिल्म को इंटरवल में ही खत्म करना पड़ता। इंटरवल के बाद क्या फिल्म की स्टारकास्ट घुइयां छिलती? और पर्दे पर क्या संतोषी माता की व्रत कथा दिखाते? इसलिए हे सज्जनों, अच्छे दिन भी करण-अर्जुन की तरह ही हैं। सरकार के दूसरे ही बरस में थोड़े ही आ जाएंगे।

सब्र रखिए, फिल्म की अवधि की तरह सरकार का भी पांच साल का वक्त फिक्स है। पूरी फिल्म में ‘मेरे करण-अर्जुन आएंगे’ का जप करते-करते एक दुखियारी मां को अगर उसके करण-अर्जुन फिल्म के आखिरी प्लॉट में उपलब्ध हो पाए, तो आपको इत्ती जल्दी अच्छे दिन कैसे दिखा दें? भई, प्रोटोकॉल भी कोई चीज होती है। ऐसे में तो अच्छे दिनों की पूरी पटकथा ही गड़बड़ा जाएगी। राजनीति और फ़िल्म में वैसे भी अब बहुत ज्यादा फर्क तो रह नहीं गया है।
अच्छे दिन यानी करण-अर्जुन कब आएंगे? अच्छे दिन यानी करण-अर्जुन कब आएंगे? Reviewed by Manu Panwar on August 27, 2016 Rating: 5

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