पहाड़ों में भी हैं एक बॉब डिलन
मनु पंवार
(आज कोई बतंगड़ी नहीं है। एक लोकगायक को मिले दुनिया के सबसे बड़े सम्मान के बहाने बस एक त्वरित टिप्पणी. जनता की आवाज़ बनने वाले ऐसे लोकगायकों को गुमनामी से बचाना कितना ज़रूरी है? )
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अमेरिकी लोकगायक बॉब डिलन |
एक लोकगायक के सृजन की ताक़त देखिए कि आज पूरी दुनिया उसे सलाम कर रही है। उसे दुनिया का सबसे बड़ा सम्मान मिल रहा है. अमेरिकी लोकगायक बॉब डिलन को साहित्य का नोबल पुरस्कार देने का एलान हुआ है. हालांकि डिलन इस अवॉर्ड के लिए चुने जाने से पहले ही दुनिया की बहुत मशहूर, बहुत चर्चित शख्सियत हैं. लेकिन ईमानदारी से कहूं तो मैं 2007 से पहले तक बॉब डिलन के बारे में नहीं जानता था. उन्हें जानने-समझने का मौका तब मिला, जब मैं अपनी क़िताब 'गाथा एक गीत की: द इनसाइड स्टोरी ऑफ नौछमी नारेणा' पर काम कर रहा था. यह क़िताब अगस्त, 2014 में रिलीज़ हुई।
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नरेंद्र सिंह नेगी की तुलना नोबल अवॉर्डी लोकगायक डिलन से की गई है |
'द टेलीग्राफ' अख़बार की इसी ख़बर ने मुझे बॉब डिलन का पता दिया. उस रिपोर्ट के बाद मेरी उत्सुकता यह जानने में थी कि 'द टेलीग्राफ' जैसे प्रतिष्ठित अख़बार ने पहाड़ के लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी की तुलना जिन बॉब डिलन से की है, आखिर वो शख्स, वो फनकार हैं कौन? इस रिपोर्ट के बाद ही मैं बॉब डिलन की शख्सियत से परिचित हुआ. उन्हें जाना, उनके बारे में पढ़ा. तब ही मालूम हुआ कि इस अमेरिकी लोकगायक ने नागरिक अधिकारों के लिए, जंग के ख़िलाफ़ गीत लिखे हैं. वो परंपरा के खिलाफ भिन्न किस्म की रचनायें करते रहे हैं. उन्होंने अपने गीतों से अमेरिकी सत्ता को भी कई बार असहज किया है.
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दिल्ली में एक स्टेज शो में नरेंद्र सिंह नेगी |
बॉब डिलन ने अपने दौर में अमेरिकी समाज के भीतर की खदबदाहट को शब्द दिए और अपनी पीढ़ी की आवाज़ बने. उनके गीत मानवाधिकार संगठनों और युद्ध विरोधी संगठनों के लिए एंथम साबित हुए. हमने भी अपने दौर में पहाड़ के लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी के गीतों को जनांदोलनों का एंथम बनते देखा है. नेगी भी पिछले चार दशक से अपने गीतों में पहाड़ी समाज के भीतर की बेचैनियों, उनके दुखों को शब्द देते आ रहे हैं. उनकी आवाज़ बने हैं.
लिंक : टिहरी बांध की त्रासदी नरेंद्र सिंह नेगी का मार्मिक गीत
हालांकि किसी एक कलाकार की दूसरे से तुलना नहीं की जा सकती, लेकिन यह एक संयोग हो सकता है कि दोनों के बीच बहुत साम्य हैं। संभवत: इसीलिए 'द टेलीग्राफ' ने नेगी को पहाड़ का बॉब डिलन लिखा। इस रिपोर्ट को मैंने अपनी किताब 'गाथा एक गीत' में शामिल किया तो इसे पढ़कर खुद नेगीजी भी चौंके।
यूं डिलन से अपना दूर-दूर का नाता नहीं है। मगर आज न्यूज़ रूम में काम करते वक़्त जब शाम को अचानक बॉब डिलन को साहित्य का नोबल पुरस्कार दिए जाने का ऐलान होने का फ्लैश आया. फिर सभी चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज़ चलने लगी। तो एक अलग तरह का अहसास हुआ. एक लोकगायक को इतना बड़ा अवॉर्ड ! लगा जैसे किसी परिचित को मिला है ये सम्मान.
ख़ास बात ये है कि डिलन नोबल पुरस्कार हासिल करने वाले दुनिया के पहले लोकगायक हैं. बीबीसी ने बॉब डिलन को 'लोकगीतों का रॉक स्टार' कहा है. लिंक : बॉब डिलिन का एक बहुचर्चित गीत Blowin The Wind
डिलन आज 75 साल के हो चुके हैं। उनको 'अमेरिकी गीतों की लंबी परंपरा में नई काव्य शैली विकसित करने के लिए' नोबेल पुरस्कार दिए जाने की घोषणा हुई है. डिलेन को पुरस्कार के साथ करीब 6 करोड़ रुपये की धनराशि मिलेगी.
बॉब डिलन जैसे लोकगायकों की ज़रूरत हर समाज को है. वैसे डिलन इस मायने में खुशकिस्मत भी हैं कि वह अमेरिका में पैदा हुए हैं. वरना तो दुनिया के कितने ही कोनों में न जाने कितने ही लोकगायक/ जनकवि गुमनामी में खो गए.
पहाड़ों में भी हैं एक बॉब डिलन
Reviewed by Manu Panwar
on
October 13, 2016
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