यह आदमी नहीं, मुकम्मल बयान है...
मनु पंवार
(जो लोग उत्तराखण्ड के पहाड़ों के समाज, जीवन और वहां के लोक की संस्कृति को समझते-जानते हैं, उनके लिए नरेन्द्र सिंह नेगी कोई अपरिचित नाम नहीं है. नेगी पहाड़ के सबसे चर्चित, सबसे लोकप्रिय, सबसे प्रतिष्ठित गीतकार/ गायक/ कवि हैं. उत्तराखण्ड में घर-घर जाने जाते हैं और अपने गीतों के साथ प्रवासी उत्तराखण्डियों के घर-घर पहुंचे हैं. वह उत्तराखण्ड की स्थानीय बोली गढ़वाली में लिखते हैं, इसलिए उनके रचे हुए गीत बाकी दुनिया तक उस तरह से नहीं पहुंच पाए. लेकिन उनकी रचनाएं अपने आप में एक धरोहर हैं. उनका लिखा दुनिया के श्रेष्ठ साहित्य के टक्कर का है. यह लेख मैंने उनके जन्मदिन पर लिखा था.)
(जो लोग उत्तराखण्ड के पहाड़ों के समाज, जीवन और वहां के लोक की संस्कृति को समझते-जानते हैं, उनके लिए नरेन्द्र सिंह नेगी कोई अपरिचित नाम नहीं है. नेगी पहाड़ के सबसे चर्चित, सबसे लोकप्रिय, सबसे प्रतिष्ठित गीतकार/ गायक/ कवि हैं. उत्तराखण्ड में घर-घर जाने जाते हैं और अपने गीतों के साथ प्रवासी उत्तराखण्डियों के घर-घर पहुंचे हैं. वह उत्तराखण्ड की स्थानीय बोली गढ़वाली में लिखते हैं, इसलिए उनके रचे हुए गीत बाकी दुनिया तक उस तरह से नहीं पहुंच पाए. लेकिन उनकी रचनाएं अपने आप में एक धरोहर हैं. उनका लिखा दुनिया के श्रेष्ठ साहित्य के टक्कर का है. यह लेख मैंने उनके जन्मदिन पर लिखा था.)
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साल 2016 : नरेंद्र सिंह नेगी जी के साथ देहरादून के चकराता इलाके में |
दिदा ! बड़ा मुश्किल है रे! नरेंद्र सिंह नेगी
पर लिखना बड़ा मुश्किल है। क्या लिखें? जिनसे इतने बरस लंबा नाता है, जिन्हें देख-सुनकर किशोर
उम्र में हमारे सपने पले और जवान हुए। जो तब से हमारे शिक्षक भी रहे, अभिभावक की तरह भी रहे और मार्गदर्शक की तरह भी रहे। जिनसे हम सलाहें भी लेते रहे हैं, शिकायतें भी करते रहे हैं, जिनके संग खिलखिलाते भी रहे हैं, हंसी-ठट्ठा भी करते रहे हैं। उनके बारे में क्या जो लिखें? उनके गीत तो हमेशा हमारे सिरहाने रहते हैं। परदेस में हमें हमारे मायके, हमारे मुलुक की ‘खुद’ बिसराते हैं। हमारे उल्लास और हमारी
खुशियों की वजह बनते हैं। पहाड़ के जातीय गौरव को और बढ़ाते हैं।
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फोटो सौजन्य : Google |
वो यह कहकर हमारी अच्छी नींद के लिए जतन करते हैं कि- ‘हे मेरी आंख्यूंका रतन बाळा से जादी।’ हम जब सोते हैं तो उनके गीत सहलाते हुए कहते हैं कि‘पौंखर ढिक्याण ल्हेकि चखुला से गेनि।’ उजाले को अड़ेथकर जब पहाड़ों में अंधियारा चोर बिराळी की तरह सुर्र-सुरक पांव धरता है, तो अपनों की चिंता में उनके गीत पहाड़ के किसी दाना-सयेणा, किसी पहाड़ी बुजुर्ग की तरह धै लगाते हैं- ‘औ ये लछि घौर रुमुक पोड़िगे...।’
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फरीदाबाद में एक गोष्ठी के दौरान Moble Click : Manu Panwar |
उनका लिखा हमारे
लिए ह्यूंद के दिनों में घाम की निवती सा है।रूड्यूं के दिनों में छोय्ये का पाणी सा
है। वो हमें पैणे कि पकोड़ि सा स्वाद देते हैं। उसको कैसे बयां करूं? एक नेगी जी ही तो हैं जिनके गीत हमारे
लिए मरचण्या खाने में खीर जैसी मिठास घोलते हैं। वो बादलों के बीच जूनी (चंद्रमा) की झलक जैसे हैं। डांड्यूं-कांठ्यूं के मुलुक में बसंत का जैसा अनूठा शब्द-चित्र नेगी जी ने खींचा है, वैसा कहीं किसी कवि/ गीतकार ने खींचा हो, तो मुझे बताएं। ज़रा उनके बिम्बों को देखिए- ‘पुराणा डाळा ठंगरा ह्वेकि, नई लगल्यूं सारु दयाला’ या 'त्वेथैं ख्याल आई त लटूली फूलि गेनि’ , या 'यख त सच्ची बात भी अटगीं च बीच गौळा मां, एक तू भी छै कि झूटा सौं भग्यान खै गई..', 'उमर भपे कि बादल बणि गे...'। बताइए, कहीं कोई ऐसा लिख सका है भला ! नेगीजी का लिखा चमत्कृत करने वाला है। दुनिया के साहित्य के टक्कर का है।
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उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान जनजागरण के गीतों के साथ निकला जत्था। सबसे आगे नरेंद्र सिंह नेगी, उनके दाहिने हाथ की तरफ हाथ में खंजरी लिए मैं। फोटो शायद 1995 की है. |
हम क्या लिखें
कि हमारे पास कहने को क्या है? नरेंद्र सिंह
नेगी जो लिख गए हैं वह तो पहाड़ी समाज में लोकोक्तियों का हिस्सा हो गया है। लोग
भी कहेंगे कि द्वी अंगुळि की गिच्ची अर जीब डेढ़ हातैकी। लिखना हुआ तो ये हुआ कि जो लोक में मुहावरों की तरह
इस्तेमाल होने लगे, जैसा नेगी जी ने किया है। पहाड़ के लोकजीवन का कौन सा ऐसा रंग है जिसे
नरेंद्र सिंह नेगी ने शब्द और सुर न दिया हो। उनके गीतों में मां-बहनों, बेटी-ब्वारियों, दाना-सयेणों
से लेकर फौजियों, डरेबर-कलेंडरों तक की फिक्र है। उनके गीतों
में प्रकृति के दिलकश रंग हैं तो प्रेम गीतों में एक अनूठी सी महक है। उनके गीत
अपनी जमीन, जंगल, पानी, पर्यावरण की चिंताओं पर मुखर हैं। जनता के सवालों पर वह व्यवस्था को कठघरे
में खड़ा करते हैं, इस चक्कर में वह सत्ता से पंगा ले बैठते हैं।
पहाड़ी समाज जब गहरी निराशा में घिरा था तो इस गीतकार ने ढांढस बंधाया कि-‘द्वी-दिनूं की हौर च या खैरि मुट्ट बोटीकि रख।’ सन् चौरानबे में जब पूरा पहाड़ सड़कों पर था, तब जनता के इस गीतकार ने उदासियों के ध्वनि वाले ‘म्यारा सदनी येनि दिन रैनी’ की नियति को झटकने की बेताबी दिखाई। तब नेगीजी ने ही तो पूछा था, ‘बोला भै-बंदों तुमूं तै कनूं उत्तराखण्ड चयेणू चा? जिसका भावानुवाद ये है- कहो भाई-बहनों! तुम्हें किस तरह का उत्तराखण्ड चाहिए? वह उन सपनों की टोह लेना चाह रहे थे जो सड़क पर लड़ रही अवाम के दिलों में पल रहे थे। उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद जब वो सपने स्थानीय राजनीति की धूर्तताओं के बीच दम तोड़ने लगे और नाउम्मीदियां पहाड़ सरीखी ऊंची हो रही थीं, तब जनता का यह गीतकार और गायक भी उद्वेलित हो गया। शायद ऐसे ही वक्त में कभी जनकवि दुष्यंत कुमार ने लिखा था-‘मुझमें रहते हैं करोड़ों लोग चुप कैसे रहूं।’
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नेगी जी के ही एक राजनीतिक गीत पर मैंने एक क़िताब लिखी |
नेगी जी को भी चुप रहना गवारा न था। यह वो समय था जब ‘नौछमी नारेण’ गीत की रचना हुई। उसके राजनीतिक-सामाजिक प्रभावों पर मैंने 2014 में एक क़िताब लिखी है- 'गाथा एक गीत की- द इनसाइड स्टोरी ऑफ नौछमी नारेणा।' ‘नौछमी नारेण’ का कालखण्ड नरेंद्र सिंह नेगी और उनकी गीत यात्रा को एक अलग मुकाम देता है।
बाद में ऐसे ही अंधेरे वक्त में ‘कथगा खैल्यू’ गीत का सृजन हुआ। नेगी जी तो सरकारी नौकरी में तब भी अपने समाज
के सवालों को शब्द और सुर दे रहे थे जब उन्होंने असंवेदनशील हो चुकी व्यवस्था पर
तंज कसा था कि- ‘तन सरकारि तेरु मन सरकारी, तिन क्या जण्ण बिपदा
हमारी।’ बचा ही क्या है। हम जितनी दूर तक सोच और समझ सकते हैं, नेगी जी के गीत उससे मीलों आगे की कब के कह
चुके हैं। यह शख्स जीते-जी किंवदंती है दिदा! उनके बारे में हम क्या जो लिखें? हम तो सिर्फ इस बात पर अपना सीना फुला सकते हैं कि हमारे
पास नरेंद्र सिंह नेगी हैं। हम नरेंद्र सिंह नेगी को जानते हैं।
हमें तो उनके
गीतों से प्रेम है। हमें इस प्रेम में रहने दो दिदा। जिस शख्स ने हमारी मायादार
आंख्यूं में सपने बसाये हैं, उन पर लिखने को मत कहो। जंगलात के किसी पतरोळ की तरह
घस्येन्यूं को लूछ लेने जैसा प्रयास मत करो दिदा। हम तो ऐसे तिसाळू पराण हैं जिनकी
‘तीस’ नेगी जी के गीतों के बगैर नहीं बुझती। उनके गीतों की झौळ में हमारा ये मन ‘नौणि’ सा है जो पिघल
भी गया और जल भी गया। हम तो गढ़कवि
भजन सिंह ‘सिंह’ की 'कुसगोरया कज्याण' जैसे थे। नेगी जी की सोहबत में सगोर आया
है।
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नरेंद्र सिंह नेगी का स्टेज शो फोटो सौजन्य : Google |
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नवंबर 2015 : पौड़ी में नेगीजी के बेटे कविलास की शादी में |
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दिल्ली जंतर-मंतर पर एक धरने के दौरान |
उनकी सरलता, उनकी सादगी, उनकी सौम्यता, बिना किसी लाग-लपेट के अपनी बात कहने की उनकी अदा का कायल हूं। एक दफा दिवंगत समीक्षक/ कवि राजेंद्र रावत ‘राजू भाई’ ने नेगी जी पर लिखा था, अहंकार जिनसे कन्नी काटे। लेकिन हम क्या लिखें? अब हम तो परदेस में हैं। नेगी जी ने आगाह भी किया था, ‘न दौड़ न दौड़ तैं उंदारि का बाटा, उंदारी कु सुख द्वी-चार घड़ी कू।’ हम फिर भी उंदार की तरफ दौड़ पड़े। द्वी-चार घड़ी के सुख के लालच में। हिमालय में रहकर चमकने का सुख हमें नसीब न हुआ।
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एक सफर के दौरान सेल्फी |
"को होलु, को होलु मैं समलोण्या आज...
रुणादी-कणांदी ब्वे..कि खांसदा बुबा जी..।'
उदासियों के बीच परदेस में कई बार मन खुद से कहता है-
‘हे जी सार्यूं मां फूलिगे होलि लयेड़ी,
मैं घौर छोड़्यावा...।’
आंखें नम हो जाती हैं। कई बार लगता है कि नेगी गितेर नहीं, जादूगर हैं। शब्दों को ऐसे पिरोते हैं कि सुनने वाले के भीतर हलचल मच जाती है। आंखों से तर-तर छोये फूटने लगते हैं। उन पर अब मैं क्या लिखूं? बड़ी उलझन है। हमारी क्या बिसात कि उनके बारे में कुछ लिख सकें। वह तो हमारी धड़कनों में है। धड़कनों को आप खुद ही महसूस कर सकते हो। ज़माने को क्या बताओगे? दुष्यंत कुमार के शब्दों को उधार लेकर कहना चाहता हूं-
यह आदमी नहीं, मुकम्मल बयान है...
Reviewed by Manu Panwar
on
August 12, 2018
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उफ्फ क्या लिख डाला मन्नू भी।
ReplyDeleteआपने नेगी जी पर कुछ ना लिख पाने की टीस में अप्रतिम लिख डाला।
मैन सात बार पढ़ा यह
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteहा हा हा ☺️
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद् भाई साहब इन सुंदर शब्दों के लिए
मन्नु भाई पढ़ते हुए आंखे नम हुई जा रही हैं। बहुत अच्छा लगता है जब तुम्हारी कलम चलदी दिदा जब तुम्हारी मन की बात भैर ऐ जांदी। भगवान तुम सणी खूब तरक्की द्यौ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद पढ़ने और फीडबैक देने के लिए। आपकी शुभकामनाओं के लिए आभार
ReplyDeleteबहुत बहुत खूब, बस टीस इस बात की इन्हें राष्ट्रीय स्तर में वह सम्मान नही मिला जिसके वो हकदार है। ऐसे ही कुछ बातों पर और लिखकर आप हम पाठकों के आगे रखेगे उम्मीद है।
ReplyDeleteजी ज़रूर. आपका शुक्रिया, पढ़ने और फीडबैक के लिए
Deleteधन्य हैं आप जो आपको नेगी जी के साथ कुछ पल बिताने का सौभाग्य मिला। और धन्य हैं हम सब जो हमें आपकी लिखी इन सुंदर पंक्तियों को पढ़ने का अवसर मिला। गले में अटकी सी भावनाओं को शब्द मिले। पढ़ कर नेगी जी के सारे गीत मन को छूने लगे। नेगी जी के सारे गीतों के अमृत को एक पात्र में संजो कर ऐसी चाशनी तैयार की है आपने कि उसका चक्षुपान कर हृदय अनंत गहराइयों तक तृप्त हो गया। बहुत बहुत साधुवाद।
ReplyDeleteआपका आभार
DeleteKUCHNA ME BI BOHATH KUCH LIKH GE AAP TO
ReplyDeleteNegi ji ke lye pyar .in life and after life
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लेख चाचा जी
ReplyDeleteमनु भाई श्री नेगी जी के बारे में जितना भी लिखा जाए वह कम ही होगा फिर भी आपने तो गागर में सागर भर दिया । आपकी लेखनी को सलाम ।
ReplyDeletebhut bhut sundar likha h
ReplyDeleteacha h
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteमन्नू भैजी नेगीजी हमर पहाड़क धरोहर छ्न
ReplyDeleteउनर बारमा लिखण सूरजथैं दीपक दिखाणचा
फिरभी आपल काफीकुछ लेख्याल
नेगीजीका गीत बरबस आख्यूमा पाणी लिआन्दी
य म्यर अपण अनुभवचा_
सुंदर प्रयासच
बधाई
सर पढ़कर आनंद आ गया और आपकी फ़ोटोज़ देखकर तो मैं हैरान हूँ कि मुझे आपके बारे में पता क्यों नहीं था। दिल ख़ुश हो गया । मैं खुद नेगी जी को प्रेरणा मानता हूँ। आपका लिखा पढ़ा तो आह्हाहाहा 💐🙏
ReplyDeleteधन्यवाद सूर्या, मैंने तो कुछ लिखा ही नहीं यार. :) पूरे लेख में यही पूछ रहा हूं कि क्या लिखूं? :)
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