मेरे झाड़ू की सींकें क्यों निकालीं?
मनु पंवार
मैंने अपनी मेड को साबुत झाड़ू पकडाई. उनने झाड़ू की 20 सीकें तोड़ के मुझे लौटा दी. अब केजरीवाल की तरह मैं भी समझ नहीं पा रहा हूं कि मुझे ऐसे मौके पर करना क्या चइए? अपन ने इस उधेड़बुन में कई लोगों से राय ली. वे बोले, ये तो ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का मामला हैग्गा. लो कल्लो बात...! झाड़ू में क्या ऑफिस और कैसा प्रॉफिट? झाड़ू तो सब जगह लगा करे है.
हमने तो ऐसे कई ऑफिस देखे हैं जहां काम करते-करते बंदे प्रॉफिट बनाने की जुगत में लगे होते हैं. ऐसा 'ऑफिस' भला किस काम का जहां बंदे को 'प्रॉफिट' ही न हो. लेकिन हम दिल्ली में क्या देख रहे हैं कि ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के चक्कर में बंदों की कुर्सी चली गई. ऐसा तो उस रामराज में ही मुमकिन था. तो क्या रामराज आ गया है या आने वाला है? किसी सज्जन को कुछ पता चले, कृपया कर मुझे भी बताएं. फिलहाल मैं अपने 20 सींक रहित झाड़ू को दुरुस्त करने की जुगत कर रहा हूं. वरना मुझे बाज़ार से 'फूल' वाला झाड़ू ही लाना पड़ेगा. सुना है कि आजकल देश में उसी का मौसम चल रा.
मेरे झाड़ू की सींकें क्यों निकालीं?
Reviewed by Manu Panwar
on
January 22, 2018
Rating:

No comments