पेश से टीवी पत्रकार हूं। दो दशक होने को हैं, जब अख़बार से निकलते हुए टेलीविज़न की गति को प्राप्त हुआ। आज भी वहीं टांग फंसाए हुए हूं। व्यंग्य पर हाथ साफ करने की कोशिश कर रहा हूं। अब तक दो व्यंग्य संग्रह आ चुके हैं। एक Juggernaut.in से और दूसरा हिंदी अकादमी से। रोज़ाना की दिलचस्प घटनाओं/ख़बरों पर रायता फैलाने का मेरा अड्डा यही है। इधर आते रहिएगा। कम लिखा है ज़्यादा समझना।
बक़लम खुद- मनु पंवार
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