आबादी बढ़ाने की साधु-संतों की अपील क्यों नहीं मान रहे भारतीय दंपति?
मनु पंवार
इसका मतलब यह है कि साधु-संतों की कोई सुन ही नहीं रहा. कहीं ऐसा तो नहीं कि ये कलियुग में अधर्म बढ़ने के संकेत हों? फिर उन धार्मिक-राजनीतिक अपीलों का क्या होगा जिनमें हिंदुओं से 10-10 या 5-5 औलादें पैदा करने के लिए कहा जा रहा था? साक्ष्य के तौर पर कुछ बयानों के स्क्रीन शॉट्स नीचे दिए जा रहे हैं. अंदाजा लगाइए कि हमारे साधु-संत-बाबा लोग देश में जनसंख्या को लेकर किस कदर फिक्रमंद हैं.
सतीश आचार्य का कार्टून NewsSting.in से साभार |
मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि देश के लोगों को ये हो क्या गया है. आबादी बढ़ाने की संत-महात्माओं की अपील को वो नज़रअंदाज़ क्यों कर रहे हैं? संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट बता रही है कि भारत में लोग अब कम बच्चे पैदा करने लगे हैं. एक दंपति औसतन 2.2 बच्चे पैदा कर रहे हैं. यह तो घोर कलियुग है. हमें तो बचपन से ही पढ़ाया, सिखाया, समझाया जाता रहा है कि साधु, संत, महात्माओं की बात सुनी, मानी और गुनी जानी चाहिए. लेकिन कलियुग में सब कुछ उलट-पुलट हो गया है. स्वनामधन्य शंकराचार्य से लेकर साक्षी महाराज जैसे साधु-संत दस-दस, पांच-पांच बच्चे पैदा करने की नसीहत देते रह गए और भारतीय दंपति हैं कि संतान की संख्या बढ़ाने के बजाय घटाने पर उतर आए हैं.
यकीन न हो तो संयुक्त राष्ट्र की उस रिपोर्ट पर ग़ौर फरमाइए जिसके हवाले से 'टाइम्स ऑफ इंडिया' ने शनिवार 17 अगस्त 2019 को लंबी-चौड़ी रिपोर्ट छापी है. इस रिपोर्ट में एक पन्ने पर ग्राफिक्स के ज़रिये समझाया है कि देश में आबादी की मौजूदा स्थिति क्या है. इस रिपोर्ट का शीर्षक ही है, 'हमें भारत के जनसंख्या विस्फोट के लिए कितना फिक्रमंद होना चाहिए?' रिपोर्ट बता रही है कि भारत का मौजूदा फर्टिलिटी रेट गिरकर 2.2 तक पहुंच गया है. मतलब हमारे देश में हर दंपति औसतन 2.2 बच्चे पैदा कर रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र के अनुमान बता रहे हैं कि भारत की जनसंख्या वृद्धि लगभग स्थिर हो गई है और वो दिन ज़्यादा दूर नहीं हैं जब भारत की जनसंख्या घटनी शुरू हो जाएगी. वैश्विक स्तर पर यह माना जाता है कि अगर किसी मुल्क का फर्टिलिटी रेट 2.1 हो तो इसका मतलब है कि वहां जनसंख्या बढ़ेगी नहीं, सिर्फ रिप्लेस होगी. भारत उस मानक के बहुत क़रीब पहुंच गया है.
तथ्य भले ही कुछ भी कहें, खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लालकिले से जनसंख्या विस्फोट की बात कहकर बढ़ती आबादी को लेकर चिंता जता दी. ये बात जुदा है कि पांच साल तक मोदीजी दुनियाभर में हमारी आबादी के लाभ गिनाते नहीं थक रहे थे. डेमोग्रैफिक डिविडेंट की बात हो रही थी. ख़ैर, अब पीएम की देखादेखी तमाम श्रद्धालुगण आबादी घटाओ के नारे के साथ कूद पड़े. पता नहीं उन्हें यह बात पता है कि नहीं कि उनके हल्ला करने से पहले ही हिंदुस्तानी दंपति अपने परिवार को नियोजित करने और देश की आबादी घटाने में लगे हुए हैं. महानगरों में तो नई दंपतियों, खासकार कामकाजी दंपतियों, में एक बच्चे का चलन बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है.
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साभार : टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट का हिस्सा |
तथ्य भले ही कुछ भी कहें, खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लालकिले से जनसंख्या विस्फोट की बात कहकर बढ़ती आबादी को लेकर चिंता जता दी. ये बात जुदा है कि पांच साल तक मोदीजी दुनियाभर में हमारी आबादी के लाभ गिनाते नहीं थक रहे थे. डेमोग्रैफिक डिविडेंट की बात हो रही थी. ख़ैर, अब पीएम की देखादेखी तमाम श्रद्धालुगण आबादी घटाओ के नारे के साथ कूद पड़े. पता नहीं उन्हें यह बात पता है कि नहीं कि उनके हल्ला करने से पहले ही हिंदुस्तानी दंपति अपने परिवार को नियोजित करने और देश की आबादी घटाने में लगे हुए हैं. महानगरों में तो नई दंपतियों, खासकार कामकाजी दंपतियों, में एक बच्चे का चलन बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है.
इसका मतलब यह है कि साधु-संतों की कोई सुन ही नहीं रहा. कहीं ऐसा तो नहीं कि ये कलियुग में अधर्म बढ़ने के संकेत हों? फिर उन धार्मिक-राजनीतिक अपीलों का क्या होगा जिनमें हिंदुओं से 10-10 या 5-5 औलादें पैदा करने के लिए कहा जा रहा था? साक्ष्य के तौर पर कुछ बयानों के स्क्रीन शॉट्स नीचे दिए जा रहे हैं. अंदाजा लगाइए कि हमारे साधु-संत-बाबा लोग देश में जनसंख्या को लेकर किस कदर फिक्रमंद हैं.
बताइए, संत महात्मा कह रहे हैं कि तुम बस बच्चे पैदा करने में ध्यान दो, ये मत चिंता करो कि उन्हें पालेगा कौन? भगवान पालेगा और कौन ! तो कोई कह रहा है कि बच्चा पैदा करना भगवान का प्रसाद है. मेरी उत्सुकता तो यह जानने में है कि इन 'शानदार' अपीलों का आखिर भारतीय माता-पिता पर असर क्यों नहीं हो रहा है? क्या साधु-संतों-बाबाओं का अब वैसा मान नहीं रहा? क्यों भारतीय दंपति सिर्फ अपनी गृहस्थी की चिंता करते हैं? उन्हें धर्म की चिंता क्यों नहीं हैं जिसके नुमाइंदे दावा कर रहे हैं कि उनकी आबादी घट रही है?
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साभार : टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट का हिस्सा |
असल में यह पूरा खेल कुछ और ही है. यह समझना मुश्किल नहीं है कि असली टारगेट पर कौन है और इसे मजहबी रंग क्यों दिया जा रहा है? लेकिन अगर तथ्यों को देखा होता या उन पर ग़ौर किया होता तो शायद ऐसी बातें नहीं होतीं. क्योंकि देश का पिछले 10 साल का फर्टिलिटी रेट बता रहा है कि सभी मज़हबों में लोग अब कम बच्चों को लेकर एकमत हैं. डेटा बता रहा है कि पिछले 10 साल में हिंदुओं के मुकाबले मुसलमानों में कम बच्चे पैदा करने का चलन बढ़ा है. 2005-06 में जहां हिंदू दंपति 2.59 बच्चे पैदा कर रहे थे, वहीं 2015-16 में 2.13 बच्चे पैदा करने लगे. हिंदुओं की फर्टिलिटी रेट में यह गिरावट -17.8 परसेंट की है. अब जरा मुसलमानों की फर्टिलिटी रेट पर नज़र डालिए. 2005-06 में देश के मुसलमान दंपति जहां 3.40 बच्चे पैदा कर रहे थे, दस साल बाद यानी 2015-16 में मुस्लिम दंपति 2.62 बच्चे पैदा कर रहे हैं. यह बदलाव -22.9 परसेंट है यानी हिंदुओं से थोड़ा ज़्यादा. सबसे कम बच्चे जैन समुदाय के लोग पैदा कर रहे हैं, उनके हर दंपत्ति के औसत 1.2 बच्चे हैं.
हम यह भूल जाते हैं कि दुनिया में हिंदुस्तान ही ऐसा मुल्क है जिसने अपनी आज़ादी के तुरंत बाद ही जनसंख्या नियंत्रण के लिए योजनाएं बना दी थीं. उनका क्रियान्वयन वैसा नहीं हुआ, जो मकसद था लेकिन यह कार्यक्रम पिछले 70 बरस से लगातार चल रहा है. भारतीय दंपति, चाहे वो किसी भी मज़हब के हैं, अब ज्यादा जागरुक हैं. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि कर रही है कि ज्यादा संतानें पैदा करने की बाहरी अपीलें भारतीय दंपतियों को फिजूल लग रही हैं और जैसा कि संयुक्त राष्ट्र ने भी अनुमान जताया है, वो दिन दूर नहीं जब भारत में जनसंख्या गिरने लग जाएगी. ये बात अलग है कि सरकार जनसंख्या नियंत्रण कानून के लिए कमर कसती दिख रही है.
आबादी बढ़ाने की साधु-संतों की अपील क्यों नहीं मान रहे भारतीय दंपति?
Reviewed by Manu Panwar
on
August 19, 2019
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