अच्छी क्वालिटी की दारू कानून व्यवस्था को खतरा !
मनु पंवार
दारू
अगर सिर चढ़कर न बोले और पियक्कड़ों में झगड़ा
न हो तो दारू की क्वालिटी पर सवाल उठ जाते हैं। कानून
व्यवस्था का मामला हो जाता है। इसीलिए बिहार में नीतीश कुमार ने दारू पर बैन लगा
दिया। इसका एक मतलब ये है कि अच्छी क्वालिटी की शराब कानून व्यवस्था के लिए बड़ा
खतरा है। वैसे भी अब वो
जमाना तो रहा नहीं कि हम कह दें- ‘आए थे
हंसते-खेलते मय-खाने में ‘फ़िराक़’ /जब पी चुके शराब तो संजीदा
हो गए।‘ अब
संजीदा हो जाना शराब और शराब कंपनी दोनों की बेइज्जती है। इसीलिए जमानेभर को शराब
पिलाने वाले विजय माल्या संजीदा नहीं हुए। पब्लिक का हजारों करोड़ रुपया डकारकर
फुर्र होने में उन्होने देर नहीं लगाई। तो ऐसे में शराब और उसकी उत्पाद कंपनी का
मान रखने की जिम्मेदारी पियक्कड़ों पर ही क्यों हो?
इसीलिए
लग रहा है कि बिहार में शराबबंदी से दो बड़े नुकसान हो जाएंगे। एक तो बंदों के भीतर
पीने के बाद जो कॉन्फिडेंस भर जाता था, वो
जाता रहेगा। ऐसे बंदों के खिलाफ उनके शरीर ने ही अगर किसी रोज नो कॉन्फिडेंश मोशन
पेश कर दिया, तो उनकी तो जिंदगी की
सरकार औंधे मुंह गिर जाएगी। दूसरा, इसका नुकसान अंग्रेजी भाषा को
भी होगा। नशे में धुत्त हो जाने के बाद एक-दूजे से अंग्रेजी में भिड़ने के मौके
जाते रहेंगे। अंग्रेजी के सहज आदान-प्रदान के रास्ते बंद हो जाएंगे। फिर बशीर
बद्र साहब के इस शेर का क्या होगा-
'न तुम होश में हो न हम होश में हैं /

कई बार
लगता है कि दारूबाज़ी का समाज में बड़ा योगदान है। जो बंदा सामान्य हालत में
अंग्रेजी के लफ्ज भी ढंग से न बोल पाता हो, दो पैग
गटक लेने के बाद वो दूसरे को अंग्रेजी में दुत्कारने लगता है। बंदा तो हिंदी को
मुंह ही नहीं लगाता जी। उसके भीतर ऐसा आत्मविश्वास आ
जाता है कि खुद का शरीर भले ही हड्डियों का एक विवादास्पद
ढांचामात्र हो, लेकिन पीने के बाद सबकी
खटिया खड़ी करने की हुंकार भरने लगता है।

'न तुम होश में हो न हम होश में हैं /
चलो
मय-कदे में वहीं बात होगी।'
अच्छी क्वालिटी की दारू कानून व्यवस्था को खतरा !
Reviewed by Manu Panwar
on
July 18, 2016
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