कृपया दरवाज़ों से हटकर खड़े हों

मनु पंवार

शम्मी नारंग के साथ मुलाकात की एक तस्वीर
कुछ आवाज़ें, कुछ छवियां ज़ेहन में हमेशा ताज़ा रहती हैं. बरसों तक, दशकों तक, उम्र भर गूंजती रहती हैं. शम्मी नारंग भी ऐसी ही शख्सियत हैं. बहुत ज्यादा वक़्त नहीं बीता है लेकिन मानो एक युग गुज़र गया है. दूरदर्शन के युग में, जबकि टेलीविज़न न्यूज़ में शोर-शराबा नहीं था, एक सौम्य, शालीन, सभ्य चेहरा हमारी और पिछली पीढ़ियों के ज़हन में अब तक है. ये नाम हैं- शम्मी नारंग. धीर-गंभीर, वज़नदार आवाज़ वाले शम्मी. जिनकी आवाज़ ही उनकी ख़ास पहचान है।

हाल में शम्मी नारंग फ़िल्म 'सुल्तान' में भी दिखे थे कमेंट्री करते हुए. बहुत कम लोगों को पता होगा, लेकिन दिल्ली मेट्रो में सफ़र करने वाले लाखों मुसाफिरों के कानों में रोज़ाना उनकी आवाज़ गूंजती है, जो मुसाफिरों को वक़्त-वक़्त पर ख़बरदार करती रहती है- 'कृपया दरवाज़ों से हटकर खड़े हों.' जी हां, यह शम्मी नारंग की ही आवाज़ है. दिल्ली मेट्रो ही नहीं, मुंबई, बैंगलोर, जयपुर, हैदराबाद की मेट्रो के लिए भी उन्हीं की आवाज़ रिकॉर्ड की गई है। 

शम्मी नारंग जब दूरदर्शन पर समाचार पढ़ते थे
शम्मी जी से संयोग मुलाक़ात हुई. दिन था रविवार 24 जुलाई 2016. जगह- दिल्ली से सटे नोएडा की फिल्म सिटी का मारवाह स्टूडियोज़. मौका टीवी पत्रकारों के काव्य समागम 'शब्दोत्सव' का था. शम्मी साहब से मिलना यादों के गलियारों में फिर से चहलकदमी करने जैसा रहा. घड़ी की सुइयां मानों तीन दशक पीछे चली गई हों. एकदम फ्लैशबैक टाइप. सीधे अस्सी के दशक के टीवी समाचारों के दौर में.

शम्मी नारंग दूरदर्शन के युग में घर-घर पैठ बना चुके थे. अब भी वो लोगों के ज़ेहन में बसे हैं. इससे जुड़ा एक मज़ेदार किस्सा भी शम्मी नारंग ने बातों-बातों में सुनाया. बोले- "एक दिन एक 85 साल की बूढ़ी महिला अपनी पोती की शादी का कार्ड देने मेरे घर पर आई. अपनी पोती से बोली- हम इन्हीं (शम्मी नारंग) को देखकर बड़े हुए हैं. उसके बाद मेरी पत्नी मुझे बोलीं कि अब तुम जींस-शर्ट पहनना छोड़कर आस्था और संस्कार चैनल देखना शुरू कर दो."
कृपया दरवाज़ों से हटकर खड़े हों कृपया दरवाज़ों से हटकर खड़े हों Reviewed by Manu Panwar on July 25, 2016 Rating: 5

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