सरकारी दामाद होने के फायदे

मनु पंवार


सौजन्य : Google
हमारे देश में प्राय: दो प्रकार के दामाद पाए जाते हैं। पहला निजी दामाद और दूसरा सरकारी दामाद। कई दामाद घर जमाई भी होते हैं। दामाद को घर में सम्मानपूर्वक 'जमाई राजा' कहकर भी पुकारा जाता है। इसी वजह से अक्सर जमाई खुद को 'राजा' समझने लगता है और अपनी राजशाही के चक्कर में ससुरालियों का बंटाधार कर डालता है। सरकारी दामाद भी जमाई राजा टाइप ही होते हैं, लेकिन आधुनिक भारत का राजनीतिक इतिहास गवाह है कि दामाद ससुरालियों के साथ-साथ सरकार का भी बंटाधार कर डालते हैं। सरकार की मजबूरी होती है कि उसे सरकारी दामाद की खिदमत में जुटना पड़ता है। कई बार खिदमत इतनी बेहिसाब हो जाती है कि दामाद बेचारा छोटी-मोटी गलती कर बैठता है। उसकी छोटी-मोटी गलती को मीडिया वाले बड़ा बना डालते हैं। हिन्दी में ऐसी परिस्थितियों पर मुहावरे भी प्रचलित हैं, तिल का ताड़ बना डालना या बात का बतंगड़ बना देना। 

दामाद चूंकि पूरी सरकार का दामाद होता है लिहाजा वह बेफिक्र रहता है और करप्शन इत्यादि छोटे-मोटे आरोप लगने के बाद भी अपनी सफाई देने सामने नहीं आता। उसके ससुरालियों की पार्टी खुद संज्ञान लेते हुए सारा काम-धाम छोड़कर पूरी ताकत झोंककर उसके बचाव में कूद पड़ती है। बयान बहादुर नेता ऐसा करके पार्टी हाईकमान में अपने नंबर बढ़ाते रहते हैं। उन्हें पार्टी में इसका यथोचित पुरस्कार भी मिलता है। इस तरह अपरोक्ष रूप से दामाद कई नेताओं की तरक्की की राह खोलता है।


सरकारी दामादों के अलिखित अधिकार ज्य़ादा होते हैं, लेकिन उनके कर्तव्यों का कहीं कोई उल्लेख नहीं मिलता है। चूंकि दामादों के कर्तव्यों पर संविधान खामोश है, इसलिए सरकारी दामादों के पास कामधंधा नहीं होता। जब 'काम' नहीं होता तो दामाद अपना 'धंधा' शुरू कर देते हैं। नादान लोग लांछन लगाने लगते हैं कि दामाद धंधे में उतर गया। जबकि वो नादान ये नहीं जानते कि धंधा करना दामाद की ज़रूरत नहीं होती, बल्कि अपना खाली वक़्त गुजारने अर्थात् बोरियत दूर करने के लिए दामाद को ऐसा करना पड़ता है। दामाद का बोर होना सरकारों के लिए शुभ संकेत नहीं माना जाता। इसीलिए दामाद सत्ता द्वारा प्रदत्त अदृश्य शक्तियों का भरपूर उपयोग कर रहा होता है। सरकारी दामाद होने के नाते यह उसका हक‍़ भी बनता है।

दामाद की राजनीतिक ज़मीन बहुत मजबूत होती है, इसलिए जमीन की ख़रीद-फरोख़्त का धंधा उसे ज्यादा सूट करता है। वह ज़मीनों की डील पे डील करता जाता है और एक दिन दामाद रियल एस्टेट का बड़ा डीलर बन जाता है। दामाद कब डीलर में बदल जाता है,इसका आभास न ससुरालियों को होता है और न ही सरकार को। अपने इस नए अवतार में दामाद इस कदर घुल-मिल जाता है कि कभी-कभी तो यह पता ही नहीं चलता कि डीलर कौन है और दामाद कौन?

LINK : मेरा यह व्यंग्य 'अमर उजाला' अख़बार के एडिटोरियल पेज पर प्रकाशित हो चुका है।)
सरकारी दामाद होने के फायदे सरकारी दामाद होने के फायदे Reviewed by Manu Panwar on August 31, 2016 Rating: 5

No comments