शीशे का घर बनाने के ख़तरे

मनु पंवार

शीशे के घर बनाने के रिस्क बहुत हैं जी. हमेशा यह डर बना रहता है कि कहीं कोई पत्थर न मार दे. यही नहीं, शीशे के घर वाले बंदे के पैरों में नैतिकता की बेड़ी पड़ जाती है. हाथ बंध जाते हैं. यानी कि अगर उसने बैंक से लोन लेकर या ब्लैक मनी से या किसी के यहां डाका डालकर अपने लिए शीशे का घर बना लिया है, तो वो किसी दूसरे के घर पर पत्थर नहीं फेंक सकता. नैतिकता का अलिखित तकाजा यही है। पत्थर फेंकने की स्थिति में कोई भी बंदा रंगेहाथ धर लेगा और शीशे के घर वाली नैतिकता का लेक्चर देकर ऐसी तैसी कर देगा. 

ऐसी सिचुएशन में किसी में भी अभिनेता राजकुमार की आत्मा घुस सकती है. जिन्होंने बरसों पहले फ़िल्म 'वक़्त' में डायलॉग मारा था- "चिनाय सेठ...! जिनके घर शीशे के बने होते हैं वो दूसरों पे पत्थर नहीं फेंका करते।"  बताइए...शीशे का घर न बनाया, गुनाह कर दिया। हर कोई राजकुमार बनकर ताने कसने लगता है।

असल में शीशे और पत्थर का बैर बड़ा पुराना है। लेकिन इस बैर में नुकसान हर हाल में शीशे का ही होता है। मजबूत कितना भी हो, शीशा चटक जाता है या टूट जाता है। पत्थर का क्या है...। वो जिसे भी लगेगा, चोट दूसरे को ही देगा। हीरोइन ने भीड़ से गुहार लगाता यह गाना एंवैई थोड़ा नहीं गाया था-'कोई पत्थर से ना मारे मेरे दीवाने को।' राजकुमार साहब ने इसीलिए चिनॉय सेठ को साल 1965 में ही आगाह कर दिया था। जी हां, 1965। उसी साल रिलीज़ हुई थी डायरेक्टर यश चोपड़ा की फ़िल्म 'वक़्त'। इस फ़िल्म में राजकुमार साहब ने अपने ख़ास अंदाज़ में ये डायलॉग मारा था। 


याद कीजिए-1965। तब भारत-पाकिस्तान के बीच जंग हुई थी। आज जंग तो नहीं हो रही है, लेकिन जंग जैसा माहौल तो है। फिर भी वही डायलॉग फिज़ाओं में गूंज रहा है, 'जिनके घर शीशे के  होते हैं, वो दूसरों पे पत्थर नहीं फेंका करते।'  हालांकि इस समय इस डायलॉग में 'चिनॉय सेठ' मिसिंग है। 51 साल हो गए हैं। शायद चल बसे होंगे। वैसे डायलॉग को फेमस करने वाले राजकुमार साहब भी अब स्वर्गवासी हो चुके हैं। मगर डायलॉग अब तक कायम है। संयोग देखिए कि डायलॉग मारने वाले अभिनेता राजकुमार भी वर्तमान पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में ही पैदा हुए थे। 'शीशे के घरवाले' नवाज़ शरीफ़ को भी हमारी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संयुक्त राष्ट्र के पोडियम पर खड़े होकर उसी बलूचिस्तान को लेकर आगाह किया।

तो नवाज़ हों या आप हों, शीशे के घर बनाने से पहले लाख बार सोचिएगा। पत्थर का ख़तरा हरदम बना रहता है। जनकवि दुष्यंत कुमार तो ऐसी सिचुएशन को पहले ही भांप गए थे। उन्होंने पत्थर को शीशे के घर में फेंकने के बजाय आसमान में उछालने की सलाह दी थी। वो शेर याद है न-

"कैसे आकाश में सूराख़ हो नहीं सकता,
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो।"

शीशे का घर बनाने के ख़तरे शीशे का घर बनाने के ख़तरे Reviewed by Manu Panwar on September 27, 2016 Rating: 5

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