...क्योंकि सेंटा क्लॉज सरकार नहीं है
मनु पंवार
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गिफ्ट बांटता सेंटा |
कभी-कभी मुझे सेंटा क्लॉज किसी पब्लिक वेलफेयर स्टेट यानी लोक कल्याणकारी राज्य का नुमाइंदा लगता है.लाल लिबास और झक सफेद दाढ़ी वाला वह बंदा ठंड के मौसम में
ही प्रकट होता है और सबको तोहफे देता है. महानगरों के फुटपाथों पर ठंड से ठिठुरते लोगों को वो कंबल बांट देता है. वो जानता है कि ठंड बहुत ठंडी होती है. वह ग़रीबों को ज़्यादा लगती है. इसलिए
कि ग़रीबों की चमड़ी मोटी नहीं होती. उनकी काया कमज़ोर और सिकुड़ी होती है.
ठंड इस
तरह की काया में ज़्यादा आसानी से प्रवेश कर लेती है. मोटी चमड़ी वालों के पास ठंड
से निपटने के मोटे इंतजाम होते हैं. इसलिए ठंड चाहकर भी उनकी इस किलेबंदी को भेद
नहीं पाती. वह हर सर्दी में ठंड को परास्त कर डालते हैं. मोटी चमड़ीवालों के पास ब्लोवर,
हीटर इत्यादि गर्म औजार होते हैं. इससे ठंड उनके पास फटकने का भी दुस्साहस नहीं कर
पाती. ठंड को गर्म चीज़ों से डर लगता है. जैसे सरकारें अपनी आलोचना से घबराती हैं, संसद में अविश्वास
प्रस्ताव, स्थगन प्रस्ताव से डरती है. जैसे वह महंगाई पर चर्चा कराने से घबराती
है. जैसे वह सड़क पर बड़े विरोध
प्रदर्शनों और असहमति की आवाज़ों से ख़ौफ़ खाती है.
गर्म चीजें ठंड के अस्तित्व को चुनौती देती हैं. इसलिए
ठंड को गर्म चीज़ों से डर लगता
है. ठंड ऐसे मौकों पर कई बार अपना लोकतांत्रिक लिबास उतार डालती है. ठंड इस
फिराक़
में रहती है कि संसार से गर्मी का अस्तित्व ही मिटा डाले ताकि उसकी
निर्द्वन्द सत्ता
चलती रहे. इसके लिए वो 'विपक्ष से मुक्त' देश का नारा देती हैं. ठंड बारहों
महीने खुद को बनाए रखना चाहती है. ठंड के भीतर किसी तानाशाह की आत्मा जागने
लगती है. लेकिन गनीमत है कि प्रकृति ने सबका सीज़न तय किया है. ठंड का भी अपना सीज़न
है. इसलिए उसकी मज़बूरी है कि उसे अपने ही मौसम में प्रकट होना है. उसी में अपने होने का अहसास दिलाना
है. ठंड ऐसा करती भी है.
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फोटो सौजन्य- ट्विटर |
ठंड की अपनी तासीर है. वह वातावरण में नमी पैदा करती है. नमी ठंड का प्रतीक
है. ठंड पारे की हैसियत गिरा देती है. जैसे डॉलर रुपये की हैसियत गिरा रहा है.
जितना पारा लुढ़केगा, ठंड उतनी ही बढ़ेगी. रुपया जितना गिरेगा, महंगाई उतनी ही
बढ़ेगी. अपनी सरकार बहादुर बढ़ती महंगाई को इसी दलील से तर्कसंगत ठहराती है.ठंड इंसान को जकड़ लेती है. कई दफा हाड़ तक को कंपकंपा देती
है. अपने सीजन में ठंड अपनी हैसियत बताती है. यह एक तरह से ठंड का शक्ति प्रदर्शन
करने का अंदाज़ भी है. शक्ति प्रदर्शन करने से आप दूसरों को अपने कद और अपनी ताकत का
अहसास कराते हैं। राजनीति में इसका खूब चलन है।
ठंड
बड़ी दंभी होती है. उसे अपने लिए खुला मैदान चाहिए. इसीलिए सड़कों,
फुटपाथों पर बेबस पड़ी देहें उसे ज़्यादा सूट करती हैं। लिहाजा
जिसकी चमड़ी जितनी मोटी होगी, उसकी जान उतनी ही महफूज़। ठंड फुटपाथों,
झोपड़पट्टियों में कमज़ोर और सिकुड़ी काया में घुसकर कई बार प्राण हर लेती
है। ठंड
कमज़ोर काया वालों की देह को सदा के लिए ठंडी कर देती है। ऐसे देहें ख़बर
नहीं
बनतीं। वो सिर्फ ठंड से हुई मौतों के आंकड़े में दर्ज हो जाती हैं। इसलिए
सरकार को
उससे तकलीफ़ नहीं होती।
ठंड के पीछे सरकार का कोई हाथ नहीं होता, लिहाजा वह फुटपाथों
और झोपड़ियों में ठंड से निपटने के इंतजाम जुटाने में हाथ नहीं बंटाती। कई बार वह
अलाव का इंतजाम कर लेती है। लेकिन अलाव से ठंड का कुछ नहीं बिगड़ता। इसीलिए ठंड में फुटपाथों पर पड़ी सिकुड़ी देहों के लिए सेंटा क्लॉज बहुत ज़रूरी है।
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कार्टून साभार: कार्टूनिस्ट सतीश आचार्य के ट्विटर अकाउंट से |
सेंटा
क्लॉज सरकार नहीं है। वह भेदभाव नहीं करता। वह
फुटपाथों पर सबको चॉकलेट और कम्बल बांटता फिरता है। वह चुपचाप किसी के
सिरहाने पर उपहार रखकर दबे पांव चल देता है। सेंटा क्लॉज अपनी इस
संवेदनशीलता का विज्ञापन नहीं करता। वह ठंड में फुटपाथों पर निरीह
देहों का सहारा है.
...क्योंकि सेंटा क्लॉज सरकार नहीं है
Reviewed by Manu Panwar
on
December 25, 2017
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