बुरांश के फूलों का खिलना क्यों डरा रहा है?
मनु पंवार
(वैधानिक चेतावनी : यह व्यंग्य नहीं है)
फूल खिले देखकर भला खुशनुमा अहसास किसे नहीं होगा, लेकिन उत्तराखंड के पहाड़ों में अबके बुरांश या बुरुंश के फूल खिलने से खतरे की घंटी सुनाई दे रही है. वो इसलिए क्योंकि अबके समय से पहले ही बुरांश के पेड़ सुर्ख फूलों से लकदक हो गए हैं. वरना तो हर साल मार्च-अप्रैल के महीने में पहाड़ बुरांश के फूलों से दमक उठते हैं. अबके उन पेड़ों पर जनवरी में ही फूल खिल उठे हैं.
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टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट |
आज सुबह-सुबह टाइम्स ऑफ इंडिया के दिल्ली एडिशन में पहले पेज पर ये बॉटम स्टोरी देखी तो चौंक गया. मौसम के ये बदलाव हिमालयी इलाके में किस कदर असर डाल रहे हैं, बुरांश के फूलों का जल्दी खिल आना इसकी तरफ इशारा कर रहा है. रिपोर्ट बता रही है कि अबके बेमौसम फूल तो खिल आए हैं, लेकिन ये पूरी तरह विकसित नहीं हो पाए. इन बुरांश के फूलों में न वैसा सुर्ख रंग आ पाया है, न समुचित जूस है, न वैसा आकार और न वैसी मात्रा...यहां तक कि इस बेमौसम खिले बुरांश में औषधि का पारंपरिक गुण भी जाता रहा. जानकार मान रहे हैं कि ये सब ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से हुआ है. अबके पूरी शीत ऋतु सूखी गुजर रही है.
आखिर ये बुरांश या बुरुंश है क्या चीज़, ज़रा इसको भी समझते हैं. बुरांश को अंग्रेज़ी में रोडडेन्ड्रन (Rhododendron) कहा जाता है. बुरांश का पेड़ उत्तराखंड का राज्य वृक्ष है और ये भी पता चला है कि नेपाल में बुरांश के फूल को राष्ट्रीय फूल घोषित किया गया है. उत्तराखण्ड के पहाड़ी लोकजीवन में, उसके संस्कारों और उसकी आर्थिकी में बुरांश का फूल खूब महकता रहा है. छोटे स्तर पर ही सही, बुरांश के फूल से जूस निकालने और इससे दूसरे प्रोडक्ट तैयार करने से भी कई लोगों का गुजारा चलता है. बुरांश के जूस को हृदय की बीमारियों, किडनी और लिवर के लिए औषधि भी माना जाता है और जिनको अपच की बीमारी है, उनके लिए भी बुरांश का जूस रामबाण है.
आखिर ये बुरांश या बुरुंश है क्या चीज़, ज़रा इसको भी समझते हैं. बुरांश को अंग्रेज़ी में रोडडेन्ड्रन (Rhododendron) कहा जाता है. बुरांश का पेड़ उत्तराखंड का राज्य वृक्ष है और ये भी पता चला है कि नेपाल में बुरांश के फूल को राष्ट्रीय फूल घोषित किया गया है. उत्तराखण्ड के पहाड़ी लोकजीवन में, उसके संस्कारों और उसकी आर्थिकी में बुरांश का फूल खूब महकता रहा है. छोटे स्तर पर ही सही, बुरांश के फूल से जूस निकालने और इससे दूसरे प्रोडक्ट तैयार करने से भी कई लोगों का गुजारा चलता है. बुरांश के जूस को हृदय की बीमारियों, किडनी और लिवर के लिए औषधि भी माना जाता है और जिनको अपच की बीमारी है, उनके लिए भी बुरांश का जूस रामबाण है.
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बुरांश के फूल से जूस निकालने की प्रक्रिया में जुटी पहाड़ी महिलाएं |
पहाड़ों के तो लोकगीतों में भी बुरांश का बहुत ज़िक्र मिलता है. उत्तराखण्ड के लोकप्रिय गीतकार, गायक नरेन्द्र सिंह नेगी के एक चर्चित गढ़वाली गीत की ये पंक्तियां देखिए-
'मेरा डांडी कान्ठ्यूं का मुलुक जैल्यु
बसंत ऋतु मा जैई...
हैरा बणु मा बुरांशी का फूल
जब बणाग लगाणा होला..'
इसका हिंदी में भावानुवाद ये है- 'मेरे पहाड़ों में जब भी जाना चाहोगे, तो बसंत ऋतु में जाना. तब हरे-भरे जंगलों में सुर्ख लाल रंगों में खिले बुरांश के फूल धधकती हुई अग्नि जैसा आभास कराएंगे.'
बसंत ऋतु मा जैई...
हैरा बणु मा बुरांशी का फूल
जब बणाग लगाणा होला..'
इसका हिंदी में भावानुवाद ये है- 'मेरे पहाड़ों में जब भी जाना चाहोगे, तो बसंत ऋतु में जाना. तब हरे-भरे जंगलों में सुर्ख लाल रंगों में खिले बुरांश के फूल धधकती हुई अग्नि जैसा आभास कराएंगे.'
लेकिन अबके शायद ही ऐसा नज़ारा देखने को मिले. पूरा पर्यावरणीय चक्र गड़बड़ा गया है. वसंत ऋतु तो जब आएगी, तब आएगी ही, वसंत में खिलने वाले बुरांश ने उससे पहले ही एंट्री मार ली है. इसमें खुश होने की ज़रूरत नहीं है, यह एक बड़ी चिंता की बात है.
बुरांश के फूलों का खिलना क्यों डरा रहा है?
Reviewed by Manu Panwar
on
January 31, 2018
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