प्रेस को दबाना कित्ता ज़रूरी?

मनु पंवार 
फोटो साभार : Google

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भारी हो-हल्ला मचा हुआ है। बंदे कह रहे हैं कि प्रेस को दबाया जा रहा है। मैं तो कहता हूं कि प्रेस को तो दबाना ही पड़ता है। प्रेस को नहीं दबाएंगे तो आपकी कमीज़ पे सलवटें रह जाएंगी। क्रीज़ नहीं आ पाएगी। इस फलसफ़े को धोबी से अच्छा और कौन समझा सकता है। प्रेस को दबाने से सलवटें छुप जाया करती हैं। सब कुछ चकाचक नज़र आता है। फील गुड होने लगता है। इत्ती सी बात नहीं समझते यार ! 

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शर्म के सिगनल !
मुज़फ़्फ़रपुर में बालिका गृह में हुए अनाचार पर नीतीश कुमार लंबे टाइम के बाद आज शर्मसार हुए। लगता है बिहार में अब तक शर्म के सिग्नल वीक चल रहे थे।

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पुराना इंडिया किसे देंगे?
इमरान ख़ान ने कहा कि वो 'नया पाकिस्तान' बनाएंगे। इधर, मोदी साहब तो कब के कह चुके हैं कि वो 2022 में 'न्यू इंडिया' बनाएंगे। लेकिन एक बात समझ में नहीं आई। जब इमरान खान और मोदी जी क्रमश: 'नया पाकिस्तान' औए 'न्यू इंडिया' बनाएंगे, तो पुराना पाकिस्तान और पुराना इंडिया किसके हवाले कर जाएंगे?

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फ्रेंड का शिप
और अंत में...। जो दिन-रात फ्रेंड का का 'Ship' डुबोने के जतन में लगे रहते हैं, उन मित्रों को भी आज फ्रेंडशिप-डे की बधाइयाँ।.
प्रेस को दबाना कित्ता ज़रूरी? प्रेस को दबाना कित्ता ज़रूरी? Reviewed by Manu Panwar on August 05, 2018 Rating: 5

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