अथश्री अटल कथा !
मनु पंवार
वैसे एक सच ये भी है कि वाजपेयी जी को सरकार चलाने के लिए इतना कम्फ़र्टेबल माहौल नहीं मिला। विपक्ष से ज़्यादा तो अपने भीतर के विपक्ष ने उनकी सरकार की नाक में दम किये रखा। भारतीय मजदूर संघ और स्वदेशी जागरण मंच जैसे आरएसएस के संगठन वाजपेयी सरकार के खिलाफ छापामार लड़ाइयां छेड़े हुए थे।
दत्तोपंत ठेंगड़ी की अगुवाई में बीएमएस और एसजेएम दोनों ने सरकार को धुआं दिया हुआ था। मुझे याद है, तब किसी प्रोग्राम में शिमला पहुंचे स्वदेशी जागरण मंच के तत्कालीन महामंत्री मुरलीधर राव से एक इंटरव्यू में मैंने पूछा, आप लोग अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा क्यों खोले हुए हैं? तब राव ने कहा था, 'मुद्दों को लेकर हमें अपनी सरकार की भी परवाह नहीं।' यह सब ऑन रिकॉर्ड है। उन्ही राव को इतनी तरक़्क़ी मिली कि आज वो बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव हैं।
मोदी जी ने वाजपेयी राज से सबक लिया। आते ही पार्टी को पूरी तरह से अपने नियंत्रण में ले लिया और आरएसएस को भी खुश करते रहे। शायद ये सोच के कि सामने के विपक्ष से ज़्यादा मुश्किल अपने भीतर के विपक्ष से निपटना है।
अटल- 2
वैसे जानने वाले जानते होंगे कि
गुजरात दंगों के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने तत्कालीन
मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर इस्तीफे का दबाव बढ़ाने के लिए क्या-क्या जतन
न किए। वह उन दिनों कई चेहरों से बोल रहे थे। उन्हीं में से एक चेहरा थे
शांता कुमार। वाजपेयी सरकार में उपभोक्ता मामलों के मंत्री। हिमाचल के
कांगड़ा से सांसद। तब मैं दिल्ली में नहीं था, शिमला में 'अमर उजाला'
अख़बार का संवाददाता था और वहीं से शांता कुमार के ज़रिये दिल्ली में चल
रहे खेल को समझने की कोशिश कर रहा था।
उन्हीं
दिनों शांता कुमार एक रात 9 या 10 बजे 'आज तक' चैनल पर एंकर दिबांग के
सामने प्रकट हुए। दिबांग ने उनका लंबा इंटरव्यू लिया और इस इंटरव्यू ने
इतनी खलबली मचाई कि वाजपेयी को भारी मन से शांता कुमार की बलि लेनी पड़ी।
शांता कुमार ने उस इंटरव्यू के दौरान वाजपेयी की कुछ कवितायें भी उद्घृत
कीं। कहा, 'मैं अगर (गुजरात का) सीएम होता तो कब का इस्तीफा दे देता।' उनका
साफ-साफ इशारा मोदी की तरफ था। वाजपेयी कैबिनेट का कद्दावर मंत्री बिना
वाजपेयी की सहमति से अपनी ही पार्टी के एक मुख्यमंत्री के खिलाफ इतनी बड़ी बात कह जाता, ऐसा मुमकिन नहीं था। इसीलिए
आडवाणी से लेकर आरएसएस सब नाराज़ हो गए। इत्ते नाराज़ कि शांता कुमार को
इस्तीफा देना पड़ा। वाजपेयी शांता कुमार को बचा नहीं पाए।
इस
राजनीतिक शहादत के बाद शांता कुमार शिमला लौटे। पीटर हॉफ में हम सब
पत्रकारों ने उन्हें घेरा। लेकिन उन्होंने सिर्फ इतना कहा, जो कहना था, कह
चुका। अब कुछ नहीं कहूंगा।
वैसे उस इंटरव्यू के ज़रिये शांता
कुमार ने एक तीर से दो निशाने साधे। परोक्ष रूप से वाजपेयी का मैसेज भी दे
गए और मोदी से अपना पिछला हिसाब भी चुकता कर गए। गुजरात का सीएम बनने से
पहले मोदी बीजेपी के हिमाचल प्रभारी थे। मोदी ने शांता कुमार की जड़ें
खोदकर प्रेम कुमार धूमल को रोपने में पूरी मदद की थी। शांता की खुन्नस तभी
से थी। ख़ैर, आगे की कथा सब जानते ही हैं। मोदी राज में शांता कुमार भी
आडवाणी की गति को प्राप्त हो गए।
अटल-3
अटल
बिहारी वाजपेयी के सबसे चहेते नेताओं में से थे प्रमोद महाजन। सभी जानते
हैं कि उनकी कैबिनेट में प्रमोद महाजन के पास सबसे पावरफुल मिनिस्ट्री भी
थी। प्रमोद महाजन से मेरी मुलाक़ात शिमला मे ही हुई। वो तब संचार मंत्री
थे। हिमाचल में भी बीजेपी (धूमल) की ही सरकार थी।
मैंने प्रमोद महाजन से इंटरव्यू
ख़त्म करने के बाद कहा, 'आपसे जुड़े ये संगठन पावर में आते ही बडे उद्दण्ड
हो जाते हैं, ज़रा इन्हें कंट्रोल कीजिए सर।' प्रमोद महाजन ने एक चौड़ी
मुस्कान बिखेरी लेकिन कहा कुछ नहीं। उनकी वो मुस्कान मुझे उन दिनों वाजपेयी
सरकार की भीतरी मज़बूरियों का प्रतिबिंब सी लगी। उन दिनों आरएसएस से जुड़े
तमाम संगठन अपनी फुल फॉर्म में आ गए थे।
अथश्री अटल कथा !
Reviewed by Manu Panwar
on
August 17, 2018
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