धीरे-धीरे मेरी ज़िदगी में आना टाइप...!
मनु पंवार
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रामदास आठवले केंद्र में सामाजिक न्याय मंत्री हैं |
केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले ने कहा है कि '15 लाख रुपये' एकाउंट में धीरे-धीरे आएंगे. वो बहुचर्चित '15 लाख' साल 2014 के इलेक्शन के दिनों से चलना शुरू हुए थे, अब तक मंज़िल पर नहीं पहुंचे. इस बीच, 2019 का इलेक्शन भी सामने आ गया तो सरकार बहादुर को फिक्र सताने लगी. लेकिन पब्लिक को आठवले की बात मान लेनी चाहिए. कहावत भी है-धीरे पकेगा तो अच्छा पकेगा. कहावत ही क्या जी, अक्सर यात्रा करते हुए आपको सड़क किनारे ऐसे बोर्ड दिख जाते हैं जिनमें लिखा होता है- धीरे चलने में ही सफर का आनंद है. तो उन '15 लाख' के धीरे-धीरे आने का मज़ा लीजिए. वो अभी सफर में है. बकौल आठवले, वो 'धीरे-धीरे' ही आ पाएंगे.
मुझे तो लगता है कि इस 'धीरे-धीरे' में हमारी ज़िंदगी का कोई दर्शन भी छिपा है. यह इतना खास कि बॉलीवुड में भी 'धीरे-धीरे' की महत्ता पर गीत तक रचे गए हैं. वो याद होगा, धीरे-धीरे से मेरी ज़िंदगी में आना....। गीतकार को पता है कि महबूबा अगर किसी की ज़िंदगी में स्पीड से आ गई, तो एक्सीडेंट का ख़तरा हो सकता है. इसीलिए गीतकार ने भी आशिकी में महबूब के आने की स्पीड लिमिट तय कर दी. धीरे-धीरे.
मुझे तो लगता है कि इस 'धीरे-धीरे' में हमारी ज़िंदगी का कोई दर्शन भी छिपा है. यह इतना खास कि बॉलीवुड में भी 'धीरे-धीरे' की महत्ता पर गीत तक रचे गए हैं. वो याद होगा, धीरे-धीरे से मेरी ज़िंदगी में आना....। गीतकार को पता है कि महबूबा अगर किसी की ज़िंदगी में स्पीड से आ गई, तो एक्सीडेंट का ख़तरा हो सकता है. इसीलिए गीतकार ने भी आशिकी में महबूब के आने की स्पीड लिमिट तय कर दी. धीरे-धीरे.
बॉलीवुड के गीतकारों ने तो यह भी कहा है कि 'धीरे-धीरे प्यार को बढ़ाना है..हद से गुज़र जाना है.' यानी किसी हद से गुज़रना है तो स्पीड धीरे-धीरे रक्खो. कितनी नेक सलाह है. लेकिन उन बहुचर्चित, बहुत प्रतीक्षित '15 लाख' की भी स्पीड लिमिट तय है, ये पूरे देश को अब जाकर आठवले साहब के सौजन्य से ही पता चल पाया. सरकार बहादुर ने भी सोचा होगा कि एक ही झटके में बंदों के अकाउंट में 15 लाख रुपये डाल दिए तो फिर ज़्यादातर बंदे अस्पतालों में पाए जाएंगे. अस्पतालों पर लोड बढ़ जाएगा. अरे भई, इत्ती बड़ी रकम अचानक आ जाएगी तो हार्ट अटैक नहीं पड़ेगा ! इसीलिए सरकार ने स्पीड का ध्यान रखा. सरकार को भी पता है, धीरे चलने में ही सफर का आनंद है.
इसीलिए आठवाले साहब कह गए कि सब धीरे-धीरे आ जाएगा. लेकिन कितने धीरे? ये कहीं से भी स्पष्ट नहीं है. मुझे तो डर है कि कहीं ये न हो कि धीरे-धीरे के चक्कर में हमारी पब्लिक अपना धीरज खो बैठे. मुझे हिंदी के चर्चित कवि केदारनाथ सिंह की कविता याद आ रही है-
धीरे-धीरे पत्ती
धीरे-धीरे फूल
इसीलिए आठवाले साहब कह गए कि सब धीरे-धीरे आ जाएगा. लेकिन कितने धीरे? ये कहीं से भी स्पष्ट नहीं है. मुझे तो डर है कि कहीं ये न हो कि धीरे-धीरे के चक्कर में हमारी पब्लिक अपना धीरज खो बैठे. मुझे हिंदी के चर्चित कवि केदारनाथ सिंह की कविता याद आ रही है-
धीरे-धीरे पत्ती
धीरे-धीरे फूल
धीरे-धीरे ईश्वर
धीरे-धीरे धूल
धीरे-धीरे लोग
धीरे-धीरे बाग
धीरे-धीरे भूसी
धीरे-धीरे आग
धीरे-धीरे मैं
धीरे-धीरे तुम
धीरे-धीरे वे
धीरे-धीरे हम.
धीरे-धीरे मेरी ज़िदगी में आना टाइप...!
Reviewed by Manu Panwar
on
December 19, 2018
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