फेसबुक पर तो पाकिस्तान का नामोनिशान मिट गया !
मनु पंवार
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साभार : लहरी का कार्टून फेसबुक पर मिला |
पता नहीं हमारी सेना और सरकार पाकिस्तान को सबक सिखाने में इतनी देरी क्यों कर रहे हैं, जबकि फेसबुक पर तो सारे रास्ते और सारे समाधान मौजूद हैं। पाकिस्तान पर कैसे चढ़ाई करनी है, पाकिस्तान को कैसे तबाह करना है, इसका पूरा प्लान फेसबुक के योद्धाओं की टाइमलाइन पर करीब हफ्तेभर से घूम रहा है। यही नहीं, बैकअप के लिए आभासी लड़ाकों की एक पूरी फौज़ भी तैयार है।
वैसे यहां तो 14 तारीख को पुलवामा अटैक के बाद से ही जंग का उद्घोष हो चुका था। फेसबुक के योद्धा रोज़ाना मुफ्त में जंग के नए-नए
आइडिया झोंक रहे हैं। उन आइडियाज को सरकार और सेना को फौरन लपक लेना चाहिए। 'एक और सर्जिकल स्ट्राइक करो', 'घर में घुसके मारो', 'नेस्तनाबूद कर दो',
'नामोनिशान मिटा दो' जैसी प्रलयंकारी हुंकारें गूंज रही हैं। एकदम तेज़ाबी माहौल है।
स्मार्टफोन के की-बोर्ड पर फेसबुक के वीरों की भुजायें फड़फड़ा रही हैं। धमनियों में लहू उबाल मार
रहा है। बस अब के आर या पार।
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ये कैरिकेचर भी फेसबुक पर घूमता मिला, वहीं से साभार |
फेसबुक के जरिये दुश्मन देश पर
निशाने भी तय हो चुके हैं। पीओके, सिंध, कराची, लाहौर, इस्लामाबाद, रावलपिंडी ...और भी न
जाने क्या-क्या...। मन किया कि आखिरी बार दुनिया के नक्शे पर पाकिस्तान का
नक्शा ढंग से देख लूं। कल ये नक्शा हो न हो। कल को हम अपने नाती-नातिनों,
पोते-पोतियों को तो बता सकेंगे कि इस नक्शे में कभी पाकिस्तान नाम का एक
मुल्क भी हुआ करता था, जिसको हमने पुलवामा अटैक के बाद मिट्टी में मिला दिया।
माहौल ही ऐसा बन
गया है जी। कोई फेसबुक पर तोपें चला रहा था, कोई मिसाइल दाग रहा था। कोई बम वर्षक विमानों से बम बरसा रहा है। मशीनगन, मोर्टार, रॉकेट... जिसे जो मिला, उसी के जरिये फेसबुक से हमला
बोल दिया। आसमान पर एफ-16 और राफेल गर्जन-तर्जन कर रहे हैं। ये बात अलग है
कि राफेल हमें अभी नहीं मिलने वाला,लेकिन सोशल मीडिया पर राफेल उड़ाने
में अपना क्या जाता है जी... !
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इस कार्टूनिस्ट का नाम नहीं मिला, लेकिन फेसबुक से लिया |
'एक के बदले 10 दस सिर' का प्लान तैयार हो चुका है। फेसबुकिया लड़ाकों के तेवर ऐसे हैं कि मानो अभी स्मार्टफोन छोड़छाड़ कर पाकिस्तान पर बम बरसाने निकल पड़ेंगे। वो तो फेसबुक पर पाकिस्तान पर चढ़ाई का रूट
भी तय कर चुके हैं। सुबह का नाश्ता दिल्ली में, लंच अमृतसर में और डिनर
इस्लामाबाद में। दुश्मन देश और उसकी सेना तो कहीं मैदान में है ही नहीं जी।
बस हम ही हम हैं। हमारे ही
हथियार, हमारे ही टैंक, हमारी ही तोपें, हमारे ही विमान, हमारे बम। हुंकार भर ली गई है कि जगह और समय भी हम ही तय
करेंगे।
मैं सोच रहा हूं अगर जुकरबर्ग ने ये फेसबुक न बनाया होता तो हमारी दुनिया कितनी अधूरी होती। हम अपने भीतर मौजूद न जाने कितने टैलेंटेड बंदों से वंचित रह जाते। हमारी कितनी ही लड़ाइयां अपने अंजाम तक नहीं पहुंच पातीं। मैं ये भी सोच रहा हूं कि अगर फेसबुक पिछली सदी के 60 या 70 के दशक में आ गया होता तो क्या दुनिया का महाबली अमरीका, वियतनाम के साथ 20 साल तक जंग में फंसता? कतई नहीं।
फेसबुक पर तो पाकिस्तान का नामोनिशान मिट गया !
Reviewed by Manu Panwar
on
February 20, 2019
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