क्या सरकार गिरकर पाताल पहुंच जाती है?
साभार : संदीप अध्वार्यु का कार्टून उनके ट्विटर हैंडल @CartoonistSan से |
पहले बात तो यही समझ में नहीं आती कि आखिर सरकार गिरती क्यों है? इत्ते मज़बूत लोकतंत्र के गर्भ से इत्ती गिरी हुई सरकार कैसे पैदा हो जाती है? क्या हम उस लोकतंत्र को सही पोषण नहीं दे पा रहे हैं. दूसरी बात ये कि सरकार गिरती है तो कितना गिरती है? क्या उस गिरने की कोई सीमा होती है?
जब सरकार गिरती है तो क्या आवाज़ नहीं होती? अगर आवाज़ होती है तो किसी को सुनाई क्यों नहीं देती? क्या सरकार बेआवाज़ ही गिर जाती है? अगर बेआवाज़ गिर जाती है तो हम ये झूठी उम्मीद क्यों लगाए बैठे रहते हैं कि हमारे विधायक सदन में हमारी आवाज़ बनेंगे? क्यों ऐसा भ्रम पाले रहते हैं कि सरकार हमारी आवाज़ सुनेगी?
सरकार का गिरना एक घटना है, दुर्घटना है या एक प्रक्रिया है? अगर सरकार गिरती है तो फिर उठती क्यों नहीं है? क्या सरकार में गिरकर उठने का माद्दा नहीं होता? क्या गिरने के बाद सरकार की क्षमता ख़त्म हो जाती है? क्या उसके हाथ-पैर काम करना बंद कर देते हैं?
कोई उस गिरी हुई सरकार को उठाता क्यों नहीं है? कहीं ऐसा तो नहीं कि सरकार गिरकर पाताल पहुंच जाती हो? लेकिन हमारे पास तो ऐसे नेता हैं जो सीना ठोक कर कहते हैं कि पाताल से भी खोज निकालूंगा. तो फिर सरकार को पाताल से ढूंढ लाने के जतन क्यों नहीं होते?
किसी को इन सवालों के जवाब पता चलें तो कृपया करके हमें भी बताएं.
क्या सरकार गिरकर पाताल पहुंच जाती है?
Reviewed by Manu Panwar
on
July 24, 2019
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