कभी दिल्ली में भी आओ न 'जंंगलराज' !
मनु पंवार
"हे मुनिश्रेष्ठ, यह 'जंगल राज' क्या बला है?"
"वत्स ! जब कायदे-कानूनों की धज्जियां उड़ने लगती हैं, तब 'जंगल राज' की एंट्री होती है। जंगल में उसी का राज चलता है जो ताकतवर होता है। लेकिन 'जंगल राज' को जंगल ने नहीं, बल्कि राजनीति ने बहुत लोकप्रिय बनाया है।"
"मुनिवर...! 'जंगल राज' कब और कहां आता है? क्या इसके लिए जंगल का होना ज़रूरी होता है?"
"नहीं वत्स...! 'जंगल राज' के लिए जंगल होना ज़रूरी नहीं है, न जानवर होने जरूरी हैं। जहां इंसानी बसासत हो और सरकार भी हो मगर हालात जानवरों जैसे हों, जंगल राज अक्सर वहीं प्रकट होता है।"
"हे मुनिश्रेष्ठ, 'जंगल राज' के आने के बारे में कुछ और ज्ञानवर्द्धन करें..."
"वत्स..! वैसे तो कायदे-कानून टूटने के साथ ही जंगल राज की शुरुआत हो जाती है। मगर आधुनिक राजनीति ने जंगल राज के लिए भी कुछ कायदे-कानून, कुछ नियम-शर्तें भी तय कर दी हैं।"
"जंगल राज के लिए नियम-शर्तें...!! ये कैसा विरोधाभास है मुनिवर...? आप तो कह रहे थे कि जहां नियम-कायदे टूटते हैं, वहां जंगलराज आ जाता है...!
"वत्स...! यह नियम-शर्तें लिखित में नहीं हैं मगर उनका पालन हर सरकार करती है। नये फॉर्मूले के मुताबिक 'जंगल राज' होने की पहली शर्त यह है कि उसमें बिहार की मौजूदगी हो। परंपरागत रूप से 'जंगल राज' का बिहार में ही आने का चलन है। (राजनीति) शास्त्रों में भी ऐसा ही लिखा है। लेकिन बिहार से बाहर 'जंगल राज' तभी कदम रखता है, जब वहां विरोधी पार्टियों की सरकार हो। यह इसकी अनिवार्य शर्त है।"
"हे मुनिश्रेष्ठ! मगर 'जंगल राज' का ये कैसा कायदा है कि आप करें तो राज और विरोधी करें तो जंगल राज?"
"वत्स....यही नए जमाने की राजनीति की रघुकुल रीत है। जिस पार्टी की केंद्र में सरकार है अगर उसी पार्टी की किसी राज्य में भी सरकार है, तो वहां 'जंगल राज' नहीं होता। 'जंगल राज' केवल विरोधी दलों की सरकारों में होता है। यह चलन राजनीति के सनातन काल से चला आ रहा है। इसे राजनीति के भगवान भी नहीं बदल सकते।"
"हे मुनिश्रेष्ठ..कुछ लोग यूपी में हो रही वीभत्स आपराधिक घटनाओं को भी 'जंगल राज' के दायरे में लाने की मांग कर रहे हैं। उनका क्या करें?
"वत्स, ऐसे सवाल करने वाले लोग मासूम हैं। जैसा कि शास्त्रों में लिखा गया है, अगर केंद्र और राज्य दोनों जगह एक ही पार्टी की सरकार हो तो जंगल राज का आना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है।
"मगर हे मुनिवर..! अगर ऐसा है तो यह फॉर्मूला दिल्ली पर लागू क्यों नहीं होता? यहां भी तो विरोधी पार्टी की सरकार है, यहां भी बड़े-बड़े अपराध हो रहे हैं। झपटमार दिनदहाड़े पंतप्रधान की रिश्तेदार तक का पर्स ले उड़े। दिल्ली में वो 'जंगल राज' क्यों नहीं आता मुनिवर?"
चेले के दिमाग की बत्ती जल गई। उसके सवाल पर मुनिवर कुछ देर सोच में पड़ गए। चेले ने अपने सवाल से निरुत्तर कर दिया। फिर एक लंबी सांस खींचते हुए बोले- "वत्स... वैसे 'जंगल राज' का कोई फिक्स नियम तो होता नहीं है।"
इत्ता कहकर मुनिवर अपना झोला उठाके चलते बने। इति 'जंगल राज' कथा।
"वत्स ! जब कायदे-कानूनों की धज्जियां उड़ने लगती हैं, तब 'जंगल राज' की एंट्री होती है। जंगल में उसी का राज चलता है जो ताकतवर होता है। लेकिन 'जंगल राज' को जंगल ने नहीं, बल्कि राजनीति ने बहुत लोकप्रिय बनाया है।"
"मुनिवर...! 'जंगल राज' कब और कहां आता है? क्या इसके लिए जंगल का होना ज़रूरी होता है?"
"नहीं वत्स...! 'जंगल राज' के लिए जंगल होना ज़रूरी नहीं है, न जानवर होने जरूरी हैं। जहां इंसानी बसासत हो और सरकार भी हो मगर हालात जानवरों जैसे हों, जंगल राज अक्सर वहीं प्रकट होता है।"
"हे मुनिश्रेष्ठ, 'जंगल राज' के आने के बारे में कुछ और ज्ञानवर्द्धन करें..."
"वत्स..! वैसे तो कायदे-कानून टूटने के साथ ही जंगल राज की शुरुआत हो जाती है। मगर आधुनिक राजनीति ने जंगल राज के लिए भी कुछ कायदे-कानून, कुछ नियम-शर्तें भी तय कर दी हैं।"
"जंगल राज के लिए नियम-शर्तें...!! ये कैसा विरोधाभास है मुनिवर...? आप तो कह रहे थे कि जहां नियम-कायदे टूटते हैं, वहां जंगलराज आ जाता है...!
"वत्स...! यह नियम-शर्तें लिखित में नहीं हैं मगर उनका पालन हर सरकार करती है। नये फॉर्मूले के मुताबिक 'जंगल राज' होने की पहली शर्त यह है कि उसमें बिहार की मौजूदगी हो। परंपरागत रूप से 'जंगल राज' का बिहार में ही आने का चलन है। (राजनीति) शास्त्रों में भी ऐसा ही लिखा है। लेकिन बिहार से बाहर 'जंगल राज' तभी कदम रखता है, जब वहां विरोधी पार्टियों की सरकार हो। यह इसकी अनिवार्य शर्त है।"
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कुरील का एक पुराना कार्टून साभार |
"वत्स....यही नए जमाने की राजनीति की रघुकुल रीत है। जिस पार्टी की केंद्र में सरकार है अगर उसी पार्टी की किसी राज्य में भी सरकार है, तो वहां 'जंगल राज' नहीं होता। 'जंगल राज' केवल विरोधी दलों की सरकारों में होता है। यह चलन राजनीति के सनातन काल से चला आ रहा है। इसे राजनीति के भगवान भी नहीं बदल सकते।"
"हे मुनिश्रेष्ठ..कुछ लोग यूपी में हो रही वीभत्स आपराधिक घटनाओं को भी 'जंगल राज' के दायरे में लाने की मांग कर रहे हैं। उनका क्या करें?
"वत्स, ऐसे सवाल करने वाले लोग मासूम हैं। जैसा कि शास्त्रों में लिखा गया है, अगर केंद्र और राज्य दोनों जगह एक ही पार्टी की सरकार हो तो जंगल राज का आना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है।
"मगर हे मुनिवर..! अगर ऐसा है तो यह फॉर्मूला दिल्ली पर लागू क्यों नहीं होता? यहां भी तो विरोधी पार्टी की सरकार है, यहां भी बड़े-बड़े अपराध हो रहे हैं। झपटमार दिनदहाड़े पंतप्रधान की रिश्तेदार तक का पर्स ले उड़े। दिल्ली में वो 'जंगल राज' क्यों नहीं आता मुनिवर?"
चेले के दिमाग की बत्ती जल गई। उसके सवाल पर मुनिवर कुछ देर सोच में पड़ गए। चेले ने अपने सवाल से निरुत्तर कर दिया। फिर एक लंबी सांस खींचते हुए बोले- "वत्स... वैसे 'जंगल राज' का कोई फिक्स नियम तो होता नहीं है।"
इत्ता कहकर मुनिवर अपना झोला उठाके चलते बने। इति 'जंगल राज' कथा।
कभी दिल्ली में भी आओ न 'जंंगलराज' !
Reviewed by Manu Panwar
on
October 15, 2019
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