गजब 'कुत्तयापा' चल रहा है !



दिल्ली में आवारा कुत्तों को हटाने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के खिलाफ प्रोटेस्ट (फोटो साभार : PTI)


हम भी क्या गजब देश हैं. बिहार में वोटर लिस्ट से 65 लाख लोगों को नाम काट दिया गया. 'वोट चोरी' के आरोपों पर विपक्ष चुनाव आयोग पर हमलावर है और चुनाव आयोग अपनी विश्वसनीयता के एकदम न्यूनतम बिंदु पर खड़ा है. बड़बोले ट्रंप ने हमारे देश पर पचास परसेंट टैरिफ ठोककर से हमारे घरेलू उद्योगों और हमारे कारोबार की चिंता बढ़ा दी है. एसएससी जैसे एक्गाम में गड़बड़ियां हो गईं.


उत्तराखण्ड से लेकर हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर तक भयानक आपका में इंसानी जानों और हजारों करोड़ की संपत्ति का नुकसान हो गया. जमी-जमाई बसासतें जड़ समेत उखड़ गईं. मानसून में हमारे महानगरों का बुनियादी ढांचा इस कदर एक्सपोज हो गया है कि ज़रा बारिश सी बारिश से पूरा दिल्ली-एनसीआर सड़कों पर रेंगने लगता है. लेकिन ऐसे तमाम जरूरी सवालों पर बात करने, चिंता जताने और एक्शन लेने के बजाय देश में इन दिनों आवारा कुत्तों पर बहस छिड़ी हुई है. 


देश की सबसे बड़ी अदालत ने आवारा कुत्तों से निपटने का एक रास्ता बताया तो उससे बड़े-बडे पॉलिटिकिशियनों, बड़े-बड़े सेलिब्रिटियों की भावनायें आहत हो गईं. उनका कुत्ता प्रेम जाग गया है.लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी इस मसले के मानवीय पक्ष की बात उठा रहे हैं. 



वो अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में सुझाव भी देते हैं कि शेल्टर, नसबंदी, टीकाकरण और सामुदायिक देखभाल के जरिए सड़कों को बिना क्रूरता के सुरक्षित बनाया जा सकता है. तो सांसद प्रियंका गांधी लिख रही हैं कि सिर्फ कुछ हफ़्तों के भीतर शहर के सभी आवारा कुत्तों को शेल्टर में भेजना उनके साथ बेहद अमानवीय व्यवहार का कारण बनेगा। उन्हें रखने के लिए पर्याप्त शेल्टर तो हैं ही नहीं. पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने तो इस मामले में प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप करने की अपील कर डाली.



उधर बॉलीवुड वाले भी अचानक एक्टिव हो गए. बॉलीवुड एक्ट्रेस जाह्नवी कपूर और एक्टर वरुण धवन ने  “heartbeat not menace”  टाइटल से एक पिटिशन अपने इंस्टा स्टोरी में शेयर की. एक्ट्रेस सोनाक्षी सिन्हा ने इंस्टाग्राम पर स्टोरी शेयर करते हुए लिखा कि आवारा कुत्ते समस्या नहीं हैं, बल्कि वे खुद पीड़ित हैं. एक्टर ज़ॉन अब्राहम ने तो देश के चीफ जस्टिस को अपने फैसले का रिव्यू करने की गुजारिश के साथ एक चिट्ठी ही लिख डाली. तो गुजरे दिनों की स्टार एक्ट्रेस शर्मिला टैगोर ने बाकायदा वीडियो मैसेज जारी किया और कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला बेजुबानों और खुद की रक्षा न कर पाने वालों के लिए दरवाजे बंद करने जैसा है.



मामला इतना हाई-प्रोफाइल हो गया कि देश के दो सबसे महंगे वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी आवारा कुत्तों के पैरोकारों की पैरवी सुप्रीम कोर्ट में कर रहे हैं और कोर्ट के बाहर ये आलम है कि बाकी जरूरी सवालों पर कभी न बोलने वाले और अपनी ही लाइफ में चिल करने वाले दिल्ली-एनसीआर के डॉग लवर्स ने इतनी फुर्सत निकाल ली कि वो सड़कों पर उतर आए हैं. प्रोटेस्ट करने लगे. उनका कुत्ता प्रेम इस कदर उफान मार रहा है कि कोर्ट के सामने ही वो वकीलों से भिड़ गए. मारपीट हो गई.


आवारा कुत्ते अचानक वीआईपी हो गए, एकदम हाईप्रोफाइल हो गयी. उनकी अचानक वैल्यू बढ़ गई है. वो पुरानी फिल्मों में एक डायलॉग अक्सर सुना जाता था. जब विलेन को श्राप देती हुई दुखियारी मां अक्सर कहती थी- 'तू एक दिन कुत्ते की मौत मरेगा.' कभी फिल्मों में ऐसे कुत्ता विरोधी डायलॉग लिखने वाले अब खुद के लिखे पर शर्मिंदा हो रहे होंगे क्योंकि ये ऐसा दौर है जिसमें इंसानी जानों की रक्षा पर चर्चा करने का भले ही किसी के पास वक्त न हो, कुत्ते की जिंदगी का सवाल इंपोर्टेंट है.


अपन कोई डॉग हेटर नहीं हूं. न ही उन पर ताना कसने का कोई इरादा है जोकि डॉग लवर्स हैं. ऐसे कठिन समय में जबकि कोई किसी को पूछ नहीं रहा है, ऐसे लोग कम से कम उस बेजुबान जानवर की फिक्र तो कर रहे हैं, उसके लिए सड़क पर उतर रहे हैं.  


ऐसा माहौल बना दिया गया है कि दिल्ली-एनसीआर की सड़कों से आवारा कुत्तों को आठ हफ्ते में हटाकर एनिमल शेल्टर्स में रखने के अपने आदेश पर सुप्रीम कोर्ट को भी री-थिंक करना पड़ा है. मामला एक हायर बेंच को रेफर करना पड़ा. वरना तो सुप्रीम कोर्ट ने पहले दिन ही कह दिया था कि वो दिल्ली में आवारा कुत्तों के मामले में अब किसी याचिका पर सुनवाई नहीं करेगा और कोई दलील भी नहीं मानी जाएगी. सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों के काटने से जुड़े केसों का संज्ञान लेते हुए ये आदेश दिया था।


लेकिन असल सवाल प्राइऑरिटी का है. प्राथमिकताओं का है. इस समय क्या ज़रूरी सवाल हैं और किन पर लोगों की ऊर्जा खर्च हो रही है. बिहार में वोटर लिस्ट को दुरुस्त करने के नाम पर जो कुछ चल रहा है, वो मामूली घटना तो नहीं है. ट्रंप का हम पर पचास परसेंट टैरिफ लगाना कोई मामूली बात थोड़े ही है. देश को इस पर चिंता जताने का हक भी तो है कि टैरिफ लगने के बाद अमेरिका इंपोर्ट होने वाले हमारे सामानों का क्या होगा? हमारे कारोबार का क्या होगा? 


न हमारे यहां नौकरियां सुरक्षित हैं, न परीक्षायें सलामत हैं. ऊपर से पहाड़ी राज्यों में आपदाओं से इतनी तबाही मची है कि उस तरफ तो ऐसा लगता है अब किसी का ध्यान ही नहीं है. तो फिर आवारा कुत्तों के मामले को इतना हाई प्रोफाइल बनाकर पूरा डिस्कोर्स ही क्यों बदला जा रहा है? वैसे इस मुद्दे पर जिस तरह से सोसायटी में डिवीजन है, उससे तो साफ-साफ लग रहा है कि आवारा कुत्तों को लेकर ये विवाद क्लास का क्लैश है. मतलब ये मिडिल क्लास या लोअर मिडिल क्लास या गरीब वर्सेज अमीर जैसी लड़ाई दिख रही है या ये कॉमन मैन वर्सेज इलीट का मामला ज्यादा बन गया है.


किसी अमीर आदमी को कुत्ते ने काट डाला, ऐसी खबरें आपने कम ही सुनी या पढ़ी होंगी या कुत्ते के काटने से किसी अमीर आदमी की मौत हो गई, ऐसा भी नहीं सुना गया होगा लेकिन जिस दिल्ली की सड़कों से आवारा कुत्तों को हटाने की बात हो रही है, वहां का आलम क्या है,जानते हैं?


दिल्ली के अकेले सफदरजंग अस्पताल मेंं ही इस साल जनवरी से लेकर जुलाई महीने तक कुत्ते के काटने के 91 हजार केस आ चुके हैं. सोचिए, 7 महीने में 91 हजार लोग ! कितनी बड़ी संख्या है !! यानी हर महीने 13 हजार कुत्ते के काटे लोग इलाज के लिए सफदरजंग अस्पताल पहुंचे हैं. दिल्ली में एक और सरकारी अस्पताल है राममनोहर लोहिया ्अस्पताल, वहां साल 2024-25 में कुत्ते के काटने के 45 हजार से ज्यादा केस आए हैं.


और ये सिर्फ दिल्ली के दो सरकारी अस्पतालों का आंकड़ा है. ये उदाहरण इसलिए दिए क्योंकि इन अस्पतालों में आम तौर पर मिडिल क्लास, लोअर मिडिल क्लास या गरीब तबके ही पहुंचते होंगे. इससे एक मोटा-मोटा अनुमान लगा सकते हैं कि आवारा कुत्तों की समस्या से सबसे ज्यादा पीड़ित पक्ष कौन है. दिल्ली में ऐसे ही कई सरकारी और प्राइवेट हॉस्पिटल हैं, अनगिनत क्लीनिक हैं, वहां जो कुत्ते के काटने के केस आते होंगे, उनका तो हिसाब ही नहीं है. तो सोचिए, कि दिल्ली-एनसीआर के लिए आवारा कुत्तों का इंसानों पर हमले करना कितनी बड़ी समस्या बन रहा है.


ये अच्छी बात है कि लोग एनिमल राइट्स की बात करते हैं लेकिन हमें पीपुल्स राइट्स को भी देखना होगा, जिनको कि आवारा कुत्तों के काटने से हजारों के इंजेक्शन लगवाने पड़ते हैं या किसी की जान ही चली जाती है.


कुल मिलाकर यह एक बड़ी समस्या है, इसे हमें बेहिचक स्वीकार करना पड़ेगा. बिना किसी इफ-बट के स्वीकारना होगा. हां, इस पर जरूर मतभेद हो सकता है कि इस समस्या से निजात कैसे पाया जाए. इसके तौर-तरीके पर जरूर किसी को आपत्ति हो सकती है. लेकिन आए दिन आप भी सोशल मीडिया पर वीडियो देखते होंगे कि गलियों में, सड़कों पर छोटे-छोटे बच्चों को आवारा कुत्ते काट रहे हैं. महिलाओं पर हमले कर रहे हैं. 


और तो और अभी कुछ दिन पहले गुडगांव की एक हाई प्रोफाइल हाउसिंग सोसायटी का वीडियो वायरल हुआ था जिसमें मॉर्निंग व़ॉक के दौरान एक महिला पर किसी के पालतू कुत्ते ने हमला बोल दिया था.


बेजुबानों के लिए दिल पसीज जाना कोई बुरी बात नहीं है. ये आपके भीतर करुणा की भावना की उपस्थिति का सूचक माना जाएगा. लेकिन हमें ये भी तो समझना होगा कि इंसानी जान सबसे ऊपर है. हम फिर कह रहे हैं, इस पर जरूर मतभेद हो सकता है कि आवारा कुत्तों वाली समस्या से मुक्ति कैसे मिले. आवारा कुत्तों की मास किलिंग या ऐसे बाड़े में डाल देना कोई रास्ता नहीं है.


ऐसा कदम 1880 में फ्रांस की राजधानी पेरिस में उठाया गया था. तब आवारा कुत्तों को सफाई, स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए खतरा माना गया तो बड़े पैमाने पर कुत्तों और बिल्लियों का वध किया गया। लेकिन इसका साइड इफेक्ट ये हुआ कि शहर में चूहों की संख्या में तेजी से बढ़ गई. वैसे दुनिया में आवारा कुत्तों की समस्या के समाधान के कुछ मानवीय और प्रमाणित मॉडल भी हैं, जिनसे सीखा जा सकता है, जैसे भूटान हर स्ट्रीट डॉग की नसबंदी और टीकाकरण करने वाला दुनिया का पहला देश बना तो नीदरलैंड ने गोद लेने और सख्त कानूनों के ज़रिये सड़कों पर आवारा कुत्तों की संख्या शून्य कर दी. 


इसके अलावा सिंगापुर मॉडल है, ब्रिटेन मॉडल है,. न्यूयॉर्क मॉडल है. आवारा कुत्तों की समस्या सिर्फ हमारे देश में ही नहीं, लेकिन दुनिया के कई देशों ने इससे निपटने का मानवीय रास्ता अपनाया है. उसे हम क्यों नहीं अपना सकते? दिल्ली सरकार हो या नगर निगम मतलब एमसीडी हो, उनके पास तो आवारा कुत्तों के संबंध में नियम पहले से ही हैं, मगर उन पर अमल ही नहीं हुआ. सुप्रीम कोर्ट का हायर बेंच भी इस मामले में दिल्ली सरकार ओर एमसीडी को डांट लगा चुका है,


असल में दिल्ली-एनसीआर में बड़ी समस्या इन्फ्रास्ट्रक्चर की है. अभी दिल्ली में रोहिणी, तिमारपुर, द्वारका, तुगलकाबाद, उस्मानपुर और बिजवासन समेत 20 एनिमल बर्थ सेंटर यानी एबीसी हैं, जिनकी कुल क्षमता एक समय में 3,500–4,000 कुत्तों की है. लेकिन दिल्ली में आवारा कुत्तों की संख्या लाखों में है। हालांकि लंबे समय से ऐसा कोई सर्वे हुआ नहीं है. दिल्ली नगर निगम ने पिछला सर्वे साल 2009 में कराया था, उसी समय पता चला था कि दिल्ली में करीब 5 लाख 90 हजार आवारा कुत्ते हैं. तब से 16 साल बीत चुके हैं. आवारा कुत्तों की संख्या कहां पहुंच गई होगी, आप खुद अनुमान लगाइए.


तो इन्फ्रास्ट्रक्चर का अपने यहां बुरा हाल है और जज साहब ने कह दिया कि 6 से आठ हफ्तों में पांच हजार आवारा कुत्तों को सड़कों से हटाकर एनिमल शेल्टर्स में डाल दो, ये कितना प्रैक्टिकल है, इसका अंदाजा कोई भी लगा सकता है. 

गजब 'कुत्तयापा' चल रहा है ! गजब 'कुत्तयापा' चल रहा है ! Reviewed by Manu Panwar on August 16, 2025 Rating: 5

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