सपने में आई नागरिक संहिता !
मनु पंवार
कल रात मेरे सपने में समान नागरिक संहिता आई। जी, आपने ठीक सुना। समान नागरिक संहिता, जिसे बंदे अंग्रेजी में शॉर्ट में UCC कह रहे हैं। क्या बताऊं ! बहुत ही हसीन थी। इतनी हसीन कि उस पर एक-दो चुनाव तो यूं ही कुर्बान हो जाएं। वैसे इस देश में समान नागरिक संहिता जो है न, वो बहुतों की क्रश रही है। क्रश तो समझ ही रहे होंगे? अरे वही, जिसे कई लोग बचपन का प्यार टाइप कहते हैं।
वैसे राजनीति में समान नागरिक संहिता कई नेताओं की ड्रीम गर्ल टाइप रही है। उस पॉलिटिकल जमात को लगता है कि उनकी ये जो ड्रीम गर्ल है, उसके पास सारे कष्टों की दवा है, सारे संकटों का समाधान है, सारी चुनौतियों से पार पाने का फॉर्मूला है। और कुछ नहीं तो चुनाव जितवाने वाली स्किल तो है ही।
तो क्रस किसी और की, लेकिन सपने में आई तो मेरे। अब समान नागरिक संहिता बिन बुलाए मेरे सपने में कैसे चली आई, ये मिस्ट्री तो खुद मैं भी नहीं बूझ पाया हूं। मैं ठहरा पहाड़ का बंदा। हमारे यहां अक्सर नेटवर्क की या सिग्नल की गड़बड़ी हो जाया करती है।. तो हो सकता है कि इसी चक्कर में समान नागरिक संहिता किसी और रूट पर जाने के बजाय भटककर मेरे सपने वाले रूट में आ गई हो। लेकिन अब आई तो आई। अब करें तो करें क्या, कहें तो कहें क्या !
मैंने सपने में समान नागरिक संहिता को कॉम्लीमेंट दिया। उससे कहा, सुनो सुंदरी !सबसे पहले तो तुम अपने पैरेंट्स अर्थात् अपने मम्मी-पापा तक मेरी दाद पहुंचा देना कि उन्होंने तुम्हारा कितना सुंदर, कितना सौम्य और कितना आकर्षक नाम रखा है। समान नागरिक संहिता। अहा ! सुनने में कित्ता अच्छा लग रहा है न। कित्ता अच्छा साउंड कर रहा है। एकदम रामराज टाइप फील आ रही है।
समान नागरिक संहिता...। पता है, कुछ ऐसा सा साउंड आ रहा है कि इसके लागू होने के बाद सारे नागरिक समान ट्रीट होंगे। सबके लिए समान कानून। सब नागरिकों को समान अधिकार। सब नागरिकों को समान सुविधायें। समान अवसर। समान व्यवहार। न कोई छोटा, न कोई बड़ा, न कोई ऊंच, न नीच,.न जात, न धर्म, न इलाका, न प्रांत। सब के सब समान। इस समान नागरिक संहिता के नाम से आम आदमी को यही समझ में आ रहा है।
मुझे तो सपने में यह भी दिखाई दिया कि हमारे अपने राज्य में समान नागरिक संहिता के बाद सब कुछ समान हो गया। सारे नागरिक समान ट्रीट किए जा रहे हैं। बुनियादी सुविधाओं के मामले में पहाड़ और मैदान का भेदभाव खत्म हो गया। जैसे मैदानी इलाकों में तमाम सुख-सुविधायें हैं, वैसे ही पहाड़ों में भी पहुंच गई हैं। लोग अब अस्पतालों, दवाओं, मेडिकल सुविधाओं के अभाव में दम नहीं तोड़ रहे। गर्भवती महिलाओं को सड़क के अभाव में पालकियों पर या पैदल ही अस्पताल नहीं पहुंचाना पड रहा है। या रास्ते में ही अब उनकी डिलीवरी की नौबत नहीं आ रही। लोग अस्पताल पहुंचने की जद्दोजहद में रास्ते में दम नहीं तोड़ रहे हैं।
पुल न होने की वजह से पहाड़ के जिन बच्चे-बच्चियों को जान जोखिम में डालकर नदी पार करनी पड़ती थी, अब हालात बदल गए हैं। जैसी क्वालिटी की शिक्षा देहरादून जैसे साधन सम्पन्न शहरों में मिल रही है, सभी नागरिक समान माने जाने के बाद वैसी ही क्वालिटी की शिक्षा पहाड़ में बच्चों को भी मिलने लगी है। मैंने सपने में देखा- सरकार में नागरिकों को समान मानने, समान रूप से देखने का भाव इस कदर चरम पर पहुंच गया कि पहाड़ों में नौकरियां ही नौकरियां आ गईं। रोजगार के चक्कर में पहाड के लोगों को अपने पुरखों के आबाद किए हुए खेत-खलिहानों को छोड़कर नहीं जाना पड़ रहा है। सब थैंक्यू-थैंक्यू कह रहे हैं।
मैंने सपने में आई समान नागरिक संहिता से अपनी क्यूरियोसिटी जाहिर कर ही दी। मैंने पूछा, क्यों री सुंदरी ! तू वाकई पहाड़ों के हालात भी बदलेगी या किसी वीआईपी की तरह सरकारी खर्चे पर यहां कुछ दिन मौज करके निकल लेगी? मेरी इस बात पर समान नागरिक संहिता की नाक को लग गई। वो तमतमा उठी। वो गुस्से से इस कदर आग बबूला हो उठी कि उसने अपने नाम का नागरिक ज़ोर से मेरे मुंह पर मारा और पांव पटक कर निकल ली। हाय, मेरा सुंदर सपना टूट गया।

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