सन्नाटे का संगीत सुनना चाहेंगे?
मनु पंवार
यह वीडियो देखने के लिए नहीं, सुनने के लिए है। पहाड़ों में घने जंगलों से गुजरते हुए अक्सर ऐसी भिन्न किस्म की आवाज़ें सुनाई देती हैं। कई लोगों के लिए ये आवाज़ें डरावनी हो सकती हैं. कुछ ऐसा आभास होगा जैसे एक दौर में रामसे ब्रदर्स की भुतहा फ़िल्में देखकर होता था. एकदम रहस्मयी। लेकिन इनमें एक अलग तरह का संगीत भी है। कानों को सुकून पहुंचाने वाला संगीत। (अगर ये वीडियो नहीं खुलेगा तो नीचे यूट्यूब का लिंक भी दिया है)
हिंदी में इसका भावानुवाद कुछ यूं है-
डर लगता है जब रात में कोई 'निनारू' आवाजें करता है,
लेकिन तब सहारा मिलता है जब कोई बुजुर्ग खांसता है।
वीडियो लिंक : सन्नाटे के संगीत को देखने के लिए क्लिक कर सकते हैं
यह वीडियो देखने के लिए नहीं, सुनने के लिए है। पहाड़ों में घने जंगलों से गुजरते हुए अक्सर ऐसी भिन्न किस्म की आवाज़ें सुनाई देती हैं। कई लोगों के लिए ये आवाज़ें डरावनी हो सकती हैं. कुछ ऐसा आभास होगा जैसे एक दौर में रामसे ब्रदर्स की भुतहा फ़िल्में देखकर होता था. एकदम रहस्मयी। लेकिन इनमें एक अलग तरह का संगीत भी है। कानों को सुकून पहुंचाने वाला संगीत। (अगर ये वीडियो नहीं खुलेगा तो नीचे यूट्यूब का लिंक भी दिया है)
आप जानकर हैरान होंगे,
लेकिन ये आवाज़ एक छोटे से कीड़े की है, जिसे गढवाल में 'निनारु' कहते हैं।
ये कीडे मिलकर एक खास समय में ऐसी आवाजें निकालते हैं और इससे स्थानीय लोग
वक्त का अंदाजा भी लगा लेते हैं। इसका ज़िक्र उत्तराखंड के लोकगीतों में भी है।
पहाड़ के चहेते लोक गीतकार/ गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने भी अपने एक गढ़वाली गीत में लिखा है-
पहाड़ के चहेते लोक गीतकार/ गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने भी अपने एक गढ़वाली गीत में लिखा है-
"डौर लगदि राति जब निनारू बासदू
सारु मिलदु जब क्वी दानू खांसदू।"
हिंदी में इसका भावानुवाद कुछ यूं है-
डर लगता है जब रात में कोई 'निनारू' आवाजें करता है,
लेकिन तब सहारा मिलता है जब कोई बुजुर्ग खांसता है।
यह मोबाइल वीडियो देहरादून जिले के चकराता के कनासर के जंगल में शूट किया है। तारीख 14 अगस्त, 2016 और समय है शाम के क़रीब 6 बजे।
वीडियो लिंक : सन्नाटे के संगीत को देखने के लिए क्लिक कर सकते हैं
सन्नाटे का संगीत सुनना चाहेंगे?
Reviewed by Manu Panwar
on
August 20, 2016
Rating:

No comments