लड़के हैं, लड़कों का क्या !
मनु पंवार
सोसायटी में 'अच्छा लड़का' होना कितनी अच्छी बात है। अच्छे लड़के की बुनियादी खासियत यह होती है कि वह बुरा नहीं होता। बल्कि मुझे तो लगता है कि कुछ अच्छे लड़कों की वजह से ही राजनीति के मार्केट में ‘अच्छे दिनों’ का जुमला लॉन्च हुआ। यह बात अलग है कि अच्छे लड़के की तरह अब अच्छे दिनों को ढूंढना भी मुश्किल हो गया है।
वैसे राजनीति में 'अच्छा लड़का' होने के लिए उम्र की कोई सीमा तय नहीं होती। ‘अच्छा लड़का’ अगर पचास बरस की उम्र तक भी ब्याह न करे, तो भी वह अच्छा लड़का ही रहता है। इसी तरह ‘अच्छा लड़का’ अगर ब्याह करके पति की गति को प्राप्त हो भी जाए, तो भी कुछ-कुछ मामलों में उसके अच्छा लड़का होने की संभावनायें बनी रहती हैं। इसीलिए शायद पिछले दिनों राहुल गांधी ने घर-गृहस्थी और बाल-बच्चेदार मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को ‘अच्छा लड़का’ बता दिया। राहुल से ‘अच्छा लड़का’ होने का सर्टिफिकेट मिलते ही अखिलेश ने फौरन उधारी चुकता कर दी और जवाब में राहुल गांधी को भी ‘अच्छा लड़का’ बता दिया। कहने में किसी का क्या जाता है? वैसे भी अच्छा लड़का होने के लिए अच्छा लीडर होना ज़रूरी नहीं है। इसी तरह अच्छा लीडर ‘अच्छा लड़का’ ही हो, यह भी अनिवार्य नहीं है।
‘अच्छा लड़का’ हमेशा अच्छा लड़का ही नहीं रहता। कभी-कभी उससे ग़लती भी हो जाया करती है। जैसे दिल्ली सरकार के मंत्री संदीप कुमार से हुई। वह संदीप कुमार कभी केजरीवाल साहब के लिए ‘अच्छा लड़का’ था। लेकिन एक गंदी सीडी ने उस बंदे का एक ही झटके में करेक्टर खराब कर दिया। अच्छे को बुरा बनने में बस एक सीडी रिलीज होने की ही देर लगी। इस तरह की सिचुएशन को तभी सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव कुछ बरस पहले भांप चुके थे। तभी तो उन्होंने कहा था- ‘लड़के हैं लड़कों से गलती हो जाती है।’ केजरीवाल के मंत्री संदीप कुमार की एक गलती ने उन्हें अच्छे से बुरे लड़के में तब्दील कर दिया। वरना राजनीति में इस किस्म के ‘अच्छे लड़के’ अक्सर कामयाब होते रहे हैं।
वैसे केजरीवाल भी कभी अन्ना हजारे के लिए ‘अच्छे लड़के’ थे। लेकिन न जाने क्यों जब-जब चुनावी मौसम आने लगता है, अन्ना की नज़र में केजरीवाल अच्छे लड़के नहीं रह पाते। राजनीति में ‘अच्छा लड़का’ होने में यही बुराई है। कभी-कभी सोचता हूं कि अच्छे लड़के और अच्छे दिनों की ज़मीन आखिर इतनी कच्ची क्यों होती है?
(क्लिप: अपना यह व्यंग्य 'दैनिक ट्रिब्यून' अख़बार (21 अक्तूबर 2016) के संपादकीय पेज पर छपा है.)
लड़के हैं, लड़कों का क्या !
Reviewed by Manu Panwar
on
October 21, 2016
Rating:

No comments