रावण लंका डुबोने के लिए खुद जिम्मेदार है
मनु पंवार
बस अब तीन दिन बाकी रह गए
हैं। जब रावण के वध के बाद विभीषण को नए लंकापति के रूप में पद और गोपनीयता की शपथ
दिलाई जाएगी। यह बात अलग है कि विभीषण पर रावण की गोपनीयता लीक करने का इल्ज़ाम है।
आरोप है कि विभीषण की वजह से ही लंका ढह गई। इस पर कहावत भी चल पड़ी, घर का
भेदी लंका ढहाए। लेकिन लंका ढहाने का दोष सिर्फ घर के भेदी अर्थात् विभीषण के
मत्थे ही क्यों मढ़ा गया? इसकी तो कई वजहें
रही हैं। वह शूर्पणखा क्यों कसूरवार नहीं है जिसने लंका के सर्वनाश की बुनियाद रखी? सारा दोष उसके मचलते यौवन का है जिसकी वजह से लक्ष्मण को
शूर्पणखा की नाक काटनी पड़ी। दोष रावण का भी है, जिसने वक़्त पर अपनी बहना के हाथ पीले
नहीं किए। इत्ती बड़ी सोने की लंका का मालिक और बहन के लिए
सुयोग्य वर ढूंढकर उसका घर नहीं बसा पाया! वरना शूर्पणखा को क्या जरूरत
थी कि वह खुद प्रेम प्रस्ताव लेकर लक्ष्मण के इर्द-गिर्द मटकती फिरती? इतने बड़े और इतने विद्वान राजा की बहन और ऐसी ओछी हरकत! इतिहास
गवाह है कि ऐसी शूर्पणखायें कालान्तर में कई साम्राज्यों के पतन की वजह बनी हैं।![]() |
| कार्टून साभार: मुकेश नौटियाल |
रावण ने एक तो भाई होने का फर्ज़ नहीं निभाया, ऊपर से चल पड़ा
राम- लक्ष्मण से बदला लेने। छल-कपट से सीता जी को हर लिया। चूंकि रावण शासक था, लिहाज़ा उसके समर्थकों ने उसे दोष नहीं दिया और विभीषण को बलि का बकरा बना लिया। रावणवादी इतिहासकारों ने भी बेचारे
विभीषण को बदनाम कर दिया। विभीषण आज तक उस दाग़ से नहीं उबर पाया है। यह बात जुदा
है कि कलियुग में विभीषणों की राजनीतिक परंपरा काफी फल-फूल रही है। हर पार्टी में विभीषण हैं।
लेकिन सवाल यह है कि लंका को ढहाने का दोष सिर्फ विभीषण पर ही
क्यों है? उस समय के विपक्ष को भी क्रेडिट मिलना चाहिए। सरकारों को अस्थिर
करने में विपक्ष का भी कम रोल नहीं होता। उन
दिनों विपक्ष में रामचंद्र जी, सुग्रीव और उनकी वानर सेना थी। लंका ढहाने का
क्रेडिट हनुमान को क्यों न मिले, जिनके बारे में अब लोग सोशल मीडिया पर कह रहे हैं
कि दुनिया का पहला सर्जिकल स्ट्राइक उन्होंने ही किया था। हनुमान ने अपनी जलती हुई
पूंछ से पूरी सोने की लंका में आगजनी कर डाली थी। बलवा मचाने की धाराओं में लंका की पुलिस
ने हनुमान को धर भी लिया था। अबका ज़माना होता तो हनुमान को आतंकवाद की धाराओं में
सज़ा मिलती। या हो सकता था कि रावण हनुमान का सिर धड़ से अलग करवा देता। लेकिन
रावण बुद्दिजीवी टाइप राजा था। उसकी फिलॉसिफी पर अच्छी पकड़ थी। लोकश्रुतियों के
अनुसार वेद-पुराण उसे कंठस्थ थे। चूंकि वह लिटरेरी टाइप बंदा था, इसलिए हो सकता है
कि उसने ऐसा जघन्य कृत्य करने से परहेज़ किया हो। ज्यादा पढ़े-लिखे और विद्वान लोग
अक्सर ऐसी मार मारते हैं कि काम भी हो जाए और पता भी न चले। उनके इस हुनर पर एक शेर भी याद आ रहा
है-
‘दामन पे कोई छींट न
खंज़र पे कोई दाग़
तुम क़त्ल करे हो कि क़रामात कर हो।’
लेकिन सवाल तो यह है कि लंका
को ढहाने का दोष सिर्फ विभीषण पर ही क्यों है? उस जामवंत
भालू को क्रेडिट क्यों न मिले जिसके उकसावे पर हनुमान लंका में रेकी करने घुस गए थे? अपने काम का पर्याप्त क्रेडिट न मिल पाने का गुस्सा भालू को
आज तक है। इसीलिए वह इंसानों को काटने को दौड़ता है। क्रेडिट तो किष्किंधा के राजा बालि के बेटे अंगद का भी बनता है। जिसके पैर ने महाबली रावण
की सत्ता के पैर उखाड़ने में अहम भूमिका निभाई थी। क्रेडिट उन नल-नील का भी बनता है जिन्होंने समंदर पर पुल बांधने
का टेंडर उठाया। कितना रिस्की काम था वो। पुल में जरा भी खोट निकलता तो नल-नील
दोनों की नौकरी चली जाती। उन्होंने ऐसा मजबूत पुल बांधा कि रामचंद्र जी समेत पूरी वानर
सेना लंका में दाखिल हो गई। अबके ठेकेदार निर्माण कार्य में इतनी ईमानदारी कहां
बरतते हैं? जितना रेत, बजरी, सीमेंट, सरिया पुल के लिए ज़रूरी है, उतने
में तो वो पुल के साथ-साथ पीडब्ल्यूडी के उस अधिशासी अभियंता का बंगला भी बना
डालते जिसने उनको ठेका दिलाया। तो फिर बेचारा विभीषण ही क्यों इतने युगों तक लंका
ढहाने की बदनामी झेल रहा है?
रावण लंका डुबोने के लिए खुद जिम्मेदार है
Reviewed by Manu Panwar
on
October 08, 2016
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October 08, 2016
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बहुत ही अच्छा और बहुत ही उम्दा है... सच में, काबिल-ए-तारिफ व्यंग्य है आपका।
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुक्रिया अखिल जी..
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