वेलेंटाइन डे के सीज़न बढ़ाए जाएं
मनु पंवार
वेलेंटाइन यूं तो संत थे लेकिन उन्होंने कई प्रेमियों के दिल तोड़ दिए। प्रेम के प्रकटीकरण के लिए सालभर में सिर्फ एक ही दिन रखा। ये तो वही बात हो गई कि हमारी कोई ब्रांच नहीं है। अरे भई खोली क्यों नहीं ब्रांच? जिन प्रेम कहानियों के अंकुर 14 फरवरी के बाद ग्रीष्मकाल, मॉनसून, शरदकाल या शीतकाल में फूटें, वो क्योंकर वेलेंटाइन डे का इंतजार करें? वैसे भी इस दौर की प्रेम कहानियों का कोई भरोसा नहीं है। वो अल्पकालीन निविदाओं अर्थात् शॉर्ट टर्म टेंडर जैसी होती हैं। अगर शीतकाल में शुरू हुईं तो वसंत आने से पहले ही उनके पत्ते झड़ने लगते हैं। कोई खुशकिस्मत ही होगा जिसके प्रेम का कार्यकाल लंबी अवधि तक खिंच पाता है। वरना इन दिनों तो गठबंधन के औपचारिक आकार लेने से पहले ही उसमें टूट-फूट शुरू हो जाया करती है। सरकारें पांच साल चल जाएं, वो बहुत बड़ी बात है।
वो तो गनीमत है कि प्रेम की तरह राजनीति में वेलेंटाइन डे का इंतज़ार नहीं होता। राजनीति में वसंत कभी भी प्रकट हो जाता है। कभी भी आनन्द बरसाने लग जाता है। राजनीति में मदनोत्सव किसी मंत्री या बड़े अफसर के औचक निरीक्षण की तरह आता है। लेकिन प्रेम कहानियों के मामले में ऐसा नहीं हो पाता। वसंत का इंतजार वैसे ही बेचैनी बढ़ाता है जैसे पितृ पक्ष में कौव्वों का इंतजार। अक्सर प्रेम कथाओं में वसंत भाव खाने लगता है। ऋतुराज जो ठहरा। वसंत की मादकता भावनाओं में उफान लाती है। इसीलिए इस ऋतु में वेलेंटाइन डे आने का चलन है।
लेकिन जिस बेचारे का दिल शीतकाल में धड़कने लगे, उसके सामने बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई। शीतकाल से वसंतकाल तक के बीच की अवधि तक प्रेम की ऊष्मा कैसे बची रह पाएगी? नई-नई प्रेम कहानियों के परवान चढ़ने में ज़रा रिस्क फैक्टर ज़्यादा रहता है। जाने कब गठबंधन के दूसरे साथी का हृदय परिवर्तन हो जाए और आपको अपने हृदय से निकाल बाहर करे।
एक विकल्प यह है कि वेलेंटाइन डे आने तक तदर्थ प्रेमी के तौर पर काम चला सकते हैं। अंग्रेजी में इस व्यवस्था को ‘एडहॉकिज्म’ कहते हैं। अंग्रेजी में बताना ज़रूरी है क्योंकि संत वेलेंटाइन इसी भाषा को जानते थे। इश्क भले ही हिन्दी में हो, लेकिन उसका प्रकटीकरण अंग्रेजी में होना ज़रूरी है। इससे आपकी रेपुटेशन बनती है। प्यार का टिकाऊ होना इस बात पर भी निर्भर करता है कि आपकी रेपुटेशन कितनी और कैसी है। रेपुटेशन में जेब का भारी होना भी एक अनिवार्य हिस्सा है। वरना प्रेमिका पर मुफ्त में प्रेम लुटाने के कई ख़तरे हैं। आधुनिक समय के प्रेम में पहले प्रेमी की जेब लुटती है, फिर दिल।
लेकिन उन आधुनिक किस्म के प्रेमियों का क्या किया जाए जिन्होंने अपने प्रेम के प्रकटीकरण के लिए वेलेंटाइन डे का मुहूर्त निकाला है? वैसे इसका एक बढ़िया विकल्प यह है कि हर ऋतु में एक वेलेंटाइन डे की व्यवस्था कर दी जाए। जैसे वसंतकालीन वेलेंटाइन डे, ग्रीष्मकालीन वेलेंटाइन डे, मॉनसून का वेलेंटाइन डे और शीतकालीन वेलेंटाइन डे। इससे वेलेंटाइन डे का विकेन्द्रीकरण हो जाएगा और सभी सीजनों में पनपने वाले प्यार अपने इज़हार के मुकाम तक भी पहुंच पाएंगे। इस बारे में सरकार को सोचना चाहिए।
वेलेंटाइन यूं तो संत थे लेकिन उन्होंने कई प्रेमियों के दिल तोड़ दिए। प्रेम के प्रकटीकरण के लिए सालभर में सिर्फ एक ही दिन रखा। ये तो वही बात हो गई कि हमारी कोई ब्रांच नहीं है। अरे भई खोली क्यों नहीं ब्रांच? जिन प्रेम कहानियों के अंकुर 14 फरवरी के बाद ग्रीष्मकाल, मॉनसून, शरदकाल या शीतकाल में फूटें, वो क्योंकर वेलेंटाइन डे का इंतजार करें? वैसे भी इस दौर की प्रेम कहानियों का कोई भरोसा नहीं है। वो अल्पकालीन निविदाओं अर्थात् शॉर्ट टर्म टेंडर जैसी होती हैं। अगर शीतकाल में शुरू हुईं तो वसंत आने से पहले ही उनके पत्ते झड़ने लगते हैं। कोई खुशकिस्मत ही होगा जिसके प्रेम का कार्यकाल लंबी अवधि तक खिंच पाता है। वरना इन दिनों तो गठबंधन के औपचारिक आकार लेने से पहले ही उसमें टूट-फूट शुरू हो जाया करती है। सरकारें पांच साल चल जाएं, वो बहुत बड़ी बात है।
वो तो गनीमत है कि प्रेम की तरह राजनीति में वेलेंटाइन डे का इंतज़ार नहीं होता। राजनीति में वसंत कभी भी प्रकट हो जाता है। कभी भी आनन्द बरसाने लग जाता है। राजनीति में मदनोत्सव किसी मंत्री या बड़े अफसर के औचक निरीक्षण की तरह आता है। लेकिन प्रेम कहानियों के मामले में ऐसा नहीं हो पाता। वसंत का इंतजार वैसे ही बेचैनी बढ़ाता है जैसे पितृ पक्ष में कौव्वों का इंतजार। अक्सर प्रेम कथाओं में वसंत भाव खाने लगता है। ऋतुराज जो ठहरा। वसंत की मादकता भावनाओं में उफान लाती है। इसीलिए इस ऋतु में वेलेंटाइन डे आने का चलन है।
लेकिन जिस बेचारे का दिल शीतकाल में धड़कने लगे, उसके सामने बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई। शीतकाल से वसंतकाल तक के बीच की अवधि तक प्रेम की ऊष्मा कैसे बची रह पाएगी? नई-नई प्रेम कहानियों के परवान चढ़ने में ज़रा रिस्क फैक्टर ज़्यादा रहता है। जाने कब गठबंधन के दूसरे साथी का हृदय परिवर्तन हो जाए और आपको अपने हृदय से निकाल बाहर करे।
एक विकल्प यह है कि वेलेंटाइन डे आने तक तदर्थ प्रेमी के तौर पर काम चला सकते हैं। अंग्रेजी में इस व्यवस्था को ‘एडहॉकिज्म’ कहते हैं। अंग्रेजी में बताना ज़रूरी है क्योंकि संत वेलेंटाइन इसी भाषा को जानते थे। इश्क भले ही हिन्दी में हो, लेकिन उसका प्रकटीकरण अंग्रेजी में होना ज़रूरी है। इससे आपकी रेपुटेशन बनती है। प्यार का टिकाऊ होना इस बात पर भी निर्भर करता है कि आपकी रेपुटेशन कितनी और कैसी है। रेपुटेशन में जेब का भारी होना भी एक अनिवार्य हिस्सा है। वरना प्रेमिका पर मुफ्त में प्रेम लुटाने के कई ख़तरे हैं। आधुनिक समय के प्रेम में पहले प्रेमी की जेब लुटती है, फिर दिल।
लेकिन उन आधुनिक किस्म के प्रेमियों का क्या किया जाए जिन्होंने अपने प्रेम के प्रकटीकरण के लिए वेलेंटाइन डे का मुहूर्त निकाला है? वैसे इसका एक बढ़िया विकल्प यह है कि हर ऋतु में एक वेलेंटाइन डे की व्यवस्था कर दी जाए। जैसे वसंतकालीन वेलेंटाइन डे, ग्रीष्मकालीन वेलेंटाइन डे, मॉनसून का वेलेंटाइन डे और शीतकालीन वेलेंटाइन डे। इससे वेलेंटाइन डे का विकेन्द्रीकरण हो जाएगा और सभी सीजनों में पनपने वाले प्यार अपने इज़हार के मुकाम तक भी पहुंच पाएंगे। इस बारे में सरकार को सोचना चाहिए।
वेलेंटाइन डे के सीज़न बढ़ाए जाएं
Reviewed by Manu Panwar
on
February 13, 2017
Rating:
हा हा हा हा हा.... :-) सही बात है... मैं आपकी बात से 100 प्रतिशत सहमत हूं कि सरकार को हर ऋतु में एक वेलेंटाइन डे की व्यवस्था करनी चाहिए...!!!!! ;-)
ReplyDeleteहा..हा...हा...
Deleteहम तो प्रेमियों के संग हैं :)