देशभक्ति का 'मार्च फाइनल'

मनु पंवार

दिल्ली में जहां देखो मार्च ही मार्च. पहले वामपंथियों का मार्च. फिर दक्षिणपंथियों का मार्च. मार्च के महीने में इतने मार्च कि मार्च का भी दम फूल जाए. आज सुबह न्यूज़ चैनल देखते-देखते 'सबसे तेज़ चैनल' की एक रिपोर्ट देखकर कान खड़े हो गए. उसमें चल रहा था- 'आज एबीवीपी के योद्धा सड़क पर उतरेंगे'. मैं घबरा गया. देश की राजधानी में 'युद्ध' छिड़ा है और हमें खबर ही न हुई. कहीं ऐसा तो नहीं कि मार्च के चक्कर में टीवी वाले अप्रैल बना रहे हों? माने अप्रैल फूल. हां, लेकिन बाद में टीवी की तस्वीरें बता रही थीं कि मार्च हुआ. देशभक्ति का फाइनल मार्च. 31 मार्च से पहले का मार्च.

लेकिन ये क्या...! ये बैंक वाले तो बड़े चंट निकले. इधर, अपन लोग देशद्रोह बनाम देशभक्त की जिरह में तलवारें खींचे हुए थे और बैंकों अपना पैसा निकालने और जमा करने पर चार्ज ठोक दिया. वो भी तगड़ा चार्ज. मार्च में चार्ज. हाय हुसैन...! हमें तो लग रहा है जी ये देशद्रोह बनाम देशभक्त की बहस से भटकाने की बैकों की साजिश हैग्गी. देशद्रोही कहीं के ! इसकी उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए कि नहीं चाहिए?

जहां देखो, सबको मार्च फाइनल की हड़बड़ी है. लेकिन अपने पंत प्रधान जी को काहे की हड़बड़ी? बताइए,  कल यूपी की रैली में राहुल गांधी का मज़ाक उड़ाने के चक्कर में कह गए पाइन एप्पल जूस अर्थात् अन्नानास के जूस का अर्थ नारियल जूस होता है. मुझे वो 8 नवंबर की घड़ी याद आ गई. मानों कह रहे हों, भाइयों-बहनो ! आज रात 12 बजे के बाद से डिक्शनरी में पाइनएप्पल का जूस अर्थात् अन्नानास का जूस लीगल टेंडर नहीं रहेगा। अब से उसे नारियल का जूस पढा जाए. हद है. ये भी कोई खपने की बात है भला!

लेकिन फिर मैंने सोचा कि यार इन दिनों देशभक्ति और देशद्रोही का मार्च फाइनल चल रहा है. तो हिसाब-किताब लगाने में ऐसी गड़बड़ी हो ही जाती है. वैसे 'राष्ट्र' को आज अपने लाडले अरणब गोस्वामी की कमी बड़ी फील हो री हैग्गी.
देशभक्ति का 'मार्च फाइनल' देशभक्ति का 'मार्च फाइनल' Reviewed by Manu Panwar on March 02, 2017 Rating: 5

No comments