एमसीडी चुनाव में विलेन!
मनु पंवार
एक दौर था जब हिन्दी सिनेमा में खलनायक अर्थात् विलेन पर खास मेहनत की जाती थी। फिल्म की स्क्रिप्ट भले ही बेदम हो, फिल्म का हीरो भले ही कमज़ोर हो और गाने सुनने लायक न हों लेकिन विलेन को विराट और बर्बर बनाया जाता था ताकि हीरो के प्रति उतनी ही सहानुभूति पैदा हो। इस फॉर्मूले के कारण कई फिल्में विलेन के चक्कर में ही चल पड़ीं।
अब राजनीति में ऐसा ही चलन बढ़ रहा है। आपका हीरो कमजोर हो, आपके पास मुद्दों का अकाल हो, तो भलाई इसी में है कि एक विलेन पैदा करो। उसे कोसो। उस पर चौतरफा हमले करो। जैसा कि दिल्ली नगर निगम के चुनावों में हुआ। एमसीडी में अपनी 10 साल की एन्टी इनकमबेंसी से निपटने के लिए बीजेपी ने ऐसा ही तोड़ निकाला। बीजेपी ने अरविंद केजरीवाल को विलेन बना डाला। लगा जैसे दस साल से एमसीडी पर केजरीवाल का ही राज हो। बीजेपी को इस फंडे से जीत मिली। केजरीवाल को भी हार का ठीकरा फोड़ने के लिए एक विलेन चाहिए था। उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को विलेन बनाया। इस तरह सबके अपने-अपने विलेन हो गए।
हालांकि ईवीएम को अकेले केजरीवाल ने ही विलेन नहीं बनाया। आडवाणी साहब भी 2009 में ऐसा कर चुके हैं। बीजेपी नेता और आज पार्टी प्रवक्ता जीबीएल नरसिम्हा राव ने तो ईवीएम की गडबडी पर एक मोटी किताब ही लिख डाली। ग़लत बात है। ऐसा नहीं करना चाहिए था। राजनीति में धैर्य भी कोई चीज़ होती है। खामुंखा विरोधियों को ईवीएम का हथियार थमा दिया। वैसे एक बात समझ में नहीं आई। अगर ईवीएम से 'छेड़छाड़' की घटनाएं इत्ती बढ़ रही हैं, तो क्यों नहीं चुनाव आयोग भी योगी सरकार की तर्ज पर एंटी रोमियो स्क्वॉड बना लेता जी...?
दिल्ली वालों को मानना पड़ेगा। वे बड़े खतरों के खिलाडी निकले। केजरीवाल साहब ने बीजेपी की जीत पर डेंगू, चिकनगुनिया फैलने का डर दिखाया था, लेकिन लोगों ने फिर भी बीजेपी को वोट दे दिया। आम आदमी पार्टी को तो शुक्रगुजार होना चाहिए कि उन्हें एमसीडी चुनाव में पचास के करीब सीटें मिल गईं। गौर करने की बात यह भी है कि पूरे इलेक्शन कैंपेन के दौरान 'आप' के नेताओं को सिर्फ एक थप्पड़ पडा, वो भी संजय सिंह को। उसी में इत्ती सीटें आ गईं। सोचिए, अगर किसी बड़े नेता को पड़ा होता तो क्या होता..!
सुबह से टीवी न्यूज़ चैनलों पर एमसीडी चुनाव का रिजल्ट देखकर एक बात बड़ी खटक रही थी। एंकरान चहक-चहक कर उद्घोष कर रही थीं कि एमसीडी में आम आदमी पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया। अरे भई, अब इन नादानों को कौन समझाए कि एमसीडी में तो 'आप' का सूपड़ा था ही नहीं, फिर साफ कैसे हुआ?
खैर, एमसीडी की हार के बाद आम आदमी पार्टी में इस्तीफे गिरने लगे। दिलचस्प बात ये है कि इतनी स्पीड से तो केजरीवाल ने भी दूसरों से इस्तीफा ना मांगा, जितनी तेजी से इस्तीफे खुद उनकी पार्टी में गिर रहे हैं।
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कार्टून साभार : सतीश आचार्य |
अब राजनीति में ऐसा ही चलन बढ़ रहा है। आपका हीरो कमजोर हो, आपके पास मुद्दों का अकाल हो, तो भलाई इसी में है कि एक विलेन पैदा करो। उसे कोसो। उस पर चौतरफा हमले करो। जैसा कि दिल्ली नगर निगम के चुनावों में हुआ। एमसीडी में अपनी 10 साल की एन्टी इनकमबेंसी से निपटने के लिए बीजेपी ने ऐसा ही तोड़ निकाला। बीजेपी ने अरविंद केजरीवाल को विलेन बना डाला। लगा जैसे दस साल से एमसीडी पर केजरीवाल का ही राज हो। बीजेपी को इस फंडे से जीत मिली। केजरीवाल को भी हार का ठीकरा फोड़ने के लिए एक विलेन चाहिए था। उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को विलेन बनाया। इस तरह सबके अपने-अपने विलेन हो गए।
हालांकि ईवीएम को अकेले केजरीवाल ने ही विलेन नहीं बनाया। आडवाणी साहब भी 2009 में ऐसा कर चुके हैं। बीजेपी नेता और आज पार्टी प्रवक्ता जीबीएल नरसिम्हा राव ने तो ईवीएम की गडबडी पर एक मोटी किताब ही लिख डाली। ग़लत बात है। ऐसा नहीं करना चाहिए था। राजनीति में धैर्य भी कोई चीज़ होती है। खामुंखा विरोधियों को ईवीएम का हथियार थमा दिया। वैसे एक बात समझ में नहीं आई। अगर ईवीएम से 'छेड़छाड़' की घटनाएं इत्ती बढ़ रही हैं, तो क्यों नहीं चुनाव आयोग भी योगी सरकार की तर्ज पर एंटी रोमियो स्क्वॉड बना लेता जी...?
दिल्ली वालों को मानना पड़ेगा। वे बड़े खतरों के खिलाडी निकले। केजरीवाल साहब ने बीजेपी की जीत पर डेंगू, चिकनगुनिया फैलने का डर दिखाया था, लेकिन लोगों ने फिर भी बीजेपी को वोट दे दिया। आम आदमी पार्टी को तो शुक्रगुजार होना चाहिए कि उन्हें एमसीडी चुनाव में पचास के करीब सीटें मिल गईं। गौर करने की बात यह भी है कि पूरे इलेक्शन कैंपेन के दौरान 'आप' के नेताओं को सिर्फ एक थप्पड़ पडा, वो भी संजय सिंह को। उसी में इत्ती सीटें आ गईं। सोचिए, अगर किसी बड़े नेता को पड़ा होता तो क्या होता..!
सुबह से टीवी न्यूज़ चैनलों पर एमसीडी चुनाव का रिजल्ट देखकर एक बात बड़ी खटक रही थी। एंकरान चहक-चहक कर उद्घोष कर रही थीं कि एमसीडी में आम आदमी पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया। अरे भई, अब इन नादानों को कौन समझाए कि एमसीडी में तो 'आप' का सूपड़ा था ही नहीं, फिर साफ कैसे हुआ?
खैर, एमसीडी की हार के बाद आम आदमी पार्टी में इस्तीफे गिरने लगे। दिलचस्प बात ये है कि इतनी स्पीड से तो केजरीवाल ने भी दूसरों से इस्तीफा ना मांगा, जितनी तेजी से इस्तीफे खुद उनकी पार्टी में गिर रहे हैं।
एमसीडी चुनाव में विलेन!
Reviewed by Manu Panwar
on
April 26, 2017
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