भारत-पाक में सुर एक,लेकिन रिश्ते बेसुरे क्यों?

मनु पंवार

 (डिस्क्लेमर : कुछ हस्तियों से मुलाक़ातों पर पिछली दफा कुछ लिखा था। मशहूर गज़ल गायक गुलाम अली से उसी मुलाक़ात का आज पार्ट-2.  ...और हां, ये  व्यंग्य नहीं है। सीरियस मैटर है।)

सिर्फ मौसिक़ी ही है जिसे भारत-पाकिस्तान की न सरहदें रोक पाई, न राजनीति और न मज़हब। इसकी एक वजह है कि सुर सात ही हैं। ताल भी वहीं हैं। जो सुर यहां लगते हैं, वही वहां भी। कभी ऐसा नहीं सुना कि पाकिस्तान ने सुरों की संख्या 7 से घटाकर 5 कर दी हो। उनके नाम भी वही हैं- सा-षड़्ज, रे-ऋषभ, ग-गांधार, म-मध्यम, प-पंचम, ध-धैवत और नि-निषाद। ये संस्कृतनिष्ठ हिंदी नाम हैं। ऐसा भी नहीं हुआ कि पाकिस्तान में ‘षड़्ज’ का धर्मांतरण करके उसका नाम ‘सरफराज़’ रख दिया गया हो।

तो सुर एक है इसीलिए मेंहदी हसन हों, ग़ुलाम अली हों, रेशमा हों, सलमा आगा हों, उस्ताद नुसरत फ़तेह अली ख़ान हों, राहत फ़तेह अली हों, अदनाम सामी हों, आतिफ़ असलम या अली ज़फ़र हों...ये सब सरहदों से परे हैं। वो हमारे भी कण्ठों में बसे हैं। मैंने ग़ुलाम अली से पूछा- खां साहब, फिर ये झगड़ा क्यूं है। वे बोले- कुछ ताक़तें हैं जो हमें लड़ाए रखना चाहती हैं। हम लड़ते रहते हैं। उनका क़ारोबार चलता रहता है।

गुलाम अली ने मेरी नोटबुक में अपना पता और फोन नंबर लिखा लेकिन पता उर्दू में था
ग़ुलाम अली साहब से तय वक़्त से ज़्यादा बातचीत हो गई।...बातचीत का अंतिम चरण आ चुका था। मैंने अपनी नोटबुक उनकी ओर बढ़ाई। कहा- खां साहब, इसमें अपना एड्रेस लिख दीजिए। मेरे काम आएगा। उन्होंने मेरा आग्रह माना। एड्रेस लिखा। मेरी नोटबुक लौटाई। मैंने उनके लिखे पर नज़र डाली तो मेरे लिए काला अक्षर भैंस बराबर...। पूरा एड्रेस उर्दू में था। सिर्फ़ लाहौर ब्रेकेट में अंग्रेज़ी में लिखा हुआ था। मैंने भी चुपचाप नोटबुक जेब में डाल दी और विदा ली।
भारत-पाक में सुर एक,लेकिन रिश्ते बेसुरे क्यों? भारत-पाक में सुर एक,लेकिन रिश्ते बेसुरे क्यों? Reviewed by Manu Panwar on June 03, 2017 Rating: 5

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