'वे ताज पर ले जाएंगे, तुम आज पर अड़े रहना'
मनु पंवार
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| Pic Credits: ताज महल के ट्विटर अकाउंट की प्रोफाइल तस्वीर |
यह बात तो दुनिया जानती है जी. आगरा तीन चीज़ों के लिए बड़ा ही फेमस है. एक, ताज महल, दूसरा आगरे का पेठा और तीसरा पागलखाना. आगरे के पेठे में गज़ब की मिठास घुली है. ताज महल मुहब्बत का अनूठा प्रतीक है. रहा वो पागलखाना, तो मुहब्बत का रास्ता पागलपन से होकर ही गुजरता है, लिहाज़ा पागलखाना भी मुहब्बत का ही एक प्रतीक माना जा सकता है.
वैसे जिस बादशाह ने अपनी बेग़म की मौत के बाद उसकी याद में ताज महल जैसा दुनिया का अजूबा खड़ा कर दिया हो, वो भी कम पगला न रहा होगा. हालांकि मुहब्बत में ऐसा पागलपन सूट करता भी है. जिसने मुहब्बत ही न की हो, वो क्या जाने पागलपन क्या होता है? ऐसे दिमाग़ों से सिर्फ एंटी रोमियो दस्ते ही पैदा हो सकते हैं.
वैसे जिस बादशाह ने अपनी बेग़म की मौत के बाद उसकी याद में ताज महल जैसा दुनिया का अजूबा खड़ा कर दिया हो, वो भी कम पगला न रहा होगा. हालांकि मुहब्बत में ऐसा पागलपन सूट करता भी है. जिसने मुहब्बत ही न की हो, वो क्या जाने पागलपन क्या होता है? ऐसे दिमाग़ों से सिर्फ एंटी रोमियो दस्ते ही पैदा हो सकते हैं.
ताज महल और आगरे से इश्किया पागलपन तो शायर नज़ीर अकबराबादी को भी था. जो 18वीं सदी में आगरे में बसे थे. उन्होंने अपनी शायरी में लिखा भी-
'आशिक कहो, असीर कहो, आगरे का है।
मुल्ला कहो, दबीर कहो, आगरे का है।मुफ़लिस कहो, फ़क़ीर कहो, आगरे का है।
शायर कहो, नज़ीर कहो , आगरे का है।
ताज और आगरे से मुहब्बत करने वाले भी हैं, तो ताज महल खड़ा करने वाले शहंशाह के आलोचक भी कम नहीं हैं. लेकिन आलोचना का का अंदाज़ ज़रा जुदा था. साहिर लुधियानवी साहब की ये पंक्तियां किसे याद नहीं होंगी-
'एक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताज महल,
हम गरीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मज़ाक।'
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| यूपी के बीजेपी विधायक संगीत सोम ने ताज महल को कलंक कथा कह दिया |
बताइए, ताज महल को बनवाते वक़्त तो शाहजहां ने भी नहीं सोचा होगा कि उसकी सफेद संगमरमरी मुहब्बत से कोई बंदा या कोई सरकार इस कदर नफ़रत भी कर सकती है. वो तो ग़नीमत है कि इमारतों/ स्मारकों में जुबान नहीं है, वरना ताज महल भी बोल उठता कि हुजूर! मुहब्बत की निशानियों को मुहब्बत की नज़र से ही देखो. इसे कोई और नाम न दो. मगर ताज महल बोल नहीं सकता. लेकिन इसका ये मतलब भी तो नहीं है कि जिनके मुंह में ज़ुबान है, वो कुछ भी अनाप-शनाप कह दें.
तो आखिर ये फिज़ा बनाई क्यों जा रही है? क्या राजनीति की प्रयोगशाला में गुजरात चुनावों के लिए कुछ पकाया जा रहा है? कहीं ऐसा तो नहीं कि गुजरात का चुनाव भारी पड़ रहा हो और उसे आगरे से लड़े जाने की जुगत चल रही हो? जब गुजरात के चुनावी चुनावी रण को बीच में छोड़के अमित शाह और स्मृति ईरानी, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के साथ मिलके अमेठी-अमेठी खेल सकते हैं, तो आगरे के ताज महल को बीच में क्यों नहीं घसीटा जा सकता? इससे सार्वजनिक विमर्श को बदलने में किसी न किसी को तो सहूलियत हो रही रहेगी. फायदा पहुंच रहा होगा. आखिर यूपी के एक विधायक के बयान पर असदुद्दीन ओवैसी का कूदना महज संयोग तो नहीं हो सकता.
ये प्रपंच बताते हैं कि सरकार बहादुर को इस बार गुजरात के रण में किस कदर मुश्किलें पेश आ रही हैं. कोढ़ पर खाज ये कि कमबख्त ऐन चुनावों के मौसम में शाह जी के बेटे के 'विकास' ने भी एंट्री मार दी. विरोधियों की रैलियों/सभाओं में एक साल में 50 हजार रुपये के 80 करोड़ रुपये में बदलने के करिश्मे की चर्चा हो रही है. ऐसे में उसको पब्लिक के विमर्श से उतारने के लिए भाई लोगों ने सब कुछ झोंक दिया है. शायद इसीलिए ताज महल निशाने पर है. वैसे शायद पब्लिक को भी इस खेल का और इन चालाकियों का कुछ अंदाज़ा लग गया है. सोशल मीडिया पर वायरल हुई इस पोस्ट से तो ऐसा ही आभास हो रहा है. जिसमें लिखा था-
'वे ताज पर ले जाएंगे,
तुम आज पर अड़े रहना.'
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| संगीत सोम के बयान पर ओवैसी का ट्वीट |
ये प्रपंच बताते हैं कि सरकार बहादुर को इस बार गुजरात के रण में किस कदर मुश्किलें पेश आ रही हैं. कोढ़ पर खाज ये कि कमबख्त ऐन चुनावों के मौसम में शाह जी के बेटे के 'विकास' ने भी एंट्री मार दी. विरोधियों की रैलियों/सभाओं में एक साल में 50 हजार रुपये के 80 करोड़ रुपये में बदलने के करिश्मे की चर्चा हो रही है. ऐसे में उसको पब्लिक के विमर्श से उतारने के लिए भाई लोगों ने सब कुछ झोंक दिया है. शायद इसीलिए ताज महल निशाने पर है. वैसे शायद पब्लिक को भी इस खेल का और इन चालाकियों का कुछ अंदाज़ा लग गया है. सोशल मीडिया पर वायरल हुई इस पोस्ट से तो ऐसा ही आभास हो रहा है. जिसमें लिखा था-
'वे ताज पर ले जाएंगे,
तुम आज पर अड़े रहना.'
'वे ताज पर ले जाएंगे, तुम आज पर अड़े रहना'
Reviewed by Manu Panwar
on
October 16, 2017
Rating:
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