चल बेट्टा माफी दे दे रे...!
मनु पंवार
मुझे इन दिनों लगातार माफी के सपने आ रहे हैं। स्कूल, कॉलेज से लेकर कार्यस्थल तक की अपनी तमाम भूतपूर्व और कुछ अभूतपूर्व प्रेमिकाओं के आगे मैं माफी की मुद्रा में हूं। वो मुझसे माफीनामे पर दस्तखत करवा रही हैं। भूल-चूक, लेनी-देनी माफ। मैंने लिख दिया है- जवानों के दिनों में नादानी में इश्क कर बैठा था। फिर दिल तोड़ डाला। लेकिन अब अपने बूते स्थायी सरकार बना चुका हूं। लिहाजा, अब उम्र का ख्याल करते हुए जनहित में माफी दे दो। यूं भी राजनीति की तरह एक उम्र की आशिकी में भी दलों और गठबंधनों में लोगों का आना-जाना लगा रहता है। मुझे खुशी है कि मेरी इस मासूम सी अपील पर मेरी भूतपूर्व प्रेमिकाओं ने अच्छी स्पिरिट दिखाई है। अपील का सामूहिक असर हुआ है। चहुं ओर माफी बरस रही है। प्रकृति भी यह दृश्य देखकर धन्य हो गई।
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कार्टून सौजन्य : daily O |
अबके माफी की मस्त बयार बह रही है। मुझे सपने में दिख रहा है कि अपने समय के तमाम खलनायक माफी की मुद्रा में आ खड़े हुए हैं। कौरव ब्रदर्स यानी दुर्योधन और दु:शासन दोनों माफी की याचिका के साथ भाभी द्रौपदी के आगे दण्डवत हैं। कुरुवंशियों के हश्र ने शकुनि को गहरे डिप्रेशन में पहुंचा दिया है। वह अब धृतराष्ट्र और गांधारी के आगे क्षमा प्रार्थी हैं। उनकी दया याचिका लंबित पड़ी है। गुरु द्रोणाचार्य भी भावुक हैं। उन्होंने गुरु-दक्षिणा के बहाने एकलव्य का अंगूठा मांग लिया था। अंगूठा बड़े काम की चीज है। गुरु द्रोण को शायद इसका अब अच्छी तरह आभास हो गया है। राजनीति में तो अंगूठा दिखाने की परंपरा काफी फल-फूल रही है। एकलव्य के साथ महाभारत में जो नाइंसाफी हुई थी, इक्कीसवीं सदी के भारत में गुरु द्रोण उसकी भरपाई करना चाहते हैं।
मैं सपने में देख रहा हूं कि पाण्डवों के पिता राजा पाण्डु ने खुद उनको माफी देने की पैरवी करते हुए एक लंबी चिट्ठी लिखी है। पाण्डु पुत्रों ने उनके यहां ट्यूशन ली थी। सो, कर्ज चुकाने का यह उचित समय है। राजा पाण्डु बड़े आदमी हैं। किसी अपराधी को माफी देने के लिए उनका चिट्ठी लिखना बड़ी घटना है। लिहाजा सारा कामधाम छोड़कर देश इन दिनों आचार्य द्रोण को माफी देने की बहस में उलझा हुआ है।
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26 जनवरी की परेड के दौरान की तस्वीर सौ.-दूरदर्शन के विजुअल का ग्रैब |
मैं सपने में देख रहा हूं कि शहर की तमाम बिल्लियों ने चूहों से माफी की गुहार लगाई है। वो मुहावरे को झुठलाने पर आमादा हैं। बिल्लियों की मासूम दलील ये है कि नादानी में सौ चूहे डकार लिए। अब हज पर जाने का प्रोग्राम बना तो दिल पसीज गया। चूहों से माफी मिल जावे तो हज करना भी सफल हो जावे। बिल्लियां बता रही हैं कि संविधान की किन-किन धाराओं में माफी देने की गुंजाइश है, लिहाजा वो भी माफी की हकदार हैं।
लेकिन मैं सोच रहा हूं कि अगर माफी की सारी अपीलें स्वीकार कर ली गईं तो किस्से-कहानियां, लोकश्रुतियां, मुहावरे एक ही झटके में सिर के बल खड़े हो जाएंगे! ऐसा लगेगा जैसे कुछ हुआ ही नहीं। लेकिन सतयुग से वाया द्वापर होते हुए कलियुग तक की उन भूलों, गलतियों साजिशों, उन नरसंहारों का खामियाजा जिन्हें भुगतना पड़ा है, उनका क्या होगा? सपने में भी ऐसा सोचना बुरा है क्या?
चल बेट्टा माफी दे दे रे...!
Reviewed by Manu Panwar
on
March 17, 2018
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