...जब एचएन बहुगुणा ने इंदिरा गांधी के ख़िलाफ़ 'देवता' नचाया
मनु पंवार
( भारतीय राजनीति में हेमवती नन्दन बहुगुणा की गिनती एक धाकड़ और विद्रोही किस्म के नेताओं में होती है. वो किस कदर निडर लीडर थे, इसका एक बहुत ही दिलचस्प किस्सा है. जब उन्होंने इंदिरा गांधी के ख़िलाफ़ देश की राजधानी में गढ़वाली में एक व्यंग्य गीत गाया और ढोल बजाया था. उस किस्से को विस्तार से मैंने अपनी पिछली शोध पुस्तक 'गाथा एक गीत की: द इनसाइड स्टोरी ऑफ नौछमी नारेणा' में बताया है. उसी किताब से उस दिलचस्प किस्से का एक हिस्सा साभार यहां साझा कर रहा हूं. )

एक ज़माने में कांग्रेस के हैवीवेट लीडर हेमवती नंदन बहुगुणा की राजनीतिक दीक्षा भले ही इलाहाबाद में हुई हो लेकिन दिल से थे वो खालिस पहाड़ी ही. राजनीति में भी उन्होंने अपनी खुंदक निकालने के लिए जो तरीका अपनाया, वो भी पहाड़ी किस्म का ही था. इंदिरा गांधी से अपना बैर उन्होंने 'देवता' नचाकर सार्वजनिक किया. वो भी देश की राजधानी दिल्ली में.
यह 15 अगस्त 1976 की बात है. उन दिनों देश में इमरजेंसी लगी थी. तब बहुगुणा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे चुके थे. बल्कि उनसे इस्तीफा लिया गया था. उनको हटाकर संजय गांधी ने अपने भरोसेमंद एनडी तिवारी को सीएम बना दिया था. संजय गांधी की वजह से बहुगुणा की इंदिरा गांधी से पट नहीं रही थी. उन्हें भले ही इसके बाद कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया था लेकिन इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी के आगे झुकना उन्हें गवारा न था. बहुगुणा विद्रोही किस्म के नेता थे. इस प्रकरण के बाद वो इंदिरा और संजय को लेकर गुस्से से बहुत भरे हुए थे. इसकी एक झलक दिखी दिल्ली के मशहूर चांदनी चौक में. दिन था 15 अगस्त 1976.
बहुगुणा ने तब चांदनी चौक में एक राजनीतिक 'जागर' का आयोजन किया था. टिहरी से पहाड़ के पारंपरिक लोकवाद्य यंत्र ढोल-दमाऊं बजाने वाले कलाकारों को बुलाया गया था. इस आयोजन के जरिये बहुगुणा ने इंदिरा गांधी के ख़िलाफ़ जमकर अपनी भड़ास उतारी. इस जागर को 'मण्डाण' नाम दिया गया था. 'मण्डाण' उत्तराखण्ड के गढ़वाल इलाके में धार्मिक लोकनृत्य-गीत की एक पारंपरिक शैली है, जोकि लोकवाद्य ढोल-दमाऊं की ताल पर लगाए जाता है. मण्डाण में 'देवताओं' को नचाया जाता है. बहुगुणा ने इसी मण्डाण की शैली में एक राजनीतिक पैरोडी बनाई, जिसमें तब की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर जमकर हमला बोला गया था.
वो राजनीतिक पैरोडी गढ़वाली में थी. इंदिरा पर बहुगुणा ने किस कदर तंज कसे थे, किस कदर हमलावर रुख अख्तियार किया था, उस गीत के गढ़वाली वर्ज़न की एक पंक्ति में इसे समझा जा सकता है-
हिंदी भावानुवाद:
जय जय मां काली.
तू कुर्सी की रक्षा करने वाली
चापलूस तेरी मांगल गावें और
दोनों हाथों से ताली बजावें.
आपातकाल के दौरान देश में सिस्टम किस कदर चरमरा गया था, अदालतें, अख़बार किस कदर डराए गए थे, जबरन नसबंदी का क्या आलम था, इस राजनीतिक 'मण्डाण' गीत में बहुगुणा ने उसका भी ज़िक्र किया है-
( भारतीय राजनीति में हेमवती नन्दन बहुगुणा की गिनती एक धाकड़ और विद्रोही किस्म के नेताओं में होती है. वो किस कदर निडर लीडर थे, इसका एक बहुत ही दिलचस्प किस्सा है. जब उन्होंने इंदिरा गांधी के ख़िलाफ़ देश की राजधानी में गढ़वाली में एक व्यंग्य गीत गाया और ढोल बजाया था. उस किस्से को विस्तार से मैंने अपनी पिछली शोध पुस्तक 'गाथा एक गीत की: द इनसाइड स्टोरी ऑफ नौछमी नारेणा' में बताया है. उसी किताब से उस दिलचस्प किस्से का एक हिस्सा साभार यहां साझा कर रहा हूं. )

एक ज़माने में कांग्रेस के हैवीवेट लीडर हेमवती नंदन बहुगुणा की राजनीतिक दीक्षा भले ही इलाहाबाद में हुई हो लेकिन दिल से थे वो खालिस पहाड़ी ही. राजनीति में भी उन्होंने अपनी खुंदक निकालने के लिए जो तरीका अपनाया, वो भी पहाड़ी किस्म का ही था. इंदिरा गांधी से अपना बैर उन्होंने 'देवता' नचाकर सार्वजनिक किया. वो भी देश की राजधानी दिल्ली में.
यह 15 अगस्त 1976 की बात है. उन दिनों देश में इमरजेंसी लगी थी. तब बहुगुणा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे चुके थे. बल्कि उनसे इस्तीफा लिया गया था. उनको हटाकर संजय गांधी ने अपने भरोसेमंद एनडी तिवारी को सीएम बना दिया था. संजय गांधी की वजह से बहुगुणा की इंदिरा गांधी से पट नहीं रही थी. उन्हें भले ही इसके बाद कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया था लेकिन इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी के आगे झुकना उन्हें गवारा न था. बहुगुणा विद्रोही किस्म के नेता थे. इस प्रकरण के बाद वो इंदिरा और संजय को लेकर गुस्से से बहुत भरे हुए थे. इसकी एक झलक दिखी दिल्ली के मशहूर चांदनी चौक में. दिन था 15 अगस्त 1976.
बहुगुणा ने तब चांदनी चौक में एक राजनीतिक 'जागर' का आयोजन किया था. टिहरी से पहाड़ के पारंपरिक लोकवाद्य यंत्र ढोल-दमाऊं बजाने वाले कलाकारों को बुलाया गया था. इस आयोजन के जरिये बहुगुणा ने इंदिरा गांधी के ख़िलाफ़ जमकर अपनी भड़ास उतारी. इस जागर को 'मण्डाण' नाम दिया गया था. 'मण्डाण' उत्तराखण्ड के गढ़वाल इलाके में धार्मिक लोकनृत्य-गीत की एक पारंपरिक शैली है, जोकि लोकवाद्य ढोल-दमाऊं की ताल पर लगाए जाता है. मण्डाण में 'देवताओं' को नचाया जाता है. बहुगुणा ने इसी मण्डाण की शैली में एक राजनीतिक पैरोडी बनाई, जिसमें तब की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर जमकर हमला बोला गया था.
वो राजनीतिक पैरोडी गढ़वाली में थी. इंदिरा पर बहुगुणा ने किस कदर तंज कसे थे, किस कदर हमलावर रुख अख्तियार किया था, उस गीत के गढ़वाली वर्ज़न की एक पंक्ति में इसे समझा जा सकता है-
'जय जय मां काली/ कुर्सी की तू रक्षा कन्न वाली/
चापलूस तेरी मांगल गावै/ दोनों हाथ बजावै ताली'
चापलूस तेरी मांगल गावै/ दोनों हाथ बजावै ताली'
हिंदी भावानुवाद:
जय जय मां काली.
तू कुर्सी की रक्षा करने वाली
चापलूस तेरी मांगल गावें और
दोनों हाथों से ताली बजावें.
इस पैरोडी गीत की आगे की पंक्तियां तो और भी मारक हैं. इंदिरा गांधी की तानाशाही और उन दिनों कांग्रेस के भीतर चापलूसी का जो आलम था, उसे बहुगुणा ने इन पंक्तियों में यूं बयां किया-
जै बोलो तेरि कुरसी नारेणा
त्वैन रात बोली माता, तौंन रात बोलि
जै बोलो तेरि कुरसी नारेणा
त्वैन दिन बोलि मोता, तौं दिन बोलि
जै बोलो तेरि कुरसी नारेणा'
हिंदी भावानुवाद:
कांग्रेस पार्टी तेरे सामने बेमुंडा गांव जैसी हो गई है.
अगर तूने रात कहा, तो वो सब कांग्रेसी रात ही कहेंगे
और अगर तूने कहा कि दिन है
तो वो सब कहेंगे कि हां दिन है.)
कांग्रेस पार्टी तेरे सामने बेमुंडा गांव जैसी हो गई है.
अगर तूने रात कहा, तो वो सब कांग्रेसी रात ही कहेंगे
और अगर तूने कहा कि दिन है
तो वो सब कहेंगे कि हां दिन है.)
इंदिरा राज में उनके बेटे संजय गांधी की कैसी ठसक थी, इसको भी हेमवती नंदन बहुगुणा ने इस गढ़वाली पैरोडी गीत में बताया है-
'अगाड़ि-अगाड़ि चल्दा संजय भग्यान
जय बोले मेरि इंदिरा भवानी
पिछाड़ि-पिछाड़ि माता, कांग्रेसी सौर्याल
जय बोले मेरि इंदिरा भवानी
शान मां चलदा तेरी चमचों का दल
जय बोले मेरि इंदिरा भवानी
चमचौं का दल माता चव्वन संतरी
जय बोले मेरि इंदिरा भवानी
चव्वन संतरी माता बावन मंतरी
जय बोले मेरि इंदिरा भवानी'
हिंदी भावानुवाद:
तेरा संजय (गांधी) भाग्यवान आगे-आगे चलता है
तो उसकी शान में पीछे-पीछे
कांग्रेसी चमचों का जत्था निकलता है
उन चमचों के दल में
तेरे चव्वन संतरी और बावन मंत्री भी शामिल होते हैं
तेरा संजय (गांधी) भाग्यवान आगे-आगे चलता है
तो उसकी शान में पीछे-पीछे
कांग्रेसी चमचों का जत्था निकलता है
उन चमचों के दल में
तेरे चव्वन संतरी और बावन मंत्री भी शामिल होते हैं
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बहुगुणा जी की फोटो साभार : द टेलीग्राफ |
'अदालतूं पर त्वैन झपेटू मार्याली
जै बोले मेरि मीसा मसाणी
अख़बारू कि त्वैन अंबा आवाज बदल्यालि
जै बोले मेरि मीसा मसाणी
लोकतंत्र सणि अब लचोड़ी घेर्यालि
जै बोले मेरि मीसा मसाणी
खांदु बकलांदु देस नामरद बण्यालि
जै बोले मेरि मीसा मसाणी'
(हिंदी भावानुवाद: हे मेरी मीसा मसाणी ! तूने अदालतों पर झपटा मार लिया है. अख़बारों की तूने आवाज़ ही बदल दी है. तेरे राज में लोकतंत्र को बीमारी ने घेर लिया है. एक खाते-पीते देश को तूने नामर्द बना लिया है.)
सबसे बड़ी बात ये है कि एच एन बहुगुणा ने ऐसा दुस्साहस कांग्रेस में रहकर ही किया था. ये कुछ-कुछ वैसा ही हुआ कि कोई टीवी या अख़बार का रिपोर्टर अपने ही संपादक के ख़िलाफ़ भरी सभा में मोर्चा खोल दे. लेकिन बहुगुणा ने उस दौर की सर्वशक्तिमान नेता और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के ख़िलाफ़ डंके की चोट पर ऐसा किया.
बहुगुणा का गाया ये पूरा गढ़वाली गीत और 42 साल पहले दिल्ली के चांदनी चौक में हुए उस आयोजन से जुड़े और दिलचस्प किस्से मेरी क़िताब 'गाथा एक गीत की: द इनसाइड स्टोरी ऑफ नौछमी नारेणा' में समाहित हैं. मेरी यह क़िताब फ्लिकार्ट पर उपलब्ध है. जिसका लिंक ये रहा.
...जब एचएन बहुगुणा ने इंदिरा गांधी के ख़िलाफ़ 'देवता' नचाया
Reviewed by Manu Panwar
on
April 25, 2018
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