दूर के ढोल सुहाने होने का चक्कर क्या है?
मनु पंवार
नेपाल यात्रा के दौरान काठमांडू के मुक्तिनाथ मंदिर के बाहर पीएम मोदी की एक अदा |
कहते
हैं दूर के ढोल सुहावने होते हैं। शायद इसीलिए कुछ चंट लोग कर्कश ध्वनियों
वाले अपने ढोल लेकर दूर चले जाते हैं ताकि मुहावरे की इज्जत भी बची रहे और
उनका काम भी निकल जाए। ऐसे कई ढोल पीटने वाले अपना ढोल अक्सर दूर से ही
बजाना पसंद करते हैं ताकि उनकी पब्लिक को फीलगुड का भ्रम बना रहे। कानों
में एक सुहानी ध्वनि गूंजती रहे। इस दूरी का एक बड़ा फायदा तो यह है कि ढोल
की पोल खुलने का खतरा न्यूनतम हो जाता है। या यों भी कह सकते हैं कि ढोल
की पोल खोलने वाला कोई पास होता नहीं है। इसीलिए मोदी साहब ने कई किलोमीटर दूर नेपाल में ढोल बजाया तो कई लोगों को उसकी ध्वनि
सुहावनी लगी।
इससे पहले मोदी साहब अफ्रीका के तंजानिया में भी ढोल बजा चुके हैं (तस्वीर नीचे है). अब
कहने वाले लाख कहते रहें कि साहब! एक तरफ तो बुनियादी मुसीबतों में घिरी
हुई है, ऐसे में सुहावनी ध्वनियों के चक्कर में आप नेपाल या अफ्रीकी देश तंजानिया में जाकर
ढोल क्यों बजाने लगे जी? सवाल तो बहुत हैं, लेकिन तूती जब नक्कारखाने में
बजती है तो उसकी हैसियत क्या रह जाती है, ये बताने की ज़रूरत नहीं है। लेकिन
मुझे तो ढोल की भी फिक्र है जी। कभी किसी ने सोचा भी कि उस बेचारे ढोल पर
क्या बीत रही होगी? वो बेचारा तो दूर के ढोल सुहावने वाले मुहावरे की लाज
रखने की खातिर न जाने कितनी सदियों से पिट रहा है।
![]() |
तंजानिया के राष्ट्रपति के साथ ढोल बजाते पीएम मोदी |
वैसे एक सच यह भी है कि जो ढोल और उसके नाद को नहीं समझते, उसे महसूस नहीं करते, वही ढोल ज़ोर-ज़ोर से पीटते हैं। जिन्हें इसकी समझ है, वो ‘ढोल सागर’ ग्रन्थ की रचना कर डालते हैं। जैसे पहाड़ के एक बड़े लोक कलाकार और विद्वान केशव अनुरागी कई बरस पहले कर चुके हैं। अब कोई उस दौर में अनुरागी साहब से ये पूछता कि हुजूर, यह ढोल तो दूर से ही सुहावना लगता है तो आप इसे खुद से सटाये क्यों बैठे हो जी ? सवाल तो होता मगर जो रचना करता है उसे इससे फर्क कहां पड़ता है कि ढोल का नाद कानों को सुहावना लगेगा कि कर्कश। लेकिन साहब ढोल पीटने वाले को इस बात से बहुत फर्क पड़ता है, क्योंकि उसने अच्छे, सुहावने और कर्णप्रिय सपने बेचे हैं। इसीलिए वह ढोल बजाने के लिए दूरी का खास ख्याल रखता है। फिर चाहे वह दूरी मुल्कों की ही क्यों न हो।
दूर के ढोल सुहाने होने का चक्कर क्या है?
Reviewed by Manu Panwar
on
May 12, 2018
Rating:
No comments