कौन पी गया शिमला के हिस्से का पानी?
मनु पंवार
{यह आलेख 'अमर उज़ाला' अख़बार के लिए लिखा गया. 1जून 2018 को 'अमर उजाला' अख़बार के संपादकीय पृष्ठ पर इस लेख का कुछ हिस्सा प्रकाशित हुआ है. लेकिन यहां पर यह आलेख कुछ और अनसुनी, कुछ और दिलचस्प जानकारियों के साथ पेश किया जा रहा है.}
शिमला के मॉल रोड पर पानी के लिए लंबी कतार |
ऐसा पहले नहीं देखा गया कि गर्मियों में शिमला में पुलिस के पहरे में पानी बांटने की नौबत आई हो. अपनी पत्रकारिता के दिनों में शिमला में कुछ बरस गुजारने के अनुभव के आधार पर मैं यह बात कह सकता हूं. लेकिन इस बार ऐसी तस्वीरें आ रही हैं जो बहुत चौंका रही हैं. इन दिनों सैलानियों से गुलज़ार रहने वाले शिमला के मॉल रोड तक में पानी के टैंकर के आगे बर्तनों के साथ लोगों की लंबी-लंबी कतारें लगी हैं. पुलिस की निगरानी में पानी बंट रहा है. जिन इलाकों में टैंकर जाने की सुविधा नहीं है, वहां लोग दूर से पानी ढोते हुए दिख रहे हैं. विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, नारे गूंज रहे हैं. धरना हो रहा है. इस बार तो हिमाचल सरकार को सालाना जलसा 'शिमला समर फेस्टिवल' भी स्थगित करना पड़ा है. खुद शिमला के निवासियों के लिए ये अप्रत्याशित हालात हैं.
शिमला के मॉल रोड में सैलानियों ने ऐसा नज़ारा पहले नहीं देखा होगा |
आधा पानी कहां गया?
वैसे गर्मियों के दिनों में शिमला में जल संकट कोई नई बात नहीं है. लेकिन इस बार इसने विकराल रूप ले लिया. सारा सिस्टम चरमरा गया है.
भारी जल संकट के बीच लोग सड़कों पर उतर आए |
लालचों की पैदाइश है जल संकट?
हालांकि इस जल संकट के बीच एक दलील यह भी दी जा रही है कि इस बार की सर्दियां सूखी गुज़र गईं, न ढंग की बारिश हुई, न कायदे से बर्फ गिरी, लिहाज़ा पानी के स्रोत रीचार्ज नहीं हो पाए. इसलिए शिमला में ऐसी नौबत आई. लेकिन ऐसी मासूम दलीलें देते वक्त असल में हम भूल जाते हैं कि शिमला का मौजूदा जल संकट हमारे ही लालचों की देन है. हमने अपने कमाऊ नगरों, खासकर हिल स्टेशनों के बुनियादी ढांचे की तरफ ध्यान ही नहीं दिया. उनकी सेहत चुस्त-दुरुस्त रहे, इसकी परवाह ही नहीं की. उन्हें सिर्फ सैरगाह समझा. मौजमस्ती का अड्डा समझा. छुट्टियों में या वीकेंड पर आए और इसे रौंद कर चले गए. पर्यटन के नाम पर चांदी बटोरने वालों के लिए ये हिल स्टेशन सोने का अंडा देने वाली ऐसी मुर्गी बन गए, जिसका पेट फाड़ डालने में भी किसी ने हिचक नहीं दिखाई. शिमला में तो इस धंधे की आड़ में कई स्तरों पर ऐसा माफिया भी पैदा हुआ है, जोकि आड़े वक्त में शिमलावालों के हिस्से का बचा-खुचा पानी तक लूट लेता है. इस बार शिमला के भीषण जल संकट ने सबको आईना दिखा दिया है.
जब भाप के पंपों से पहुंचाया गया पानी
शिमला को अंग्रेज़ों ने 19वीं सदी में बसाया था |
पानी का संकट पहली बार इतने विकराल रूप में सामने आया |
21वीं सदी में 19वीं सदी का सिस्टम !
आप कतार में हैं: ऐसे हो रहा है पानी के टैंकर का इंतज़ार |
वायसराय जमा कराते थे बारिश का पानी
हमने पानी के लिए कायदे के इंतजाम तो किए नहीं, पानी बचाने के पुराने तौर-तरीकों की भी सुध नहीं ली. अंग्रेज़ों ने तो अपने दौर में शिमला के आसपास पानी के स्रोतों को बचाए रखने के लिए कई पाबंदियां भी लगाई थीं. मसलन
ये सुनिश्चित किया जाता था कि शिमला कैचमेंट एरिया यानी जलग्रहण क्षेत्र में मानवीय
गतिविधियां न हों. यहां तक कि शिमला के दिल कहे जाने वाले 'द रिज़' मैदान पर बने भूमिगत जलाशय के ऊपर भी एक वक़्त में सीमित लोगों को ही चलने की इजाज़त थी. सिर्फ यही नहीं, ब्रिटिश राज में तो शिमला में बारिश का पानी बचाने और उसका सदुपयोग करने की भी तरकीब अपनाई गई. शिमला में चौड़ा मैदान इलाके में जो वायसरीगल लॉज है, जहां आज़ादी से पहले वायसराय रहा करते थे और आज इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज है, उस इमारत के आंगन में ज़मीन के भीतर बारिश का पानी स्टोर करने की व्यवस्था है. उस पानी को बगीचों और शौचालयों में इस्तेमाल किया जाता था. ऐसा अब तक होता है. इमारत के आंगन में ज़मीन के अंदर पानी के टैंक गड़े हैं और उनके ऊपर बना है खूबसूरत लॉन.
जंगल के बीच सीमेंट का जंगल
यही नहीं, अंग्रेज़ों ने यह भी सुनिश्चित किया कि शिमला में जंगल खूब और घना रहे. लेकिन अब शिमला में जंगलों के बीच
सीमेंट-कंकरीट के कई-कई जंगल उग आए हैं, लिहाजा पानी के पारंपरिक स्रोत मरने लगे. हमने इस ख़ूबसूरत पहाड़ी नगर पर इतना बोझ डाल दिया है कि उसकी व्यवस्थायें चरमराने लगी हैं. मौजूदा जल संकट तो इसका एक संकेतभर है. अगर इसका दोष सिर्फ मौसम के ऊपर डाल देंगे, तो यह रेत में सिर घुसेड़ने जैसा शुतुर्मुर्गी जैसी चाल होगी, और कुछ नहीं.
जंगल के बीच सीमेंट का जंगल
कतार ही कतार |
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अमर उजाला अख़बार के एडिटोरियल पेज पर मेरा लेख |
कौन पी गया शिमला के हिस्से का पानी?
Reviewed by Manu Panwar
on
June 02, 2018
Rating:
BAHUT SHAANDAR SODHPARAK
ReplyDeleteMc matlab makarcod hai kya unke
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