मैया मोरी मैं नहिं #MeToo कीन्हो
मनु पंवार
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साभार: संदीप अधार्यु का कार्टून उनके ट्विटर हैंडल से |
उस मनुष्य लोक में भारी खलबली मची हुई थी।
चारों तरफ़ अचानक हाहाकार सा दिख रहा था। कानों में बस यही समेवत स्वर सुनाई दे रहे थे, #MeToo...#MeToo. उस मनुष्य लोक के
'देवताओं' के चेहरों पर से नक़ाब उतरते जा रहे थे। रोज़ाना एक नए 'देवता' की परतें उधड़ रही थी और सामने आ रहा था एक नग्न और विवादित सा ढांचा। तब पता चला कि जिन बंदों ने 'संस्कारी' चोला ओढ़ा था, उनके भीतर जाने कब से एक दुराचारी दुबककर बैठा था। #MeToo का प्रहार इतना भीषण था कि कैसे-कैसे
शहंशाह-ए-आलम सदमे से कोपभवन में चले गए। यह भी तभी पता चला कि उनकी ऊंची और मज़बूत दीवारों के भीतर न जाने कितनी 'अनारकलियां' सिसक रही थीं। इस लिहाज़ से #MeToo की मारक क्षमता राफेल से
भी ज़्यादा ख़तरनाक निकली।
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उस मनुष्य लोक
में #MeToo किसी चक्रवाती तूफ़ान की तरह आया। उस लोक के मौसम विभाग के
सेटेलाइट भी उसे नहीं पकड़ पाए, इसीलिए समय पर कोई पूर्व चेतावनी भी जारी
नहीं की जा सकी। हां, मौसम विभाग वालों ने कभी अख़बारों में पढ़ा ज़रूर था कि
पश्चिमी विक्षोप की वजह से अपने जंबू द्वीप में भी #MeToo आने के चांसेज हो
सकते हैं, लेकिन वो श्योर नहीं थे। वैसे भी मौसम विभाग भला कब श्योर रहा है! अगर वो श्योर होने लगे तो पब्लिक को उसके मौसम विभाग होने पर शक होने लगता है। हालांकि एक संभावना यह भी हो सकती है कि मौसम विभाग अपने यहां के हालात देखकर इस बात को लेकर श्योर रहा होगा कि
#MeToo नाम का तूफान अपने यहां कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। इसलिए उन्होंने उसे भाव नहीं दिया।
लेकिन अपनी भविष्यवाणियों की ही तरह मौसम विभाग का ये अनुमान भी ग़लत साबित हुआ। #MeToo बहुत अप्रत्याशित ढंग से उस मनुष्य लोक में दाखिल हुआ और सब कुछ तहस-नहस करता चला गया। उस तूफान की रफ़्तार बहुत प्रचण्ड निकली। उसने बड़े-बड़े तम्बू उखाड़
दिए। बड़े-बड़े महलों को हिला दिया। बड़े-बड़े किलेदार कांपने लगे। आलम ये हो गया कि
रोज़ाना बड़ी-बड़ी प्रतिमाएं खण्डित होकर ज़मीन पर औंधे मुंह गिरने लगीं, धूल-धूसरित होने लगीं। जो
मूर्तियां बरसों पहले धूमधाम के साथ प्रतिष्ठापित की गई थीं, उन्हें
#MeToo ने एक ही झटके में विसर्जित कर दिया। पब्लिक ऐसे चौंक रही थी जैसे
शेक्सपीयर के नाटक में जूलियस सीज़र चौंकता है, "यू टू ब्रूटस !" हालत ऐसी हो गई है कि वो बंदा तो यह कहने लायक भी नहीं रहा कि हे मैया मोरी ! मैं नहिं #MeToo कीन्हो !
असल में उस लोक के 'देवता' ऐसी सिचुएशन को फेस करने के आदी नहीं थे। इसकी वजह भी थी। उस मनुष्य लोक में इस तरह का प्रकोप पहले कभी नहीं देखा गया था। चूंकि ऐसे आपातकाल के लिए उनकी तैयारी नहीं थी और #MeToo जैसे घातक अस्त्र से उनके आभा मंडल का लगातार बंडल बनता जा रहा था, लिहाज़ा उनके पास स्वयं का मुंह छिपाने के अलावा कोई चारा नहीं था। लगभग उसी तरह की सिचुएशन हो गई थी जैसी भीषण बरसात के दिनों में प्राय: दिल्ली में एमसीडी वालों की या मुंबई में बीएमसी वालों की हो जाती है।
असल में उस लोक के 'देवता' ऐसी सिचुएशन को फेस करने के आदी नहीं थे। इसकी वजह भी थी। उस मनुष्य लोक में इस तरह का प्रकोप पहले कभी नहीं देखा गया था। चूंकि ऐसे आपातकाल के लिए उनकी तैयारी नहीं थी और #MeToo जैसे घातक अस्त्र से उनके आभा मंडल का लगातार बंडल बनता जा रहा था, लिहाज़ा उनके पास स्वयं का मुंह छिपाने के अलावा कोई चारा नहीं था। लगभग उसी तरह की सिचुएशन हो गई थी जैसी भीषण बरसात के दिनों में प्राय: दिल्ली में एमसीडी वालों की या मुंबई में बीएमसी वालों की हो जाती है।
मैया मोरी मैं नहिं #MeToo कीन्हो
Reviewed by Manu Panwar
on
October 10, 2018
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