चड्ढी पहन के फूल खिला है ! (भाग-1)

मनु पंवार

(डिस्क्लेमर : यह कोई व्यंग्य नहीं है। यादों के ख़ज़ाने में कई ऐसी चीजें हैं जिन्हें साझा करने का मन है। वो चीजें हैं मेरी कुछ हस्तियों से अच्छी मुलाकातें। अलग-अलग कालखण्डों में हुई इन मुलाक़ातों में कई दिलचस्प किस्से, कुछ मज़ेदार बातें भी हैं। उन यादों के गलियारे में गुलज़ार से हुई मुलाक़ात को साझा कर रहा हूं। यह दो हिस्सों में है।  ये पहला हिस्सा है। )

वाइसरीगल लॉज के ऑफिस वाले हिस्से में गुलज़ार के साथ एक चित्र
गुलज़ार साहब के मुरीद बहुत लोग हैं। ख़ासकर फ़िल्मी गीतों में उनकी शब्दों की बाज़ीगरी के, जो सुर के कांधे पे सवार होकर कानों में कुछ-कुछ घोल जाते हैं। उन्होंने प्रतीकों और बिंबों का गज़ब इस्तेमाल किया है। 'मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है..., 'सारा दिन सड़कों पे खाली रिक्शे सा पीछे-पीछे चलता है...', 'जा पड़ोसी के चूल्हे से आग लेईले...', 'है यार मेरा खुशबू की तरह है/उसकी जु़बां उर्दू की तरह...', 'आ धूप मलूं मैं तेरे हाथों में...'। ऐसे न जाने कितने ही गीत हैं जिनमें गुलज़ार चौंकाते हैं। हालांकि कुछ समय पहले 'इब्ने बतूता...' गीत के विवाद ने उनकी भारी फज़ीहत करा दी थी। उन्होंने इस गीत में हिंदी के बड़े कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की एक कविता का मुखड़ा उठा लिया था।

गुलज़ार और मेरे बीच IIAS के अधिकारी अशोक शर्मा हैं
मेरी गुलज़ार साहब से मुलाक़ात अक्तूबर 2001 में हुई। आज से करीब 17 साल पहले। तब शिमला में 'अमर उजाला' अख़बार में संवाददाता था। उन दिनों शिमला में ठंड दस्तक देने लगी थी। गुलज़ार इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज़ शिमला में किसी कार्यक्रम में आए  हुए थे। यह इंस्टीट्यूट ब्रिटिशकालीन इमारत वाइसरीगल लॉज में है। जो ब्रिटिश इंडिया में ब्रिटिश वाइसराय का निवास हुआ करता था। वाइसरीगल लॉज को ब्रिटिश आर्किटेक्ट हेनरी इरविन ने डिजाइन किया था और वाइसराय लॉर्ड डफरिन के कार्यकाल में 1880 में इसका निर्माण शुरू हुआ था। 1888 में ये बनकर तैयार हुआ।

गुलज़ार से मेरा परिचय इंस्टीट्यूट के एक तत्कालीन अधिकारी अशोक शर्मा ने कराया। गुलज़ार वहां तीन दिन रहे। मैंने अपने दफ़्तर से तीन दिन की छुट्टी ले ली। गुलज़ार साहब के इर्द-गिर्द रहा। उनसे गपशप, बातचीत करता रहा। रिकॉर्डिंग की सुविधा वाला वॉकमैन मेरे साथ था। तीन दिन लगातार मिलते-जुलते रहने की वजह से वह थोड़ा अनौपचारिक भी हो गए थे। इसका मैंने फायदा उठाया। उनके साथ था, तो वाइसरीगल लॉज के उस कमरे में भी गया जो लॉर्ड माउंटबेटन का बेडरूम था। उसी के बगल में लेडी माउंटबेटन का बेडरुम भी देखा, वरना विजिटर्स को इन ख़ास जगहों में नहीं जाने दिया जाता।

वॉयसरीगल लॉज की नक्काशी को निहारते गुलज़ार
एक दिन लंच करने के बाद हम गुनगुनी धूप में वाइसरीगल लॉज के आंगन की मखमली घास पर टहल रहे थे। मैंने बातों-बातों में गुलज़ार साहब से जिज्ञासावश पूछ लिया- ये जो आपने गीत लिखा है कि...जंगल-जंगल पता चला है/चड्ढी पहनके फूल खिला है...क्या इसका आरएसएस और बीजेपी से भी कोई कनेक्शन है?गुलज़ार थोड़ा ठिठके। फिर एक ज़ोरदार ठहाका मारा। मेरे कंधे पर थपकी मारी और आगे बढ़ गए।

(जारी...)
चड्ढी पहन के फूल खिला है ! (भाग-1) चड्ढी पहन के फूल खिला है ! (भाग-1) Reviewed by Manu Panwar on November 25, 2018 Rating: 5

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