दूर के ढोल सुहाने होने का चक्कर क्या है?
मनु पंवार
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छत्तीसगढ़ में चुनाव रैली के दौरान आज मोदीजी ने ढोल गले में डाला |
बड़ी मशहूर कहावत है, दूर के ढोल
सुहावने होते हैं। शायद इसीलिए चंट लोग कर्कश ध्वनियों वाले अपने ढोल लेकर दूर चले
जाते हैं ताकि मुहावरे की इज़्ज़त भी बची रहे और उनका काम भी निकल जाए। ऐसे कई ढोल
पीटने वाले अपना ढोल अक्सर दूर से ही बजाना पसंद करते हैं ताकि उनकी पब्लिक को
फीलगुड का भ्रम बना रहे। कानों में एक सुहानी ध्वनि गूंजती रहे। वो ऐसा इसलिए भी
करते हैं क्योंकि उन्होंने अच्छे, सुहावने और कर्णप्रिय सपने बेचे हैं।
इस दूरी का एक बड़ा फायदा तो यह है कि ढोल की पोल खुलने का खतरा न्यूनतम हो जाता
है। या यों भी कह सकते हैं कि ढोल की पोल खोलने वाला कोई पास होता नहीं है।
लेकिन मुझे तो ढोल की भी फिक्र है जी। कभी किसी ने सोचा भी कि उस बेचारे ढोल पर क्या बीत रही होगी? वो बेचारा तो दूर के ढोल सुहावने वाले मुहावरे की लाज रखने की खातिर न जाने कितनी सदियों से पिट रहा है। पता नहीं तुलसीदास जी ने भी ऐसा क्यों लिखा कि- ‘ढोल, गंवार,शूद्र, पशु नारी, सकल ताड़न के अधिकारी।’ बुनियादी तौर पर यह ढोल विरोधी स्थापना है। बाप रे बाप...प्रताड़ना भी इतनी लंबी कि खत्म होने का नाम ही न ले ! अगर सृष्टि के रचियता ब्रह्मा जी को पता होता कि आगे चकर ढोल की ऐसी बेकद्री होनी है तो कभी ढोल की उत्पत्ति हो पाती भला। फिर किसको बजाते ? और किसके बजाने पर सवाल उठाते?
लेकिन मुझे तो ढोल की भी फिक्र है जी। कभी किसी ने सोचा भी कि उस बेचारे ढोल पर क्या बीत रही होगी? वो बेचारा तो दूर के ढोल सुहावने वाले मुहावरे की लाज रखने की खातिर न जाने कितनी सदियों से पिट रहा है। पता नहीं तुलसीदास जी ने भी ऐसा क्यों लिखा कि- ‘ढोल, गंवार,शूद्र, पशु नारी, सकल ताड़न के अधिकारी।’ बुनियादी तौर पर यह ढोल विरोधी स्थापना है। बाप रे बाप...प्रताड़ना भी इतनी लंबी कि खत्म होने का नाम ही न ले ! अगर सृष्टि के रचियता ब्रह्मा जी को पता होता कि आगे चकर ढोल की ऐसी बेकद्री होनी है तो कभी ढोल की उत्पत्ति हो पाती भला। फिर किसको बजाते ? और किसके बजाने पर सवाल उठाते?
दूर के ढोल सुहाने होने का चक्कर क्या है?
Reviewed by Manu Panwar
on
November 16, 2018
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