जब पंडित शिव कुमार शर्मा ने गवर्नर को सुबह-सुबह सुला दिया !

मनु पंवार

(डिस्क्लेमर : पहले ही बता दूं। यह कोई व्यंग्य नहीं है। यादों के ख़ज़ाने में कई ऐसी चीजें हैं जिन्हें साझा करने का मन है। वो चीजें हैं मेरी कुछ हस्तियों से अच्छी मुलाकातें। अलग-अलग कालखण्डों में हुई इन मुलाक़ातों में कई दिलचस्प किस्से, कुछ मज़ेदार बातें भी हैं। उन यादों के गलियारे से इस बार मशहूर संतूर वादक पण्डित शिव कुमार शर्मा से हुई मुलाक़ात  को साझा कर रहा हूं। )


18 बरस पहले : शिमला में राज्य अतिथि गृह 'पीटर हॉफ' में पंडित शिव कुमार शर्मा के साथ लंबी बातचीत हुई
इस किस्से को आज अठारह बरस हो गए हैं। सन् 2000 की बात है। तब पण्डित शिव कुमार शर्मा अपने कार्यक्रम के सिलसिले में शिमला आए हुए थे। 'स्पिक मैके' से लेकर कुछ अन्य संस्थाओं ने आयोजन करवाए थे। ये उसी दौरान की बात है. पंडित शिव कुमार शर्मा को शिमला में गवर्नर हाउस में संतूर की परफॉर्मेंस देनी थी।तब विष्णुकांत शास्त्री (अब दिवंगत) गवर्नर थे। आरएसएस बैकग्राउंड के नेता थे। मैंने उन्हें अक्सर धोती-कुर्ते में ही देखा। विद्वान आदमी थे। साहित्य और संगीत में खासी दिलचस्पी रखते थे और कद्रदान भी थे। विष्णुकांत शास्त्री को पहली बार नब्बे के दशक के शुरुआती साल में आरएसएस के मुखपत्र 'पांचजन्य' में तब पढ़ा था जब अयोध्या में मंदिर-मस्जिद का झगड़ा उबाल पर था। उनकी लेखन शैली ग़ज़ब थी। बाद में वो यूपी के राज्यपाल भी बने।

बहरहाल, शिमला के गवर्नर हाउस के अंदर मंच सजा था। सुबह का वक़्त था। सब कुछ तरोताज़ा, सब कुछ चकाचक दिख रहा था। पण्डित शिव कुमार शर्मा मंच पर आए। उनके साथ तबले पर उस्ताद शफात अहमद ख़ां संगत पर थे। तबले के दिल्ली घराने के बड़े नुमाइंदे थे शफात साहब। एक दौर में उनके पिता उस्ताद छम्मा खां का भी बड़ा नाम था। साल 2005 में कोई पचासेक बरस की उम्र में शफात अहमद खां का निधन हो गया। वह 2003 में 'पद्मश्री' से सम्मानित किए गए थे।

पंडित शिव कुमार शर्मा और शफात की जोड़ी लाजवाब थी...। पंडित जी के साथ तबले पर उस्ताद ज़ाकिर हुसैन ने उतनी संगत नहीं की जितनी शफ़ात ने की।...ठीक से याद तो नहीं आ रहा है लेकिन शायद शिव कुमार शर्मा ने संतूर पर राग अहीर भैरव छेड़ा। ये सुबह का राग है..। सुबह नौ-दस बजे का वक्त भी था।

पंडित जी और शफात ने समां बांध दिया। उनके वादन में गज़ब का सम्मोहन है। सब मंत्रमुग्ध थे। लेकिन सबसे आगे की सीट पर बैठे गवर्नर विष्णुकांत शास्त्री को पहले झपकिया आईं। फिर नींद ही आ गई लेकिन संगीत जारी रहा। पंडित शिव कुमार शर्मा और शफात संगीत का जादू बिखेरे हुए थे। जब शिवजी की संतूर की परफॉर्मेंस ख़त्म हुई तो हॉल में ज़ोरदार तालियों का संगीत गूंजा, तब जाकर गवर्नर साहब की नींद टूटी।

शिमला के रिज पर स्थित 'आशियाना' रेस्त्रां में डिनर के दौरान की तस्वीर
पण्डित शिव कुमार शर्मा और उस्ताद शफात अहमद खां से मेरी मुलाक़ात शिमला के 'पीटर हॉफ' में हुई थी। दोनों से अलग-अलग लंबी बैठकी चली। शिवजी से बातचीत के दौरान अहसास हुआ कि लोकप्रिय चीजों को गढ़ना वाक़ई कितना बड़ा कठिन काम होता है। ख़ासकर संगीत के क्षेत्र में। पण्डित शिव कुमार शर्मा से विस्तार से हुई बातचीत में यह बात मुझे ज़्यादा बारीक़ी से समझ आई। उनसे 18 साल पहले शिमला में वो मेरी पहली मुलाक़ात थी।

शिव जी संतूर के सबसे बड़े फनकार हैं। उनसे यूं मिलना सपने के सच होने जैसा था। कश्मीर में सूफियाना मौसिक़ी के साथ बजने वाले साज़ संतूर को अपने हुनर से उन्होंने इतनी बड़ी जगह दिला दी कि कौड़ी का यह साज़ बेशकीमती बन गया। कुछ ऐसे ही, जैसे कोई कोच गली में क्रिकेट खेलने वाले किसी बच्चे को तराशकर उसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बड़ा खिलाड़ी बना दे। शिव जी के इस विलक्षण हुनर की छाप फ़िल्मों में भी दिखी।

अगर आपने 'सिलसिला', 'चांदनी', 'फासले', 'लम्हे', 'डर' जैसी बॉलीवुड की ब्लॉकबस्टर फ़िल्मों के गीत गुनगुनाए हों तो आप संगीतकार शिव-हरि की जोड़ी को नहीं भूल सकते। शिव यानी शिव कुमार शर्मा और हरि यानी हरि प्रसाद चौरसिया। दोनों हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के सूरमा। मैंने शिव जी से पूछा- आपको पॉपुलर म्यूजिक रचने में तो आसानी होती होगी? उन्होने एक-एक गीत को संगीतबद्ध करने का अपना अनुभव साझा किया। उनकी बातों से मैं हैरान था कि ये वाक़ई कितना मुश्किल काम था। उन्होंने गीत के लिए एक से एक कर्णप्रिय धुनें तैयार कीं, अबके संगीतकारों की तरह नहीं कि धुन पहले बना ली। फिर शब्द फिट कर दिए।पण्डित शिव कुमार शर्मा से एक और चीज़ सीखी। बड़ा होना ही काफी नहीं, विनम्र होना बड़ी बात है।
जब पंडित शिव कुमार शर्मा ने गवर्नर को सुबह-सुबह सुला दिया ! जब पंडित शिव कुमार शर्मा ने गवर्नर को सुबह-सुबह सुला दिया ! Reviewed by Manu Panwar on January 04, 2019 Rating: 5

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