मनु पंवार
समाजों के खान-पान, पकवान, उनके व्यवहार में कई बार गज़ब की समानता देखने को मिलती है। जैसे उत्तराखण्ड के पहाड़ों में बनने वाले 'रोट' को ही ले लीजिए। रोट और बिहार के ठेकुआ में काफी चीजें साम्य हैं। दोनों एक ही चीज़ से बनते हैं। शक्ल-सूरत भी लगभग एक सी। स्वाद भी लगभग मिलता-जुलता। लेकिन फिर भी दोनों में कुछ बातें अलग भी हैं। यहां पहाड़ों में बनने वाले रोट का सचित्र वर्णन किया जा रहा है।
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आटे को अच्छी तरह मथकर उसमें गुड़ का पानी और ड्राई फ्रूट्स मिलाए जाते हैं |
उत्तराखण्ड के पहाड़ों में मायके आई बेटी की विदाई या ससुराल लौटी बहू को कलेऊ के साथ भेजने का चलन अब भी नहीं छूटा है। उस कलेऊ का हिस्सा होते हैं रोट और अरसे। आटा, गुड़ के पानी और ड्राई फ्रूट्स के मिश्रण से बनता है 'रोट' और चावलों को पीसकर बनाया जाता है 'अरसा'। रोट और अरसा किसी भी मिठाई या लड्डू पर भारी हैं। जो तस्वीरें आप देख रहे हैं वो हमारे गांव की हैं। हमारे घर की। रोट कैसे तैयार होता है, इसका सचित्र वर्णन है।
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ये तस्वीर 'रोट' बनने की प्रक्रिया का एक हिस्सा हैं |
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ये लकड़ी के सांचे हैं जिनसे रोट का आकार ढाला जाता है. ये सांचे डिजाइनदार होते हैं. |
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सांचों के बीच आटे की गोली को दबाने में काफी ज़ोर लगाना पड़ता है। तभी डिजाइनदार सांचों की छाप रोट के बदन पर ढंग से उभरती है। |
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रोट बनाना काफी श्रम-साध्य काम है, इसलिए इसमें कई लोग मिलकर हाथ बंटाते हैं |
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सांचों के बीच गुंथे हुए आटे की गोली को दबाकर ऐसा आकार उभरता है |
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तेल में तलकर निकलते हैं क्रंची क्रंची रोट |
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