महामिलावट जो देखन मैं चला...
मनु पंवार
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क्या एनडीए महामिलावट नहीं है?
वैसे सामान्य बोलचाल में 'महा' शब्द बड़े या ज़्यादा का बोध कराता है। मतलब जिस गठबंधन में जितने ज्यादा दल उसे हम महागठबंधन, या मोदीजी की भाषा में 'महामिलावट', कह सकते हैं। राजनीति में शुद्धता के मोदीजी के इस नए मानक को ही पैमाना मानें, तो इस समय देश में सबसे बड़ा 'महागठबंधन' एनडीए का है। जिसकी अगुआई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं कर रहे हैं। राजनीतिक शुद्धता के मोदीजी के इस नए पैमाने को लागू करें तो एनडीए नाम का यह महागठबंधन ही 'महामिलावट' है। ऐसा कहने की वजहें क्या हैं, आइए ज़रा इसको फैक्ट के ज़रिए समझ लेते हैं।
महामिलावट में गुजारे 5 साल !
पहले इसी एनडीए की बात कर लेते हैं. साल 2014 से लेकर 2019 के बीच एनडीए का कुनबा बढ़ा ही है. 2014 में बीजेपी के साथ एनडीए में 23 दल शामिल थे. उसे मिले वोटों का प्रतिशत 38.5% था. यानी 2014 के चुनाव में जो कुल वोट पड़े उसमें से 38.5% वोट एनडीए वाले गठबंधन को मिले. इस गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी को अकेले 31% मिले थे और उसे कुल 282 सीटें हासिल हुई थी.
तो क्या जिस गठबंधन को 'महामिलावट' के विशेषण से नवाजा गया है, क्या वो ये गठबंधन है जिसमें 34 पार्टियां हैं? जाहिर है, मोदीजी का
आशय एनडीए से कतई नहीं हो सकता. वो भला अपने ही महागठबंधन के खिलाफ ऐसा बयान
क्यों देंगे? तो फिर वो कौन सा गठबंधन है? क्या वो गठबंधन कांग्रेस के नेतृत्व वाला यूपीए यानी संयुक्त प्रगतिशील
गठबंधन है? लेकिन उस गठबंधन
में तो आज सिर्फ 16 ही दल हैं. याद दिला दें कि टीडीपी, आरएलएसपी, हम को
एनडीए को छोड़कर यूपीए जॉइन किए हुए अभी ज़्यादा वक्त नहीं हुआ है. बल्कि टीडीपी ने तो फिर गेम कर दिया है।
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34 दल वाला 'महा' कि 16 दल वाला?
2014 में यूपीए केवल 13 दलों का गठबंधन था और उसे मिले थे करीब 24 % वोट. जिसमें से अकेले कांग्रेस का वोट था 19.3 प्रतिशत. लेकिन यूपीए में एनडीए के मुकाबले इतने कम दल हैं कि उसे महागठबंधन कहना महागठबंधन की बेइज्जती टाइप होगा. कहां 34 दल और कहां 16 दल ! कोई तुलना ही नहीं है. तो जैसी लोकतंत्र की रीत है,संख्याबल के हिसाब से एनडीए इस समय का सबसे बड़ा गठबंधन होना चाहिए. (बीजेपी के नेता संसद में अक्सर संख्याबल की धौंस दिखाते रहे हैं.) तो क्या मोदीजी जिस गठबंधन को महामिलावट कह रहे हैं वो एनडीए है?
वैसे 'महामिलावट' का खिताब देने से पहले मोदीजी करीब महीनेभर पहले यानी पहली जनवरी को एएनआई न्यूज़ एजेंसी को दिए इंटरव्यू में चुनाव प्रचार का एजेंडा सेट कर चुके थे। तब उन्होंने कहा था कि 2019 का चुनाव जनता Vs महागठबंधन होगा। अब ये 'जनता' कौन है, इसे समझने के लिए आपको भारत निर्वाचन आयोग के 2014 के आम चुनाव के आंकड़े फिर से देखने होंगे. निर्वाचन आयोग का रेकॉर्ड बता रहा है कि 2014 के उस बहुचर्चित आम चुनाव में कुल 55 करोड़ से ज्यादा जनता (वोटरों) ने वोट दिया. सही-सही आंकड़ा बताऊं तो 55,38,01,801 वोटरों ने वोट डाला.
मोदीजी की 'जनता' कौन सी है?
2014 में कुल 55 करोड़ में से 21 करोड़ से ज्यादा 'जनता' ने मोदीजी के गठबंधन एनडीए को वोट दिया। 13 करोड़ से ज्यादा 'जनता' ने यूपीए गठबंधन को अपना मत दिया. लेकिन उस 'जनता' का एक बड़ा हिस्सा ऐसा था जिसने न बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन को वोट दिया और न ही कांग्रेस वाले गठबंधन को. ऐसी 'जनता' संख्या में कोई कम नहीं है. करीब 21 करोड़ वोटर हैं. यानी करीब-करीब उतने ही वोटर जितनों ने मोदीजी के एनडीए के वोट दिया
अगर 'जनता' पैमाना है तो क्या ये माना जाए कि 2014 में
करीब 34 करोड़ (21 करोड़ अन्य+13 करोड़ यूपीए) 'जनता' की पसंद मोदीजी वाला
गठबंधन नहीं था? प्रतिशत में देखें तो करीब 62 प्रतिशत बैठता है. यानी दो
तिहाई से कुछ कम जनता ने 2014 में एनडीए को अपना वोट नहीं दिया. करीब 38 फीसदी 'जनता'
के मतों की बदौलत मोदीजी 5 साल राज कर रहे हैं।
तो क्या राजनीति में शुद्धता के मोदीजी द्वारा गढ़े गए नए फॉर्मूले के हिसाब से ये माना जाए कि इस देश के 62 फीसदी वोटरों ने साल 2014 में 'महामिलावट' के लिए वोट किया? क्या जिस जनता की पसंद मोदीजी की पार्टी नहीं है, वो सब मिलावटी, बल्कि महामिलावटी है? तो क्या शुद्धता के पैमाने पर खरा न उतरने की वजह से उस बाकी की 62 फीसदी 'जनता' को इस देश से खारिज कर दिया जाना चाहिए जिसका मत एनडीए वाले गठबंधन के साथ नहीं था?
मोदीजी के बयान ने बड़ा कनफ्यूज़न पैदा कर दिया है जी. ऐसी सिचुएशन में फिलहाल तो मुझे जर्मन कवि बर्तोल ब्रेख्त की कविता याद आ रही है-
'जनता ने सरकार का विश्वास खो दिया है
और अब दुगने प्रयत्नों से ही
उसे पा सकती है।
ऐसी हालत में
क्या सरकार के लिए ज्यादा आसान नहीं होगा
कि वह इस जनता को भंग कर दे
और दूसरी चुन ले ?'
(बीजेपी देश में पिछले बड़े महागठबंधनों का हिस्सा रही है.
1977 में जब इंदिरा गांधी के खिलाफ महागठबंधन बना था तो बीजेपी (तब जनसंघ)
उसका हिस्सा थी। जन संघ ने भारतीय लोक दल, सोशलिस्ट पार्टी और कांग्रेस
(ओ) के साथ मिलकर जनता अलायंस बनाया। यानी वह भी 'महामिलावटी सरकार' थी जोकि करीब 2 साल चली। 1989
में जनता दल की अगुआई वाली राष्ट्रीय मोर्चा की गठबंधन सरकार को बीजेपी का
समर्थन था। बाद में बीजेपी के 'युगपुरुष' अटल बिहारी वाजपेयी ने भी 20 से ज्यादा दलों की
'महामिलावटी' सरकार चलाई. आज बीजेपी को भले ही प्रचण्ड बहुमत हो लेकिन उसने भी 2014 का चुनाव कई पार्टियों से गठबंधन करके लड़ा। यानी प्री-पोल महामिलावट की। )
पीएम मोदी ने अंतरिम बजट सत्र में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर भाषण दिया |
मोदीजी को लोकसभा को जनसभा में बदल देने की महारत है। वैसे भी चुनावी जनसभाओं में तथ्यों पर बात करने की ज़रूरत तो पड़ती नहीं है। आज मोदीजी ने विरोधियों को नए विशेषण से नवाजा- महामिलावट। सबको पता है कि उन्होंने 'लोकतंत्र के मंदिर' से 'महामिलावट' उस तथाकथित महागठबंधन को करार दिया है, जोकि लोकतांत्रिक तरीके से ही उन्हें चुनौती देने के लिए आकार ले रहा है।
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क्या एनडीए महामिलावट नहीं है?
वैसे सामान्य बोलचाल में 'महा' शब्द बड़े या ज़्यादा का बोध कराता है। मतलब जिस गठबंधन में जितने ज्यादा दल उसे हम महागठबंधन, या मोदीजी की भाषा में 'महामिलावट', कह सकते हैं। राजनीति में शुद्धता के मोदीजी के इस नए मानक को ही पैमाना मानें, तो इस समय देश में सबसे बड़ा 'महागठबंधन' एनडीए का है। जिसकी अगुआई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं कर रहे हैं। राजनीतिक शुद्धता के मोदीजी के इस नए पैमाने को लागू करें तो एनडीए नाम का यह महागठबंधन ही 'महामिलावट' है। ऐसा कहने की वजहें क्या हैं, आइए ज़रा इसको फैक्ट के ज़रिए समझ लेते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाला एनडीए या राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन अपने आप में 34 पार्टियों का गठबंधन है। जिसमें से 9
पार्टियां केंद्र में और 25 पार्टियां राज्यों में बीजेपी की सहयोगी हैं। (तथ्यों में अगर कुछ ऊपर-नीचे हों तो पाठकगण कृपया संशोधन करवाने की कृपा करें) इतनी ज्यादा पार्टियों वाले गठबंधन एनडीए को कोई 'महागठबंधन' कह दे तो गुनाह नहीं है।
तथ्य सामने हैं। लेकिन सत्ताधारी दल के प्रचार तंत्र की कलाकारी देखिए कि इतना विशाल गठबंधन
होने के बावजूद यह राजनीतिक विमर्श की मुख्यधारा का हिस्सा नहीं बन पाया
है. गठबंधन के नाम पर टारगेट सिर्फ विपक्ष है, मानो दलों ने आपस में समझौता करके बहुत बड़ा गुनाह कर लिया हो।
एनडीए में बीजेपी के सहयोगी दलों की सूची |
महामिलावट में गुजारे 5 साल !
पहले इसी एनडीए की बात कर लेते हैं. साल 2014 से लेकर 2019 के बीच एनडीए का कुनबा बढ़ा ही है. 2014 में बीजेपी के साथ एनडीए में 23 दल शामिल थे. उसे मिले वोटों का प्रतिशत 38.5% था. यानी 2014 के चुनाव में जो कुल वोट पड़े उसमें से 38.5% वोट एनडीए वाले गठबंधन को मिले. इस गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी को अकेले 31% मिले थे और उसे कुल 282 सीटें हासिल हुई थी.
इन पांच सालों में एनडीए से कुछ पार्टियां छिटकी भी हैं. जैसे हाल में असम में असम गण परिषद, बिहार
में उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी यानी आरएलएसपी और जीतन
राम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा यानी 'हम', आंध्र प्रदेश में नायडू की
टीडीपी, पश्चिम बंगाल में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा
एनडीए से दूर चली गई. लेकिन इस दौरान एनडीए में पार्टियां और जुड़ी भी
हैं. इनमें शामिल हैं- शिव संग्राम, जना सेना पार्टी, मणिपुर पीपल्स
पार्टी, केरला कांग्रेस (थॉमस), केरल विकास कांग्रेस, प्रजा सोशलिस्ट
पार्टी, पीपल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट, मणिपुर डेमोक्रेटिक पीपल्स फ्रंट आदि.
पीएम के इंटरव्यू के बाद 2 जनवरी को 'हिंदुस्तान' की लीड |
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34 दल वाला 'महा' कि 16 दल वाला?
2014 में यूपीए केवल 13 दलों का गठबंधन था और उसे मिले थे करीब 24 % वोट. जिसमें से अकेले कांग्रेस का वोट था 19.3 प्रतिशत. लेकिन यूपीए में एनडीए के मुकाबले इतने कम दल हैं कि उसे महागठबंधन कहना महागठबंधन की बेइज्जती टाइप होगा. कहां 34 दल और कहां 16 दल ! कोई तुलना ही नहीं है. तो जैसी लोकतंत्र की रीत है,संख्याबल के हिसाब से एनडीए इस समय का सबसे बड़ा गठबंधन होना चाहिए. (बीजेपी के नेता संसद में अक्सर संख्याबल की धौंस दिखाते रहे हैं.) तो क्या मोदीजी जिस गठबंधन को महामिलावट कह रहे हैं वो एनडीए है?
वैसे 'महामिलावट' का खिताब देने से पहले मोदीजी करीब महीनेभर पहले यानी पहली जनवरी को एएनआई न्यूज़ एजेंसी को दिए इंटरव्यू में चुनाव प्रचार का एजेंडा सेट कर चुके थे। तब उन्होंने कहा था कि 2019 का चुनाव जनता Vs महागठबंधन होगा। अब ये 'जनता' कौन है, इसे समझने के लिए आपको भारत निर्वाचन आयोग के 2014 के आम चुनाव के आंकड़े फिर से देखने होंगे. निर्वाचन आयोग का रेकॉर्ड बता रहा है कि 2014 के उस बहुचर्चित आम चुनाव में कुल 55 करोड़ से ज्यादा जनता (वोटरों) ने वोट दिया. सही-सही आंकड़ा बताऊं तो 55,38,01,801 वोटरों ने वोट डाला.
मोदीजी की 'जनता' कौन सी है?
2014 में कुल 55 करोड़ में से 21 करोड़ से ज्यादा 'जनता' ने मोदीजी के गठबंधन एनडीए को वोट दिया। 13 करोड़ से ज्यादा 'जनता' ने यूपीए गठबंधन को अपना मत दिया. लेकिन उस 'जनता' का एक बड़ा हिस्सा ऐसा था जिसने न बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन को वोट दिया और न ही कांग्रेस वाले गठबंधन को. ऐसी 'जनता' संख्या में कोई कम नहीं है. करीब 21 करोड़ वोटर हैं. यानी करीब-करीब उतने ही वोटर जितनों ने मोदीजी के एनडीए के वोट दिया
2 जनवरी 2019 को द टेलीग्राफ का मुखपृष्ठ |
तो क्या राजनीति में शुद्धता के मोदीजी द्वारा गढ़े गए नए फॉर्मूले के हिसाब से ये माना जाए कि इस देश के 62 फीसदी वोटरों ने साल 2014 में 'महामिलावट' के लिए वोट किया? क्या जिस जनता की पसंद मोदीजी की पार्टी नहीं है, वो सब मिलावटी, बल्कि महामिलावटी है? तो क्या शुद्धता के पैमाने पर खरा न उतरने की वजह से उस बाकी की 62 फीसदी 'जनता' को इस देश से खारिज कर दिया जाना चाहिए जिसका मत एनडीए वाले गठबंधन के साथ नहीं था?
मोदीजी के बयान ने बड़ा कनफ्यूज़न पैदा कर दिया है जी. ऐसी सिचुएशन में फिलहाल तो मुझे जर्मन कवि बर्तोल ब्रेख्त की कविता याद आ रही है-
'जनता ने सरकार का विश्वास खो दिया है
और अब दुगने प्रयत्नों से ही
उसे पा सकती है।
ऐसी हालत में
क्या सरकार के लिए ज्यादा आसान नहीं होगा
कि वह इस जनता को भंग कर दे
और दूसरी चुन ले ?'
महामिलावट जो देखन मैं चला...
Reviewed by Manu Panwar
on
February 07, 2019
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