जीपीएस न होने से भटका आडवाणीजी का रथ !
मनु पंवार
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फोटो साभार : प्रवीण जैन की फेसबुक वॉल से |
वह साल 1990 की बात है, जब लालकृष्ण आडवाणी सोमनाथ से 'रथ' लेकर निकले थे. क़रीब 29 साल हो गए हैं, आडवाणी जी अब तक मंज़िल पर नहीं पहुंच पाए. उस 'रथ' में जीपीएस लगा देते तो शायद ऐसी नौबत न आती. रास्ते में ही बहुत बुरी तरह से भटक गए. जबकि उस 'रथ' का सारथी आज कहां से कहां पहुंच गया. और तो और, जिस अफसर ने बिहार के समस्तीपुर में लालू के कहने पर उस 'रथ' को रोका था, उसकी भी किस्मत चमक गई. वो आज आडवाणीजी की ही पार्टी से पार्लियामेंट पहुंच चुका है.
बस आडवाणी जी बेचारे तब से सफर में ही रह गए. पीएम इन वेटिंग. टिकट ही कन्फर्म न हो पाई. और तो और, रेलवे की तरह आरएसी तक भी न पहुंच पाए. हाय, इत्ती निर्दयी वेटिंग ! सारा सपना ही चकनाचूकर कर दिया.
बस आडवाणी जी बेचारे तब से सफर में ही रह गए. पीएम इन वेटिंग. टिकट ही कन्फर्म न हो पाई. और तो और, रेलवे की तरह आरएसी तक भी न पहुंच पाए. हाय, इत्ती निर्दयी वेटिंग ! सारा सपना ही चकनाचूकर कर दिया.
वैसे हमें तो यह भी लगता है 91 साल के आडवाणी जी शायद राजनीति में 'नर्वस नाइंटीज़' का शिकार हो गए हैं. शतक के करीब पहुंचकर क्रिकेट में भी अक्सर बल्लेबाज नर्वस हो जाता है और कई दफा वो आउट हो जाता है. हालांकि आ़डवाणी जी को नर्वस नहीं होना चाहिए था. बीजेपी ने एक वक्त में उन्हें 'लौह पुरुष' बताया था. विडंबना देखिए कि जिन वेंकैया नायडू ने आडवाणीजी को सबसे पहले 'लौह पुरुष' कहा था, वो पार्टी के भीतर अपना लोहा मनवाकर उपराष्ट्रपति बन गए और आडवाणीजी की वेटिंग इत्ती लंबी खिंच गई कि उनका बचा-खुचा लोहा भी पिघल गया.
वैसे कुछ खुराफाती सूत्र तो यह भी बता रहे हैं कि अडाणी और आडवाणी में बंदे कनफ्यूज्ड हो जा रहे थे, इसलिए एक बंदे को निपटाना पड़ा. ज़माने का क्या है जी, जित्ते मुंह उतनी बातें.
जीपीएस न होने से भटका आडवाणीजी का रथ !
Reviewed by Manu Panwar
on
March 22, 2019
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