गब्बर सिंह होली की तारीख क्यों जानना चाह रहा था?

मनु पंवार

( 'रामगढ़ के सूत्रों से पता चला है कि गब्बर की मंशा बड़ी नेक थी. वह होली के दिन दुश्मन को भी गले लगाना चाहता था...')

फिल्म शोले में गब्बर सिंह का डायलॉग बहुत मशहूर हुआ
बरसों पहले आई फिल्म ‘शोले’ में डाकुओं का सरदार गब्बर सिंह अपने गुर्गों से पूछता रह गया कि होली कब है? इधर, सालों बाद गब्बर सिंह को कोई जवाब देने वाला मिला. यह राजू श्रीवास्तव था. टीवी और फ़िल्मों का कॉमेडियन, जिसने खूंखार डाकू गब्बर के सवाल को मसखरी में बदल दिया (देखिए वीडियो).वह टेलीविजन पर गब्बर का मज़ाक उड़ाते-उड़ाते खुद हास्य का चैम्पियन बन बैठा. उसने गब्बर को इतना लाचार और बेबस बना दिया कि तीन-चार दशक बाद ‘शोले’ की कहानी सिर के बल खड़ी होती नज़र आई. 

तब पचास-पचास कोस दूर गब्बर का नाम लेकर मांयें अपने छोटे बच्चों को चुप करा लेती थीं कि सो जा बेटा सो जा, वरना गब्बर आ जाएगा. राजू श्रीवास्तव की मसखरी के बाद उस गब्बर सिंह पर तरस आने लगा और उन मांओं पर भी, जो अपने नौनिहालों को गब्बर का हौव्वा खड़ा करके चुप करा लेती थीं.

ज़रा सोचिए, आज अगर रामगढ़ या चंबल में गब्बर सिंह की हुकूमत चल रही होती तो इस गुस्ताखी पर वो राजू श्रीवास्तव का सर कलम न करवा देता? या फिर ‘शोले’ के ठाकुर जैसा हश्र करवा देता. भई गब्बर सिंह ठहरा जालिम. उसका क्या भरोसा? ठाकुर के हाथ छीन लिए तो राजू श्रीवास्तव की गर्दन भी छीन सकता था। लेकिन भई डाकू के भीतर भी आखिर दिल है. 


फिल्म 'बागबां' में अमिताभ बच्चन और हेमा मालिनी पर होली गीत फिल्माया गया
रामगढ़ के सूत्रों से पता चला है कि गब्बर सिंह ने होली की तारीख यूं ही नहीं पूछी थी. उसके पीछे था होली के त्योहार का ये फलसफा जिसे वीरू और बसंती गाते हैं कि ‘होली के दिन दिल खिल जाते हैं और दुश्मन भी गले लग जाते हैं.’ तो अब आप समझ ही गए होंगे कि गब्बर की कितनी नेक मंशा थी. होली के दिन जब दिल खिल जाते हैं, रंगों से रंग मिल जाते हैं और दुश्मन भी गले लग जाते हैं, तो फिर भला गब्बर ने ये पूछकर क्या खता कर ली कि होली कब है? क्या पता होली के बहाने गब्बर सिंह की दुश्मनों को गले लगाने की नेक मंशा रही हो.

उधर, गब्बर होली की तारीख पूछते-पूछते रिटायर हो गया और फिर बाद में न जाने कब चल बसा. लेकिन ‘शोले’ का जय है कि बुढ़ापे में भी अपने लिए होली के जश्न के मौके बढ़ाए जा रहा है. सत्तर-अस्सी के दशक का बिना दाड़ी-मूंछ वाला वो सफाचट लेकिन गुस्सैल नौजवान उम्र की ढलान पर फ्रेंचकट दाढ़ी में अभी भी होली के सुरूर में डूबा है. फिल्मवालों ने उसे एंग्री यंगमैन की जगह ‘बागबां’ बना दिया और उम्र की ढलान बसंती के संग ठुमका लगाके  वह गा रहा है-‘होली खेले रघुवीरा अवध में'.

मुलायम ने ऐश्वर्या बच्चन के नाम पर डिग्री कॉलेज बनवा दिया
भई, बच्चन साहब ठहरे सिनेमा के महानायक. अवध में अब भले ही एक महंत हुकूमत चला रहे हों, एक दौर में बच्चन साहब के समाजवादी मित्रों का राज भी रहा है. तब तो उनकी होली की बात ही कुछ और थी. उन दिनों महानायक समाजवाद की साइकिल पर परिवार समेत सवार थे. बच्चन साहब यूपी में समाजवादियों की ब्रैंडिंग कर रहे थे. वह टीवी पर कह रहे थे-'यूपी में बड़ा दम क्योंकि जुर्म यहां कम है.

बच्चन साहब के मुखारबिंदु से निकले इन बोलों से यूपी से जुर्म तो गया नहीं, लेकिन महानायक के अभिन्न मित्र मुलायम सिंह यादव की सरकार ज़रूर चली गई. बाद में एक दौर ऐसा भी आया कि छोटे भैया अमर सिंह समाजवादी पिक्चर से ग्लैमर का रंग ले उड़े, तो समाजवादी पार्टी एक ही झटके में बाजरे की रोटी सी ब्लैक एंड व्हाइट नजर आने लगी. महानायक ने भी ब्रैंड बदल लिया और वह ब्रैंड मोदी के संग हो लिए. टीवी पे आके लोगों से कहने लगे, कुछ दिन तो गुजारो गुजरात में. 


धर्मेंद्र 2004 में बीकानेर से बीजेपी के टिकट पर सांसद बने थे
खैर, तो आज वो होली है जिसके लिए गब्बर सिंह बेकरार था. लेकिन बसंती के बिना होली का कोई मतलब है भला? वक्त का पहिया ऐसा घूमा कि तांगा चलाते-चलाते बसंती पहुंच गई पार्लियामेंट. जिस केसरिया के संग बाद में जय अपनी होली मनाने निकले, बसंती उस केसरिया पार्टी का दुपट्टा कब से ओड़े बैठी है. लेकिन बसंती का बड़प्पन तो देखिए. मेंबर ऑफ पार्लियामेंट ज़रूर हो गई है लेकिन अब तक अपनी धन्नो को नहीं भूली. चुनावी सभाओं में जहां-तहां कहती फिरती दिखीं-"चल धन्नो, आज तेरी बसंती की इज़्ज़त का सवाल है"

तो साहब पूरा मामला इज़्ज़त से जुड़ा है. इज़्ज़त बची रहे इसीलिए ‘शोले’ के वीरू ने बसंती की पार्टी से एक बार सांसद चुने जाने के बाद राजनीति से तौबा कर ली. कुछ इस अंदाज़ में कि ‘ये ले अपनी लकुटि कमरिया, बहुत ही नाच नचायो.' ज्यादा समय नहीं गुज़रा है जब वीरू को उनके चुनाव क्षेत्र बीकानेर के मतदाता पुकारते रह गए कि घर कब आओगे? उधर, वीरू सांसद का चोला उतारकर अपने घर बैठ गए. ‘शोले’ की वो गुमसुम सी राधा बाद में समाजवादी हो गई और राज्यसभा के रास्ते पार्लियामेंट पहुंच गई. 

अब तो ख़ैर यूपी के समाजवादियों का रंग फीका पड़ गया है. वरना वो भी क्या दौर था जब हर तरफ रंग ही रंग थे.
गब्बर सिंह होली की तारीख क्यों जानना चाह रहा था? गब्बर सिंह होली की तारीख क्यों जानना चाह रहा था? Reviewed by Manu Panwar on March 19, 2019 Rating: 5

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