राजनीति में जूते की मारक क्षमता का परीक्षण हो गया !
मनु पंवार
एक सांसद जब अपनी ही पार्टी के विधायक को भरी सभा में जुतिया देता है तो राजनीति में जूते की उपयोगिता समझी जा सकती है. यूपी के संतकबीर नगर में एक सरकारी बैठक में बीजेपी के सांसद शरद त्रिपाठी ने बीजेपी के विधायक राकेश सिंह पर किस कदर जूते बरसाए इसका वीडियो सबने देखा. इससे कम से कम जूते की मारक क्षमता पर तो कोई संदेह बाकी नहीं रह गया है. वो परीक्षण कामयाब रहा. नेता की न सही, जूते की विश्वसनीयता एक बार फिर से कायम हो गई है.
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वैसे राजनीति में एक अस्त्र के तौर पर चप्पल का दौर भी आया. लेकिन न जाने क्यों राजनीति में चप्पल वैसी जगह नहीं बना पाई. जूते से पिटने वाले विधायकजी भी चप्पल से मुकाबला ही कर ही नहीं पाए. दोनों का क्लास आड़े आ गया. जबकि गुस्से में चलते दोनों ही हैं. यूं मारक क्षमता चप्पल की भी कम नहीं है. लेकिन कभी-कभी ऐसा लगता है कि उसे राजनीति में जूते जैसा मुकाम हासिल करने के लिए काफी एड़ियां घिसनी पड़ेंगी.
वैसे समाजशास्त्रियों और मनोविज्ञानियों के लिए भी यह बड़े शोध का विषय है कि आखिर जब ग़ुस्से का चरम होता है, आम तौर पर जूता तभी क्यों चलता है? शांति काल अर्थात् प्यार-मोहब्बत में भी जूता चलना चाहिए. आशिकी भी तो एक स्टेज पर आकर चरम की गति को प्राप्त होती है.
हमारे यहां तो अनुराग और भक्ति की पराकाष्ठा, जिसे हम आधुनिक राजनीतिक भाषा में चमचागिरी भी कह सकते हैं, में तो जूते के राज करने तक की बड़ी-बड़ी मिसाले हैं. राजनीति में अपने ईष्टदेव का जूता उठाने वाले भक्त नारायण दत्त हो जाते हैं. मुख्यमंत्री बन जाते हैं, इससे जूते की उपयोगिता तो साबित होती ही है.
यह भक्ति का चरम ही तो है कि नेता अपने बचे-खुचे स्वाभिमान को अपने राजनीतिक ईष्टदेव के चरणों में जूते की तरह बिछा देता है. वैसे जूता अर्थात् चरण पादुका को राज करने का अधिकार त्रेता युग में ही मिल चुका था. कलियुग आते-आते जूते के राज करने की यह परंपरा और फली-फूली. अब राजनीतिक दलों से लेकर सरकारों तक में बड़े नेताओं का चरण पादुका राज चलता है. जूते की इससे बड़ी उपयोगिता और क्या होगी.
राजनीति में जूते की मारक क्षमता का परीक्षण हो गया !
Reviewed by Manu Panwar
on
March 07, 2019
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