मणिशंकर के बगैर इलेक्शन सूना-सूना लागे !
मनु पंवार
इस बार का लोकसभा चुनाव कांग्रेस के मणिशंकर अय्यर के धैर्य की कड़ी परीक्षा ले रहा है. सात में से दो चरणों का चुनाव निपट चुका है, लेकिन मणिशंकर अय्यर ने अब तक मुंह नहीं खोला, न वो कहीं दिखे ही हैं. हाल का चुनावी इतिहास गवाह है कि जब-जब मणिशंकर अय्यर ने मुंह खोला है, उनकी अपनी पार्टी कांग्रेस की भद पिटी है और बीजेपी ने इसका फायदा उठाया है. 2014 के आम चुनाव का बहुचर्चित 'चायवाला' कमेंट तो आपको याद ही होगा. मोदीजी ने उसे ऐसा लपका कि सीधे प्रधानमंत्री बन बैठे.
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साभार : वन इंडिया में हरिओम का कार्टून |
इस बार का लोकसभा चुनाव कांग्रेस के मणिशंकर अय्यर के धैर्य की कड़ी परीक्षा ले रहा है. सात में से दो चरणों का चुनाव निपट चुका है, लेकिन मणिशंकर अय्यर ने अब तक मुंह नहीं खोला, न वो कहीं दिखे ही हैं. हाल का चुनावी इतिहास गवाह है कि जब-जब मणिशंकर अय्यर ने मुंह खोला है, उनकी अपनी पार्टी कांग्रेस की भद पिटी है और बीजेपी ने इसका फायदा उठाया है. 2014 के आम चुनाव का बहुचर्चित 'चायवाला' कमेंट तो आपको याद ही होगा. मोदीजी ने उसे ऐसा लपका कि सीधे प्रधानमंत्री बन बैठे.
मणिशंकर अय्यर के पास ये ऐसा हुनर है, जिसे उनकी अपनी पार्टी नहीं, विरोधी बीजेपी ही ढंग से पहचान पाई है. 2017 में गुजरात के विधानसभा चुनाव के दौरान मणिशंकर अय्यर के श्रीमुख से मोदीजी के लिए निकला था कि मोदी नीच सोच वाले आदमी हैं. सबको पता है मोदीजी ने कैसी कलाकारी की थी. 'नीच सोच' में से 'सोच' को ग़ायब कर दिया था और 'नीच' को चुनावी रैलियों में इतनी बार गाया कि गुजरात के वोटरों की सहानुभूति बटोर ले गए. सब जानते हैं कि गुजरात विधानसभा चुनाव का नतीजा क्या रहा था.
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साभार : चेतन बरोट के ट्विटर हैंडल से |
कई बार ऐसे लगना लगा था कि मानो मणिशंकर अय्यर कांग्रेस के फिदायीन हों, जो अपने बयानों से अपनी ही पार्टी की बैंड बजा डालते हैं. उनके बयानों की टाइमिंग से कई बार ऐसा भी लगा मानो मणिशंकर ने अपनी पार्टी कांग्रेस की ही सुपारी ले ली हो. लेकिन इस दफा न जाने क्या हो गया. बंदा दम साधे चुप बैठा है. सारी बोलचाल बंद. सारी बयानबाजी स्थगित. जबकि ये तो सबसे बड़ा चुनाव है.
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वैसे कभी-कभी तो यह भी लगता है कि मणिशंकर भारतीय राजनीति में एक व्यक्ति नहीं, बल्कि खास तरह की घटना हैं. वह अपनी तरह के एक ही पीस हैं. हालांकि चुनावी बाज़ार में उनके पायरेटेड वर्जन भी आ चुके हैं. हिमाचल प्रदेश में बीजेपी के अध्यक्ष सतपाल सत्ती ने तो भरी चुनावी सभा में राहुल गांधी को मां की गाली दे दी, लेकिन सत्ती मणिशंकर अय्यर नहीं बन पाए और न कांग्रेस सत्ती को बीजेपी का मणिशंकर ही बना पाई. इससे यह बात भी पुष्ट होती है कि मणिशंकर सिर्फ कांग्रेस में ही पैदा हो सकते हैं.
मणिशंकर को इस चुनाव में बीजेपी वाले बहुत मिस कर रहे हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि उन्होंने सैम पित्रोदा में ही मणिशंकर अय्यर को ढूंढने की कोशिश कर डाली. लेकिन वह दांव ज़्यादा चला नहीं. आखिर ओरिजिनल तो ओरिजिनल ही होता है. फिर पहले ही कहा जा चुका है कि मणिशंकर अय्यर अपनी तरह के इकलौते पीस हैं. उनके पायरेटेड वर्जन का चलना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है.
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वैसे कभी-कभी तो यह भी लगता है कि मणिशंकर भारतीय राजनीति में एक व्यक्ति नहीं, बल्कि खास तरह की घटना हैं. वह अपनी तरह के एक ही पीस हैं. हालांकि चुनावी बाज़ार में उनके पायरेटेड वर्जन भी आ चुके हैं. हिमाचल प्रदेश में बीजेपी के अध्यक्ष सतपाल सत्ती ने तो भरी चुनावी सभा में राहुल गांधी को मां की गाली दे दी, लेकिन सत्ती मणिशंकर अय्यर नहीं बन पाए और न कांग्रेस सत्ती को बीजेपी का मणिशंकर ही बना पाई. इससे यह बात भी पुष्ट होती है कि मणिशंकर सिर्फ कांग्रेस में ही पैदा हो सकते हैं.
मणिशंकर को इस चुनाव में बीजेपी वाले बहुत मिस कर रहे हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि उन्होंने सैम पित्रोदा में ही मणिशंकर अय्यर को ढूंढने की कोशिश कर डाली. लेकिन वह दांव ज़्यादा चला नहीं. आखिर ओरिजिनल तो ओरिजिनल ही होता है. फिर पहले ही कहा जा चुका है कि मणिशंकर अय्यर अपनी तरह के इकलौते पीस हैं. उनके पायरेटेड वर्जन का चलना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है.
कहीं ऐसा तो नहीं कि अभी मणिशंकर अय्यर पिच का मिजाज भांप रहे हैं. हो सकता है कि वो क्रिकेट की तर्ज पर इस चुनाव के स्लॉग ओवर्स में प्रकट हो जाएँ और अपने एक ही बयान से पूरे मैच अर्थात् चुनाव का रुख बदल दें. भई, बोलने वाले बंदे को आखिर कब तक चुप रख पाओगे. सब्र की भी कोई सीमा होती है. है कि नहीं?
मणिशंकर के बगैर इलेक्शन सूना-सूना लागे !
Reviewed by Manu Panwar
on
April 18, 2019
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