राजनीति में कुर्ता भेजने के साइड इफेक्ट
मनु पंवार
हमारे देश में राजनीति में कुर्ता गिफ्ट करने की 'ग़ैर-राजनीतिक' परंपरा के बारे में पहले कभी सुना नहीं गया है। अगर रही भी होगी, तो वह ज़्यादा लोकप्रिय नहीं हो पाई क्योंकि पहले किसी नेता के अपने सीने का नाप सार्वजनिक करने का चलन भी नहीं था। लिहाजा चाहकर भी दूसरा बंदा अपने चहेते नेता के नाप का कुर्ता नहीं भिजवा पाता था। उन दिनों नेता को राजनीति में अपने कद, अपने साइज का अंदाज़ा बखूबी होता था, लिहाजा वो अपना कुर्ता प्राय: खुद ही सिलवा लेता था।
लेकिन अपने प्रधानमंत्री मोदीजी ने जाने-अनजाने एक नई परंपरा शुरू कर दी। जब से उन्होंने अपने सीने का नाप सरेआम बता दिया, तब से उन्हें उनके नाप का कुर्ता भेजने वालों की होड़ मच गई। ऐसा करने वालों में बड़े-बड़े नाम हैं। एक राजनीतिक नाम का खुलासा तो खुद प्रधानमंत्री मोदी ने चुनावी मौसम के बीच सिने एक्टर अक्षय कुमार के साथ एक 'अ-राजनीतिक' टीवी इंटरव्यू में किया। मोदी बोले कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उन्हें कुर्ते भेजा करती हैं।
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पश्चिम बंगाल की चुनावी रैली में पीएम मोदी फोटो साभार : ANI |
बताइए, बंगाल में बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता एक-दूसरे के कुर्ते फाड़ रहे हैं और दोनों पार्टियों के शीर्ष नेता आपस में 'कुर्ता-कुर्ता' खेल रहे हैं। इस कुर्ता प्रकरण के अब तो साइड इफेक्ट भी देखने को मिल रहे हैं। कल पश्चिम बंगाल के श्रीरामपुर में बीजेपी की चुनाव रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा- 'ममता दीदी ! तुम्हारे 40 विधायक मेरे संपर्क में हैं। 23 मई को लोकसभा चुनाव के बाद वो बीजेपी का दामन थाम लेंगे।'
इसके जो भी राजनीतिक अर्थ लगाएं लेकिन इससे एक बात तो पता चली। और वो ये कि ममता बनर्जी मोदीजी को अब तक कुल मिलाकर 40 कुर्ते भिजवा चुकी हैं। इस बात की भी पुष्टि हो गई है कि कुर्ते विधायकों के हाथ से ही भिजवाए गए। जिससे हुआ ये कि ममता बनर्जी के विधायक मोदीजी के संपर्क में आ गए। बताइए, हमने सदभावना से कुर्ते भेजे और उन्होंने कुर्ता तो कबूल किया ही, जिन बंदों के हाथों भिजवाए गए थे, उन पर भी डोरे डाल लिए ! घोर कलियुग आ गया है। इससे तो कुर्ता भेजने-भिजवाने की इस नई-नई रस्म को धक्का लगेगा और राजनीति में अविश्वास और बढ़ेगा।
फिर तो कुर्ता गिफ्ट करने से अच्छा तो कुर्ता फाड़ने की परंपरा ही है, जिसने भारतीय लोकतंत्र को बहुत समृद्ध किया है। पब्लिक नेता के कुर्ते फाड़ देती है तो कई बार कार्यकर्ता ही अपने नेता के कुर्ते उधाड़ लेता है। जितने ज़्यादा कुर्ते फटते हैं या फाड़े जाते हैं, लोकतंत्र के उतने ही शानदार ढंग से आगे बढ़ने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। इस प्रक्रिया में भले ही नुकसान नेता का होता है, लेकिन लोकतंत्र को जिंदा रखने की ख़ातिर इतनी कुर्बानी तो चलती ही है।
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राहुल गांधी ने ऋषिकेश की सभा में अपने कुर्ते की फटी जेब दिखाई थी |
आपको याद हो न हो, एक दफा राहुल गांधी ने ऋषिकेश में भरी सभा में अपने कुर्ते की फटी जेब दिखा दी थी। वह चुनावों का वक़्त था। उत्तराखण्ड में विधानसभा चुनाव चल रहे थे। राहुल गांधी का वह कृत्य राजनीति में नौटंकी का चरम था। लेकिन उससे इस रहस्य से भी पर्दा उठा कि उत्तराखण्ड में कांग्रेस पार्टी के कई कद्दावर नेता आखिर बीजेपी की झोली में गिरे कहां से ! पार्टी का अध्यक्ष उन्हें अपनी जेब में रख ही नहीं पाया। फटी जेब में ये मुमकिन भी नहीं था।
राहुल गांधी के कुर्ते की फटी जेब का असर तब सिर्फ उत्तराखण्ड में ही देखने को नहीं मिला था, 425 विधानसभा सीटों वाले यूपी में तो अखिलेश यादव ने कांग्रेस को लड़ने के लिए सिर्फ 105 सीटें दी थीं। अरे भई, जिस पार्टी के नेता की जेब फटी हो, वो ज़्यादा उम्मीदवारों को संभालता भी कहां? वैसे राहुल गांधी के कुर्ते की फटी जेब दिखाकर यह तो साबित कर ही दिया था कि कांग्रेस पार्टी उनकी जेब में नहीं है।
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राजनीति में कुर्ता भेजने के साइड इफेक्ट
Reviewed by Manu Panwar
on
April 30, 2019
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