मृत्यु का उत्सव देखना हो, तो यहां आइए !

मनु पंवार

(डिस्क्लेमर : यूं यह लेख इस वेबसाइट के मिजाज से मेल नहीं खाता. लेकिन कुछ दिन पहले एक अनूठी परंपरा की कुछ तस्वीरें देखीं तो उस पर लिखने से खुद को रोक नहीं पाया. हम ऐसे समाज हैं जोकि जीवन को भी कायदे से सेलिब्रेट नहीं कर पाते, वहीं ऐसे समाज भी हैं जो मृत्यु को उत्सव की तरह मनाते हैं. बहुत दिलचस्प किस्सा है, पढ़िएगा.)

 

किसी शव यात्रा में ढोल, रणसिंघे और नृत्य को देखकर कोई भी चौंकेगा. वो इसलिए क्योंकि मृत्यु तो शोक देकर जाती है, लेकिन उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी ज़िले के कुछ हिस्सों में मृत्यु उत्सव में बदल जाती है. यह सुनने और देखने मे ज़रूर अटपटा लग सकता है लेकिन अपने किस्म की यह अनूठी परंपरा उत्तरकाशी जिले में खासकर रवाईं यमुना घाटी में आज भी जिंदा है. यहां किसी बुजुर्ग की मृत्यु पर उनकी शव यात्रा ढोल-नगाड़ों के साथ निकाले जाने की रस्म है.

मृत्यु का उत्सव : शव यात्रा में ढोल बज उठे
गढ़वाल के पारंपरिक वाद्ययंत्र ढोल-दमाऊ पर बाजगी (बजाने वाले कलाकार) अपने हुनर का प्रदर्शन करते हैं. ढोल बजता है, रणसिंघे गूंजते हैं. ये लोक कलाकार नृत्य करते हुए निकलते हैं. इसी माहौल के बीच शव को श्मशान घाट तक ले जाया जाता है. मौत के सेलिब्रेट करने का यह पहाड़ के लोगों का अपना अनूठा अंदाज़ है. वरना हम तो जीवन का उत्सव तक कायदे से नहीं मना पाते, मृत्यु की तो छोड़ ही दीजिए.


यह वीडियो ऐसी ही एक शव यात्रा का है. 22 मई 2019 को बड़कोट के डख्याट गांव के 87 साल के चैन सिंह जयाड़ा की शवयात्रा ऐसे ही धूमधाम से निकाली गई. यह वीडियो और इसकी तस्वीरें मुझे हमारे पुराने सहयोगी पत्रकार मित्र लोकेंद्र सिंह बिष्ट से मिली हैं. उन्हीं से पता चला कि  सैकड़ों लोग इस शवयात्रा में शरीक थे. 

ढोलियों को मृतक के परिजन भेंटस्वरूप कुछ पैसे देते हैं

रास्ते में यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर बड़कोट में शवयात्रा को एक जगह रोककर गढ़वाली पहाड़ी पारंपरिक वाद्य यंत्रों ढोल बाजे नगाड़े व रणसिंघो के साथ करीब 30 मिनट तक नृत्य किया गया है. केवल शवयात्रा में किए जाने वाले इस नृत्य को 'पैंसारा' कहा जाता है. जिसमें करीब दर्जनभर ढोली शामिल हुए. जिन्हें स्थानीय बोली मे 'बाजगी' कहा जाता है. जिस किसी के घर से किसी बुजुर्ग की मृत्यु होती है, उनके परिजन, रिश्तेदार इन बाजगियों को अपनी तरफ से कुछ राशि भेंटस्वरूप देते हैं. 

मृत्यु का उत्सव देखना हो, तो यहां आइए ! मृत्यु का उत्सव देखना हो, तो यहां आइए ! Reviewed by Manu Panwar on June 07, 2019 Rating: 5

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