विभीषण आज होता तो तिहाड़ जेल के किसी बैरक में पड़ा होता
मनु पंवार
विभीषण को शुक्र मनाना चाहिए कि वो रावणकालीन समय में पैदा हुआ, पला-बढ़ा, राज किया और मर गया. वरना विभीषण आज के दौर में होता तो पक्का राजद्रोह के मुकदमे झेल रहा होता. कोर्ट की तारीख-पे-तारीख पाकर फ्रस्ट्रेशन के चलते टूट गया होता. या राजद्रोह के केस में तिहाड़ जेल के किसी बैरक में सड़ रहा होता. कोई ज़मानती भी न मिलता. आजीवन कारावास का पक्का बंदोबस्त हो जाता. हमारे यहां तो ऐसे-ऐसे 'मी लॉर्ड' भी हैं जोकि प्रधानमंत्री को खुला खत लिखने वालों के खिलाफ भी राजद्रोह का मुकदमा दर्ज करवा देते हैं. तो सोचिए, ऐसे लोग विभीषण के क्या हाल करते ! बच पाता? कत्तई नहीं.
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हमारी नगरी की रामलीला में रावण और विभीषण संवाद फोटो साभार : दिनेश रावत |
विभीषण को शुक्र मनाना चाहिए कि वो रावणकालीन समय में पैदा हुआ, पला-बढ़ा, राज किया और मर गया. वरना विभीषण आज के दौर में होता तो पक्का राजद्रोह के मुकदमे झेल रहा होता. कोर्ट की तारीख-पे-तारीख पाकर फ्रस्ट्रेशन के चलते टूट गया होता. या राजद्रोह के केस में तिहाड़ जेल के किसी बैरक में सड़ रहा होता. कोई ज़मानती भी न मिलता. आजीवन कारावास का पक्का बंदोबस्त हो जाता. हमारे यहां तो ऐसे-ऐसे 'मी लॉर्ड' भी हैं जोकि प्रधानमंत्री को खुला खत लिखने वालों के खिलाफ भी राजद्रोह का मुकदमा दर्ज करवा देते हैं. तो सोचिए, ऐसे लोग विभीषण के क्या हाल करते ! बच पाता? कत्तई नहीं.
विभीषण के ख़िलाफ़ तो राजद्रोह के पक्के सबूत भी थे. वह लंका में रावण की सरकार में रहकर, वहीं की तनखा और भत्ते पाकर, लालबत्ती की गाड़ी में ऐश करने के बावजूद 'राम-राम' जपता फिरता था. बंदे का दुस्साहस तो देखिए कि एक देश के सर्वशक्तिमान राजा का भाई होते हुए दूसरे देश के राजा के सबसे बड़े बेटे का गुणगान कर रहा है. बात सिर्फ इतनी ही होती तो भी चल जाती, मगर अपने ही देश के और अपने भाई के सारे गुप्त राज भी दूसरों को बता रहा है. सोचिए, यह तो निश्चित ही राजद्रोह का गंभीर मामला है.
अबकी बात होती तो सिर्फ आरोप लगने पर ही रावणभक्तों की ट्रोल आर्मी विभीषण का जीना-हराम कर देती. उसे तब 'पाकिस्तान चले जाओ' जैसे ताने सुनने पड़ते. बाद में भले ही रावण ने विभीषण को किक मार दी थी, लेकिन ऐसा तो हर फैमिली में चलता है. बड़ा भाई छोटे भाई को किक तो क्या घूंसे भी मार सकता है. हमारे परिवारों में तो यह बड़े भाई का जन्मसिद्ध अधिकार टाइप माना जाता है. लेकिन इसका मतलब ये थोड़े ही है कि तुम भाई के 'दुश्मन' से मिलकर उसके सारे राज़ उगल दो.
विभीषण का गुनाह शायद ज़्यादा संगीन था. इसीलिए तो त्रेतायुग से लेकर कलियुग तक न जाने कित्ते युग गुज़र चुके लेकिन बंदा आज तक 'घर का भेदी' होने के दोष से मुक्त नहीं हो पाया. कहावत ही चल पड़ी- घर का भेदी लंका ढहाए. लंका विजय का सेहरा किसी और के सिर बंधा और आज तक बदनामी झेल रहा है विभीषण.
वरना आजकल की बात होती तो बंदे कई पाप/ गुनाह करने के बाद सत्ताधारी पार्टी जॉइन कर लें तो वो गंगा नहा जाते हैं. उनके अगले-पिछले सारे करम-कुकर्म सब धुल जाते हैं. लेकिन विभीषण का गुनाह युगों तक उसके साथ चिपका रह गया. जबकि वह तो रामचंद्रजी की साइड था अर्थात् 'सत्य और धर्म के साथ' था. हैरानी की बात ये है कि 'सत्य और धर्म के साथ खड़े होने' से भी विभीषण के दाग नहीं धुल पाए. वह युगों-युगों से घर के भेदी के रूप में ही कुख्यात है. इससे एक सबक तो यह मिलता ही है कि भले ही धर्म का चोला ओढ़ लो, लेकिन आपका गुनाह आपका पीछा नहीं छोड़ेगा.
वरना आजकल की बात होती तो बंदे कई पाप/ गुनाह करने के बाद सत्ताधारी पार्टी जॉइन कर लें तो वो गंगा नहा जाते हैं. उनके अगले-पिछले सारे करम-कुकर्म सब धुल जाते हैं. लेकिन विभीषण का गुनाह युगों तक उसके साथ चिपका रह गया. जबकि वह तो रामचंद्रजी की साइड था अर्थात् 'सत्य और धर्म के साथ' था. हैरानी की बात ये है कि 'सत्य और धर्म के साथ खड़े होने' से भी विभीषण के दाग नहीं धुल पाए. वह युगों-युगों से घर के भेदी के रूप में ही कुख्यात है. इससे एक सबक तो यह मिलता ही है कि भले ही धर्म का चोला ओढ़ लो, लेकिन आपका गुनाह आपका पीछा नहीं छोड़ेगा.
विभीषण आज होता तो तिहाड़ जेल के किसी बैरक में पड़ा होता
Reviewed by Manu Panwar
on
October 05, 2019
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