कहीं कांग्रेस को ठेके पर न देना पड़ जाए !
मनु पंवार
साभार : संदीप अध्वार्यु का कार्टून उनके ट्विटर हैंडल से |
किसी का रिज़ल्ट अगर सौ फीसदी हो तो कहने ही क्या. जैसे दिल्ली चुनाव में कांग्रेस की परफॉर्मेंस ही देख लीजिए. वह 2015 के चुनाव में भी शून्य पर थी और 2020 के चुनाव में भी शून्य पर. उसका कोई कुछ नहीं उखाड़ पाया. कांग्रेस अपनी जगह पर बनी रही. इसे कहते हैं हडरेंट परसेंट रिजल्ट. हां, इतना ज़रूर हुआ कि अबके उसके खाते से वोट लुट गए. 2015 में जहां दिल्ली में कांग्रेस को 9 फीसदी के करीब वोट पड़े थे, अबके वो लुढ़क कर 4 फीसदी रह गए. ऐसे ही चलता रहा तो एक दिन कांग्रेस को ठेके पर देने की नौबत आ सकती है.
लेकिन दिल्ली चुनाव में और भी कई अजब-गज़ब हुए. साल 2014 में मोदी साहब गुजरात से 'विकास' का झंडा लेकर आए थे, लेकिन छह साल बाद यानी 2020 में दिल्ली में उनका वो झंडा केजरीवाल ने लपक लिया. इस दफा मोदीजी के पास सिर्फ डंडा रह गया. कहने वाले कह रहे हैं कि वो डंडा मोदी साहब के लेफ्टिनेंट जमकर चला रहे हैं. ख़ैर, डेमोक्रेसी में डंडाराज तो चलता नहीं है. सो दिल्ली में भी नहीं चला.
चलने को तो और भी बहुत कुछ नहीं चला. शाहजी 'करंट' लगाना चाहते थे, लेकिन दिल्ली में बिजली तो केजरीवाल साहब के हाथ में है. सो, करंट उल्टा दौड़ पड़ा. बड़े-बड़े शहरों में अक्सर ऐसी छोटी-छोटी बातें होती रहती हैं. लेकिन मुझे तो बीजेपी के बयानवीर कपिल मिश्रा पर बड़ा तरस आ रहा है. उनने दिल्ली चुनाव को हिन्दुस्तान-पाकिस्तान के बीच मुक़ाबला बताया था, लेकिन बंदा खुद अपनी सीट भी 11 हज़ार से ज़्यादा वोटों से हार गया. अगर दिल्ली में 'पाकिस्तान' वाली पॉलिटिक्स की हार हुई है तो इसका मतलब क्या समझा जाए? क्या कपिल मिश्रा पाकिस्तान की टीम से खेल रहे थे?
कहीं कांग्रेस को ठेके पर न देना पड़ जाए !
Reviewed by Manu Panwar
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February 17, 2020
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