दो-दो हाथ करने की कला

 मनु पंवार



हमने टीवी पर देखा है. रावण के दस सिर थे, लेकिन हाथ दो ही थे. यह रहस्य अपनी समझ में आज तक नहीं आया. माना कि वो लंका का राजा था मगर उसने तमाम अन्य दैनिक कार्यों के अलावा दो हाथों से दस सिरों को कैसे मैनेज किया होगा?  लेकिन फिर सोचता हूं कि इसके चक्कर में ही क्यों पड़ूं? वैसे भी रावण दूसरे देश का बंदा था, उसके बारे में ज्यादा बात करूंगा तो कोई मुफ्त में 'देशद्रोही' का तमगा चिपका देगा.


लेकिन रावण वाले उदाहरण से इतना तो समझ में आ गया कि चाहे सिर कितने भी हों, दो हाथों से आसानी से मैनेज हो सकते हैं. हमारी राजनीति ने इसे और बेहतर ढंग से समझा दिया है. यहां सिर तो बस संख्याभर हैं. यह राजनीति का अपना अंकगणित कि 'वन-टू का फोर' की तर्ज पर दो-दूनी बाईस भी बनाया जा सकता है. लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है 'दो' का होना.


और तो और, दो हाथ की ताकत का अंदाजा 'शोले' के दस्यु सरगना सरगना गब्बर सिंह को भी था. जब से उसने ठाकुर की हुंकार सुनी कि उनके हाथ नहीं फांसी का फंदा हैं, तो ठाकुर से दो-दो हाथ करने में उलझने के बजाय उस जालिम ने ठाकुर के दोनों हाथ ही काट डाले. उसे पता था कि पुलिसवाले से दो-दो हाथ करने के खतरे बहुत हैं. दो-दो हाथ बराबरी वाले के साथ ही सूट करता है.


इसीलिए जब हमने सुना कि सरकार बहादुर दो-दो हाथ करना चाहती है तो लगा कि अब उस दुश्मन की खैर नहीं जोकि हमारी सरहद पर आंख उठाकर देख रहा है. लेकिन बाद में पता चला कि दो-दो हाथ का ऑफर बॉर्डर के लिए नहीं, पार्लियामेंट के लिए है और वो भी उसके साथ जिसके पास सिर्फ एक ही 'हाथ' है. तो दो-दो हाथ की निरर्थकता समझ में आ गई. 


दंगल में तो पहलवान बराबर वजन और बराबर हैसियत वाले से ही दो-दो हाथ करते हैं लेकिन राजनीति में अगर हैवीवेट पहलवान बराबर वाले से भिड़ने के बजाय अंडरवेट वाले को ललकारे तो समझ लीजिए यह दो-दो हाथ की हुंकार एक कलाकारी है.


लिंक : मेरा यह व्यंग्य 6 जुलाई, 2020 को दैनिक हिन्दुस्तान अख़बार के सम्पादकीय पेज पर प्रकाशित हो चुका है

दो-दो हाथ करने की कला दो-दो हाथ करने की कला Reviewed by Manu Panwar on August 13, 2020 Rating: 5

2 comments

  1. दो-दो हाथ करने की कला में पारंगत लोगों से पंगा लेना मतलब अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है
    बहुत ही सही सटीक प्रासंगिक प्रस्तुति

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  2. धन्यवाद आपका फीडबैक के लिए

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