न्याय की देवी पर वर्कलोड बढ़ाने के ख़तरे
मनु पंवार
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| मंजुल का कार्टून उनके ट्विटर हैंडल से साभार |
हम हिन्दुस्तानी लोग इंसाफ के मामले में बड़े अधीर हैं। अपनी अधीरता के चक्कर में हमने जाने-अनजाने इंसाफ की देवी पर वर्कलोड बढ़ा दिया है। उसके मानवाधिकार का ख्याल भी न रखा। मुझे इंसाफ की देवी से वाकई बहुत सहानुभूति है। वह बेचारी आंखों पर पट्टी बांधे, एक हाथ में तराजू लिए 'जस्टिस फॉर सुशांत' का वजन तौल ही रही थी कि भाई लोग 'जस्टिस फॉर कंगना' चीखने लगे। इससे पहले कि शोर-शराबे में न्याय की देवी कुछ सुन पाती, अब 'जस्टिस फॉर पायल' का हल्ला शुरू हो गया। इंसाफ की देवी घणे कनप्यूजन में है।
इतनी जल्दी तो बंदा नींद में करवट भी नहीं बदलता जितनी जल्दी भाई लोगों ने 'जस्टिस फॉर' के आगे वाला नाम बदल दिया। एक का जस्टिस फाइनल हुआ नहीं कि भाई लोगों ने बीच में ही दूसरी फाइल बढ़ा दी। अरे भई, माना कि न्याय की देवी की आंखों पर पट्टी बंधी है मगर उसे सुनाई सब देता है। उसका ऑडियो नेटवर्क ठीक है। वह तो आंखों में पट्टी इसलिए चढ़ाए हुए है ताकि यह इल्जाम न लगे कि देखो न्याय की देवी ने बंदे की शक्ल देखकर इंसाफ में ऊंच-नीच कर दी। यह न्याय की देवी की मजबूरी नहीं है, उसकी पेशेवर नैतिकता की नुमाइश है।
इसलिए पहले खुद फाइनल कर लो कि जस्टिस दिलाना किसे है? सुशांत को, कंगना को या पायल को? अगर इंसाफ दिलाने की इत्ती ही जल्दी है तो फिर क्यों नहीं इंसाफ का ऐप ही बना लेते। शुद्ध, स्वदेशी न्याय का एप। न मुद्दई, न मुंसिफ, न सुनवाई, न गवाही। फैसला एट दी स्पॉट। वैसे भी अब धीमी गति के समाचारों का दौर जा चुका है। यह स्पीड न्यूज़ का युग है। फास्टफूड का ज़माना है। इंसाफ की त्वरित डिलीवरी का इससे बेहतर दूसरा रास्ता भला हो भी क्या सकता है।
तरीका भी कितना आसान है। अपने स्मार्ट फोन पर इंसाफ का ‘ऐप’ डाउनलोड करिये और घर बैठे, चलते-फिरते या लेटे-लेटे, जैसा जी करे, इंसाफ पाइए। आप चाहें तो इंसाफ की होम डिलीवरी भी करवा सकते हैं। सोचिए, अगर देश में इसी रफ़्तार से इंसाफ होता रहा तो अदालतों के पास तो काम ही नहीं रह जाएगा। फिर तो इंसाफ की देवी 'स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी' की तरह कहीं समंदर पर खड़ी होकर पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने के काम आ रही होगी।
न्याय की देवी पर वर्कलोड बढ़ाने के ख़तरे
Reviewed by Manu Panwar
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September 22, 2020
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