बी.मोहन नेगी: उनके हाथों में लकीरों के सिवा कुछ भी नहीं
मनु पंवार
(वैसे तो अपन चीज़ों को ज़्यादा सीरियसली लेने वाले बंदे नहीं हैं. हमेशा हंसने, खिलखिलाने पर यकीन रखते हैं, मगर आज व्यंग्य नहीं. एक पीड़ा है, दुख है. हमारे अजीज़ चित्रशिल्पी, मूर्तिशिल्पी, एक जिंदादिल, हंसमुख इंसान बी.मोहन नेगी इस दुनिया से चले गए. किसी मित्र के ज़रिए सुबह-सुबह उनके निधन की ख़बर सुनी तो स्तब्ध रह गया. तब से मन विचलित है. बहुत उदास हूं. उनसे बहुत गहरा दोस्ताना रहा है. ऐसा विलक्षण फनकार, ऐसा खुशमिजाज इंसान मैंने बहुत कम देखे हैं. उन्होंने मुझसे मेरी नई क़िताब के लिए कुछ चित्र बनाने का वादा किया था, लेकिन वो असमय चले गए. बी.मोहन नेगी पर मैंने कुछ समय पहले कुछ लिखा था. उनकी स्मृति में आज इसे वैसा ही साझा कर रहा हूं. )
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चित्रकार बी.मोहन नेगी |
'मेरे इन हाथों की चाहो तो तलाशी ले लो,
मेरे हाथों में लकीरों के सिवा कुछ भी नहीं।'
जगजीत सिंह की गायी राजेश रेड्डी की ग़ज़ल की ये पंक्तियां अक्सर कानों में गूंजती है. बी.मोहन नेगी का जब कभी भी ज़िक्र आता है, तो मुझे ये पंक्तियां बरबस ही याद आ जाती हैं. वह लकीरों यानी रेखाओं के उस्ताद हैं. रेड्डी की ग़ज़ल के लफ़्ज़ों को ज़रा दूसरे अंदाज़ में कहें तो बी.मोहन नेगी के हाथों में लकीरें ही लकीरें बसी हैं. वह अपने अनूठे सृजन के ज़रिये रेखाओं को जीवन देते हैं. उन्हें कहानी और कविता में बदल डालते है. और सबसे ख़ास बात यह है कि उनकी रेखायें बोलती हैं. यही उनकी रचनात्मकता की ताक़त है.
कांधे पर झोला, सुनहरी सी दाढ़ी के बीच दमकता हुआ चेहरा. आप बी.मोहन
नेगी को दूर से ही पहचान सकते हैं. कुछ अलग सा व्यक्तित्व है उनका. एक नज़र में
बी.मोहन नेगी लेनिन की सी छवि देते हैं. मैंने कई बार उनसे चुहल भी की. पौड़ी में लोग उन्हें भारतीय डाक विभाग
के कर्मचारी के अलावा एक चित्रकार के रूप में जानते हैं. लेकिन बी.मोहन नेगी को जानने का मतलब सिर्फ इतना ही
नहीं है. उनकी शख्सियत की कई तहें हैं, कई स्तर हैं. जिनमें उनके सृजन के कई आयाम
नज़र आते हैं.
वह सिर्फ चित्रकार नहीं, एक बड़े मूर्तिशिल्पी भी हैं. छोटे कद का बड़ा शिल्पी. वह सिर्फ कूची से,
रंगों से ही नहीं खेलते, रेखाओं के ज़रिये भी संवेदनाओं को आकार देते हैं. उनका
चित्रशिल्प रेखाओं में टहलता, विचरता और सांस लेता है. एक अलग संसार रचता है. इनके हाथों से निकली
रेखाओं में काव्य की समूची आत्मा उभर आती है. यह बड़ा कठिन काम है. बहुत चुनौतीभरा काम. इसलिए भी
क्योंकि कवि के चित्रांकन का माध्यम भाषा होती है, लेकिन बी.मोहन नेगी के कौशल का
माध्यम रूप है. उसका कैनवास बहुत छोटा और सीमित होता है. लेकिन इसके बावजूद बी.मोहन नेगी उसी
में प्राण फूंक देते हैं. उसमें जान डाल देते हैं. उनका यह कौशल चमत्कृत करता है.
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बी.मोहन नेगी के साथ पौड़ी में 2010 की एक चित्र प्रदर्शनी के दौरान |
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बी मोहन नेगी का एक रेखाचित्र |
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कागज की लुग्दी से बनाए अपने मूर्तिशिल्प के साथ बी.मोहन नेगी |
बी.मोहन नेगी के रचना संसार को क़रीब से जानना हो तो एक बार उनके घर ज़रूर
जाया जाना चाहिए. वरना आप इनकी शख्सियत के महज कुछ ही हिस्से से परिचित हो
पाएंगे. दुनिया जिस शख्स को महज एक चित्रशिल्पी के तौर पर जानती है, उनके
सृजन का विस्तार कितना बड़ा और कितना गहरा है, इसे आप तभी महसूस पाएंगे. इसकी झांकी आपको इनके घर के दरवाज़े पर ही देखने को मिल जाएगी. बी.मोहन नेगी के लिए कला एक साधना है, इसके दर्शन भी मुझे उनके घर पर जाकर ही हुए.
वहां उनकी एक अलग ही दुनिया बसती है. रंगों, रेखाओं, कागज़ की लुग्दियों से रची गई, संवारी गई दुनिया.
नेगीजी कुछ रच कर चुप नहीं बैठते. सृजन उनका नित्यकर्म है. वह वक़्त की क़ीमत को समझते हैं और इसे यूं ही जाया
नहीं करते. सरकारी नौकरी के बाद जितना भी वक़्त मिलता है वो उसे अपनी कला
को देते हैं. आप उन्हें पौड़ी के बाज़ार में या दूसरी जगहों पर आसानी से
गप्पबाज़ी में नहीं उलझा सकते. कतई नहीं. उतना वक्त तो वो कोई चित्र या मूर्तिशिल्प
बनाने में लगाना ज़्यादा बेहतर समझते हैं. कला के लिए बी.मोहन नेगी का यह
समर्पण और अनुशासन उन्हें सबसे जुदा करता है. यह सीखने वाली बात है.
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पौड़ी में अपने घर के मुख्य द्वार पर यह कलाकारी बी.मोहन नेगी ने अपने हाथों से की है |
मेरा
बी.मोहन नेगी से पहली बार आमने-सामने का परिचय अपने अग्रज वीरेंद्र पंवार के माध्यम से
हुआ. हालांकि मैं उनके सृजन से परिचित था. उनके रेखांकन 'हंस' और दूसरी
नामी-गिरामी पत्रिकाओं में नियमित तौर पर मैं देख चुका था. यह शायद 1994 या 1995 की बात
होगी. तब भाई वीरेंद्र पंवार 'धाद' संस्था के बैनर तले पौड़ी गढ़वाल ज़िले
के परसुंडाखाल कस्बे में 'मकरैण कौथीग', जोकि हर साल 14 जनवरी को होता था, का
अनूठा उत्सव करवा रहे थे. उस खास मौके पर उन्होंने एक साहित्यिक फोल्डर
निकाला था. जिसके मुखपृष्ठ से लेकर भीतर के रेखांकन बी.मोहन नेगी जी ने
तैयार किए थे.
मैं
अपने भाई के साथ पौड़ी में धारा रोड़ से गुज़र रहा था कि संयोग से बी.मोहन
नेगी से सीधी मुठभेड़ हो गई. भाई ने उनसे परिचय कराया. वीरेंद्र भाई 'धाद'
के साहित्यिक फोल्डर के सिलसिले में नेगी जी से डिस्कस कर रहे थे. चूंकि मेरे भाई फोल्डर का
संपादन कर रहे थे, लिहाज़ा किसी की एक कविता के लिए रेखांकन की ज़रूरत को लेकर वो दोनों लोग चर्चा कर रहे थे. मैं हैरान था कि बी.मोहन नेगी ने वहीं पर खड़े-खड़े चंद ही
मिनटों में एक नया रेखांकन तैयार कर दिया. इससे फोल्डर मेें शामिल की जा
रही वह रचना और भी जीवंत हो उठी. मैं तो उनका निजी तौर पर बहुत शुक्रगुज़ार
हूं. नब्बे के दशक में मैं जब पौड़ी में 'अमर उजाला' अख़बार के लिए
रिपोर्टिंग कर रहा था, तब नेगी जी के बनाए कई रेखाचित्र मैंने अपने
फी़चर्स/लेखों में इस्तेमाल किए.
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बी.मोहन नेगी का बनाया एक और कविता पोस्टर |
बी.मोहन नेगी: उनके हाथों में लकीरों के सिवा कुछ भी नहीं
Reviewed by Manu Panwar
on
October 26, 2017
Rating:

You have very honestly and transparently paid your valuable, informative and higly thought provoking tributes to this immrtal soul. B Mohan Negiji is a legend who are alwas mortal to guide and insoire generations after generations.May the departed soul rest in peace.
ReplyDeleteSunil Negi
http://www.newsviewsnetwork.com/india/uks-eminent-artist-sculptor-and-poet-b-mohan-negi-is-no-more/
Undoubledly, An End of an Era
Thank You Very much Negi ji
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